बलारिष्ट के सेवन
से प्रबल वातव्याधि नष्ट होती है तथा बल, पुष्टि और अग्नि की वृद्धि होती है।
बलारिष्ट वात-नाडी पोषक, कफ नाशक तथा स्त्रोत शोधक है। यह संतर्पक
औषध है। इसके सेवन से वीर्य अभाव के कारण क्षीण हुए मनुष्यो में शक्ति का संचार
होता है, शोष का नाश होता है और शरीर की सम्पूर्ण
ग्रंथियो में क्रिया की वृद्धि होती है। शोक और भ्रम के कारण विकृत हुई मस्तिष्क
की नाडीयां इसके सतत सेवन से पुष्ट होकर पुनः शरीर संचालन के योग्य हो जाती है।
दौर्बल्य, अति व्यवाय (स्त्री-सेवन), कृशता तथा विमूढ़ता के कारण उत्पन्न हुए नाडीयों के
विकार इसके सेवन से नष्ट हो जाते है।
अश्वगंधा: तिक्त, बलवर्धक, वातनाशक,
खांसी, श्वास,
क्षय, व्रणनाशक,
वीर्यवर्धक और रसायन है।
बला: तिक्त, मधुर, पित्तातिसार नाशक, बल, वीर्य और पुष्टिवर्धक तथा कफ नाशक है।
बलारिष्ट रक्तचाप की
वृद्धि, भ्रम,
मूर्छा, उत्क्लेश,
मांस पीड़ा, श्वास-कास और शोष में लाभप्रद है।
मात्रा: 1.25 से 2.5 तोले समान जल मिलाकर भोजन के बाद
सुबह-शाम। (अधिकांश आसव अरिष्ट 10 से 25 ml तक समान पानी मिलाकर भोजन के बाद दोनों समय
पिये जाते है)
घटक द्रव्य (Balarishta Ingredients): बला (खरैटी) की जड 6.5 सेर, अश्वगंधा 6.5 सेर,
गुड 18.75 सेर, धाय के फूल 1 सेर, 10-10 तोले क्षीर-विदारी और एरंड की छाल का चूर्ण तथा
रास्ना, इलायची,
प्रसारणी, लौंग,
खस और गोखरू प्रत्येक 5-5 तोले।
Ref: भैषज्य रत्नावली, भारत भैषज्य रत्नाकर-4699,
nice article sir ji
जवाब देंहटाएं