मधुमालिनी वसंत
बृहण (शरीर को मोटा करने वाला), बल्य,
ओजोवृद्धिकर (ओज = रस, रक्त,
मांस, मेद,
अस्थि, मज्जा और शुक्र – ये सात धातु है – इन
सातों के सार यानि तेज को “ओज” कहते है, उसे ही शास्त्र के सिद्धान्त से “बल”
कहते है। ओज प्राणो का उत्तम आहार है।) है। यह बालक,
सगर्भा, अशक्त और सुकुमारों के लिये अधिक उपयोगी
है।
कोई भी व्याधि
लंबे समय तक रह जाने से बल-मांस-विहीनत्व की प्राप्ति होने पर मधुमालिनी वसंत रस
का उपयोग अवश्य करना चाहिये। यह वसंत कल्प नाजुक प्रकृति वाले, कृश (दुबले), बालक और गर्भिणी के लिये शक्तिदायक और
मांसवर्धक है। केवल अग्निबल का विचार करके इसकी योजना करनी चाहिये। जिनकी
पचन-शक्ति निर्बल हो, उनको कम मात्रा देनी चाहिये।
मज्जाक्षय (मज्जा
धातु कम होना) और शुक्रक्षय (शुक्र धातु कम होना) होने पर देह (शरीर) निस्तेज हो
जाता है, तथा सांधों-सांधों में पीड़ा, रुक्षत्व, चक्कर आना,
कब्ज, स्त्री समागम की अनिच्छा, ह्रदय में कंप, बड़ी आवाज भी सहन न होना आदि लक्षण
प्रकाशित होते है। उक्त रोग पर मधुमालिनी वसंत रस,
प्रवाल भस्म और गिलोय सत्व मिलाकर आम के मुरब्बे के साथ देने से थोड़े ही दिनों में
व्याधि दूर हो जाती है।
पुराना बुखार
लंबे समय तक रह जाने पर ओजक्षय (ओज की कमी) हो जाता है। फिर रोगी डरपोक बन जाता है, एवं अति निर्बलता,
शुष्कता, कांतिहीनता उत्पन्न होती है। ऐसी अवस्था
में मधुमालिनी वसंत का सेवन दूध के साथ कराने पर पुराना बुखार, ओजक्षय, मांसक्षय,
अग्निमांद्य आदि विकार दूर होते है।
जीर्णज्वर
(पुराना बुखार) के विकार में पहले बहुधा शीतपूर्वक ज्वर होता है। यह कम होने पर या
अनेक दिन चले जाने पर जीर्णज्वर हो जाता है। इसमें प्लीहा (Spleen) बढ़ जाती है, अग्निमांद्य होता है और रोगी निर्बल बन
जाता है। इस विकार में अग्निमांद्य मर्यादित हो,
और प्लीहावृद्धि और मांसविहीनत्व आया हो, तो मधुमालिनी वसंत रस देना चाहिये।
मधुमालिनी वसंत
रस शीतपूर्वक ज्वर के बाद बल-मांस-विहीनत्व पर उपयोगी है। रक्तकणों के नाश से आई
हुई पांडुता (शरीर पीला पडजाना) में मधुमालिनी वसंत रस और मंडूर भस्म का मिश्रण
अधिक हितकर है। परंतु अधिक कृशता और अधिक बलक्षय पर मधुमालिनी देनी चाहिये।
गर्भिणी की अस्थि
धातु (हड्डी) क्षीण होने पर गर्भ की भी अस्थि धातु क्षीण होती है। फिर बालक को आगे
मृदुस्थि रोग (हड्डियाँ कमजोर होने का रोग) हो जाने की संभावना रहती है। अतः अस्थि
धातु के पोषणार्थ सगर्भा को मंडूर भस्म, शृंग भस्म और मधुमालिनी वसंत रस का
मिश्रण हितकर है।
स्त्रियों की
अशक्तता के कारण से गर्भ का योग्य पोषण नहीं होता;
और सगर्भा स्त्रियाँ भी दिन-प्रति-दिन क्षीण होती जाती है। गर्भ की योग्य वृद्धि
नहीं होती। एवं रुक्ष आहार-विहार के सेवन से या योनिस्त्राव अधिकांश में होने से
भी गर्भ का योग्य पोषण नहीं होता। गर्भ धीरे-धीरे सूखता जाता है। इस अवस्था में
बृहण (शरीर को मोटा करने वाला) और वातध्न गुणयुक्त घी, दूध, मिश्री,
अंगूर आदि मधुर द्रव्यों और आम गर्भ (कच्चे गर्भ) से सगर्भा की तृप्ति करानी
चाहिये। यह कार्य मधुमालिनी वसंत रस के सेवन से उत्कृष्ट रूप से सिद्ध होता है, कारण इसे आम गर्भों (अंडो) की भावना दी है।
स्त्रियों को श्वेतप्रदर
विकार में अधिक स्त्राव होता हो, तथा बल,
मांस और ओज की तथा बल, मांस और ओज की क्षीणता हो, तो मधुमालिनी वसंत रस देना चाहिये। इस तरह प्रसव के
बाद अत्यधिक स्त्राव होने पर बल-क्षय प्रतीत होता हो, तो शक्ति लाने के लीये यह रसायन अति उपयोगी है।
मात्रा: 1 से 2 गोली मिश्री-धृत या दूध के साथ
दें।
घटक द्रव्य (Madhu Malini Vasant Ingredients):
सिंगरफ, अनार दानों का रस, अंडे, कचूर,
सफेद मिर्च और प्रियंगु।
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