बृहत कस्तुरी
भैरव रस के गुण वर्णन में मूल ग्रंथकार ने इसे सर्व ज्वर (बुखार) विनाशन कहा है।
विषम ज्वर (Malaria), द्वंद्वज ज्वर, भौत्तिक ज्वर, काम ज्वर,
अभिघातज, शत्रुकृत ज्वर, डाकिनियोंकृत ज्वर और ग्रहपीड़ा आदि से उत्पन्न ज्वर
पर अदरक के रस के साथ देने का विधान किया है।
बृहत कस्तुरी
भैरव रस बालक, युवा,
वृद्ध, सूतिका आदि को निर्भय रूप से सब प्रकार
के ज्वरों में दिया जाता है। आमातिसार (Diarrhoea), ग्रहणी और ज्वरातिसार पर बेलगिरी, जीरा और शहद के साथ दिया जाता है।
यह बृहत कस्तुरी
भैरव रस अग्निप्रदीपक और मस्तिष्क शामक है। खांसी,
प्रमेह, हलीमक,
संतत आदि सर्व प्रकार के नूतन और पुराने विषम ज्वर,
पुनरावर्तक ज्वर, ज्वरावस्था के आक्षेप (धनुर्वात) और भूत
प्रकोपज आक्षेप, इन सब रोगों में अनुपान रूप से अदरक के
रस का विधान किया है।
इस बृहत कस्तुरी
भैरव रस में प्रधान द्रव्य कस्तुरी है। उसके मुख्य गुण की जब आवश्यकता होती है
अर्थात विष (Toxin) का तत्काल दमन कराना और अपक्व आम, मल का पचन कराना इष्ट हो, तब इस रस की योजना की जाती है।
सन्निपात: -
सन्निपात में बार-बार आक्षेप आता हो या वातप्रकोप लक्षण – प्रलाप (बेहोशी में बोलना),
निद्रानाश, मन की अस्वस्थता, बेचैनी आदि प्रधान रूप से उपस्थित हो, ज्वर 102॰ से अधिक हो,
तब इस बृहत कस्तुरी भैरव रस के प्रयोग से तुरंत चमत्कारिक लाभ पहुंचता है।
सन्निपात ज्वर
में पचन संस्थान और रक्त आदि धातुओं में अपक्व दूषित रस प्रायः रहता है। जो रक्त
में शोषित होने पर विविध उपद्रव उपस्थित करता है। अधिक स्वेद (पसीना) आना, शितांग (शरीर के अंग ठंडे हो जाना), मंद-मंद प्रलाप (बेहोशी में बोलना), तंद्रा, अतिक्षीण नाड़ी, कंप और शक्तिपात आदि लक्षण उपस्थित हुए हों, तो अर्कादि क्वाथ या तगरादि कषाय के साथ यह रस देना
चाहिये।
सूतिका ज्वर: -
विशेषतः गर्भाशय में से रक्त में विष (Toxin) प्रवेश करने पर सूतिका ज्वर की प्राप्ति
होती है। लक्षण विशेषतः वातप्रकोपक, आक्षेपक आदि होते है। उस पर देवदार्वादि
क्वाथ के साथ इस रस की योजना करने पर तत्काल लाभ पहुंचता है। प्रलापक सन्निपात में
अनुपान तगरादि क्वाथ विशेष अनुकूल रहता है।
ह्रदय क्षीणता: -
इस बृहत कस्तुरी भैरव रस में बच्छनाग नहीं होने से यह ह्रदय की क्षीणता होने पर
निर्भयता पूर्वक दिया जाता है। यह रस वातप्रधान सन्निपात में श्रेष्ठ माना गया है।
उतना ही नहीं, पित्तज,
वातपित्तज और वातकफज पर भी अच्छा लाभ पहुंचाता है। इस रस से ह्रदय और मस्तिष्क को
बल मिलता है। तथा आम पचन होकर ज्वर भी निवृत हो जाता है।
मधुरा (Typhoid) आदि मुद्दती ज्वर: - जब बुखार दिनों तक रह जाता है, तब रोगविष (बुखार का जहर) धातुओं में लीन हो जाता है।
इन ज्वरों में ह्रदय विकृति, निद्रानाश,
प्रलाप और शारीरिक निर्बलता अधिक होने पर अन्य औषधियों की अपेक्षा बृहत कस्तुरी
भैरव रस सत्वर लाभ पहुंचाता है।
विकृत ज्वर: -
कभी-कभी अपथ्य सेवन या औषध योजना में भूल होने पर ज्वर दिनों तक नहीं छोडता, निर्बलता बढ़ती जाती है। रोगी का स्वभाव क्रोधी हो
जाता है। बार-बार असमय पर ज्वर बढ़ता रहता है, शेष समय मंद-मंद बना रहता है। यकृत (Liver)-प्लीहा (Spleen) की भी वृद्धि हो जाती है। ऐसे बिगड़े हुए
