बुधवार, 1 मई 2019

चन्दनासव के फायदे / Chandanasava Benefits


यह चन्दनासव शुक्रमेहनाशक (पेशाब के साथ वीर्य जाना), बलकारक, पौष्टिक, ह्रद्य (ह्रदय पौष्टिक) और अत्यंत अग्निवर्धक है। पुराने सुजाक (Gonorrhoea) के रोगियों के लिये हितकारक है। इसके सेवन से रक्त में उत्पन्न मूत्रविष, मूत्र में जलन, मूत्र का अवरोध और मूत्रकृच्छ आदि विकार शांत हो जाते है।

चन्दनासव शीतवीर्य, बल्य, मूत्रल, जलन का शमन करने वाला और पित्तशामक है। तथा मूत्रमार्ग की दोषदुष्टि को नष्ट करता है। इसका उपयोग पुराने और नये सुजाक में उत्तम होता है। इसके योग से बार-बार मुत्रोत्सर्ग होते रहने से सुजाक के पूय (Puss) का शोधन होता रहता है। सुजाक की प्रथम अवस्था में मूत्रप्रसेक नलिका की श्लैष्मिक कला में प्रदाह (Irritation) होता है वह इस आसव के सेवन से कम होता है। फिर जलन सहित वेदना भी कम हो जाती है, तथा निमित्त कारण जो किटाणु (Gonococcus) है, उनका बल कम होता जाता है। यद्यपि किटाणु नष्ट होते है या नहीं, यह अभी निश्चित नहीं हुआ, तथापि इस आसव के योग से सुजाक की तीव्र अवस्था और चिरकारी अवस्था में लक्षण कम होते जाते है, यह निःसंदेह है।

चन्दनासव से सुजाक समूल नष्ट होने के उदाहरण नहीं मिले। इसके रोगी को तीव्रावस्था, मंदावस्था और जिर्णावस्था (पुरानी अवस्था) की प्राप्ति होती रहती है, तथा रोगी सर्वदा इनसे पीड़ित ही रहता है। इन सब अवस्था में चन्दनासव शामक (Soothing) रूप से प्रायोजित होता है। इससे मुत्रोत्पत्ति की वृद्धि होकर पूय का स्त्राव होता रहता है, मूत्रमार्ग में जीर्ण व्रण हो, तो उसका त्रास कम हो जाता है, क्षोभ (Irritation) हो, तो कम हो जाता है, और कुछ समय के लिये पीड़ा उपशम होती है। यदि मूत्रमार्ग संकुचित हो गया हो, तो चन्दनासव का अधिक उपयोग नहीं होता। आकुंचन अधिक हो, तो चन्दनासव या अन्य मूत्रल औषधि नहीं देनी चाहिये, अन्यथा मूत्राशय में मूत्रसंचय अधिक होकर आपत्ति बढ़ जायेगी।

मूत्र में सिकता और शर्करा (पथरी के कण) जाने पर चन्दनासव का उत्तम उपयोग होता है। इस आसव से अश्मरी (पथरी) के छोटे-छोटे अणु द्रवीभूत होकर बाहर निकल जाते है। अश्मरीजन्य शूल (दर्द) में भी इसका उपयोग होता है।  

मात्रा: 10 से 20 ml समान जल मिलाकर सुबह-शाम।

घटक द्रव्य (Chandanasava Ingredients): सफेद चंदन, नेत्रबाला, नागरमोथा, गंभारी के मूल, नीलकमल, फूलप्रियंगु, पदमाख, लोद, मजीठ, लाल चंदन, पाठा, चिरायता, बड़ की छाल, पीपल वृक्ष की छाल, कचूर, पित्तपापड़ा, मुलहठी, रास्ना, पटोलपत्र, कांचनार की छाल, आमवृक्ष की छाल, मोचरस, धाय के फूल, मुनक्का, शक्कर और गुड।

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