ज्वरों में ह्रदय और मस्तिष्क के रक्षण की आवश्यकता होने पर बृहत कस्तुरी भैरव रस को
प्रधानता दी जाती है।
मानस विकार: -
कोमल प्रकृति के पुरुष, स्त्री और बलकों को जाग्रत या
स्वप्नावस्था में भय लग जाने पर मल-मूत्र त्याग हो जाता है। फिर पचन क्रिया और
ह्रदय क्रिया दूषित हो जाती है। भय का संस्कार कभी-कभी ऐसा दृद्ध हो जाता है, कि थोड़े-थोड़े समय पर बार-बार स्मरण हो जाता है और फिर
मल-मूत्र का त्याग हो जाता है। इसे अभिचारज विकार माना है। किसी को ज्वर रहता है।
किसी को नहीं। किसी को रक्तवमन (खून की उल्टी) और रक्तातिसार (खून के दस्त) की
संप्राप्ति हो जाती है। इन सब विकारों का मूल मानस आघात है। अतः इस पर बृहत
कस्तुरी भैरव रस का सेवन कराना आशीर्वाद के समान है।
उदर कृमि (पेट के
कीड़े): - पेट में कृमि हो जाने पर पांडु (Anaemia) और हलिमक की संप्राप्ति होती है। इन
रोगों में पहले कृमिध्न औषधियों द्वारा उदरशुद्धि कर लेनी चाहिये। फिर पांडु, हलिमक और लक्षण रूप से उपस्थित वात्तज आक्षेप, कंडु, त्वचा की शुष्कता, निस्तेजता, अग्निमांद्य आदि विकारों को दूर करने के
लिये बृहत कस्तुरी भैरव रस का सेवन कराया जाता है।
उन्माद (Insanity): - कभी-कभी भय आदि आघात से ज्वर या अतिसार नहीं होता।
वातसंस्थान पर आघात पहुंच जाने से उन्माद उपस्थित हो जाता है। उसे भूत प्रकोपज
आक्षेप कहा है। यह कुछ समय शांत रहता है, फिर मन पर परिणाम होकर क्रोध पूर्वक साहस
कार्य करना, दौड़ना,
भागना, कूदना,
मारना आदि होता है। इस पर बृहत कस्तुरी भैरव रस या अन्य कस्तुरी प्रधान वात
कुलांतक रस आदि औषधि दी जाती है।
पूर्व ज्वर: - अन्तर्विद्रधि, क्षत, वृक्काश्मरी (Stone in Kidney) आदि होने पर पूय (Puss) की उत्पत्ति होती है। फिर यह पूय रक्त में जाता रहता
है। रक्त में अधिक परिमाण होने पर शीतज्वर (ठंड के साथ बुखार) आ जाता है। यह ज्वर
(बुखार) प्रायः दिन में 2-3 बार आ जाता है। फिर पसीना आकर चला जाता है। पसीना आने
पर प्रसन्नता या स्फूर्ति नहीं आती, विपरीत निर्बलता बढ़ती है। मूत्र में पूय
निकलता है। ज्वर 103॰ लगभग हो जाता है। उस ज्वर के दमन और ह्रदय को बल देने के
लिये बृहत कस्तुरी भैरव रस दिया जाता है।
इस बृहत कस्तुरी
भैरव रस में प्रधान औषधि कस्तुरी है। वह आक्षेपनिवारक, उत्तेजक, मस्तिष्क शामक, वातहर (वात का नाश करनेवाली), निद्राप्रद, स्वेदजनन (पसीना लाने वाली), मूत्रल और आम पाचन गुण दर्शाती है। इन गुणों के कारण
सन्निपात में शक्तिपात होने पर यह रस तत्काल प्रभाव दर्शाता है।
दूसरी औषधि
कर्पूर है। कर्पूर तत्काल पचन-संस्थान पर प्रभाव पहुंचाता है, आमपाचन, किटाणुनाशक और आमाशय (Stomach) संचालन क्रिया को बढ़ाना, ये 3 गुण दर्शाता है। एवं रक्तवाहिनियों का प्रसारण, रकताभिसरण क्रिया (Blood
Circulation), ह्रदय और श्वसन यंत्र को उत्तेजना देना, मस्तिष्क को थोड़ा उत्तेजित करके शांत बनाना, शारीरिक उत्ताप (Temperature)
को कम कराना और त्वचा को बल प्रदान करना आदि कार्य भी करता है।
ताम्र भस्म: यकृत
(liver) को उत्तेजना देने वाली होने से अंत्र (Intestine) में अधिक पित्त स्त्राव कराकर अंत्र में रहे विष (Toxin), आम (अपक्व अन्न रस = Toxin)
और किटाणुओं को जलाती है तथा मल को बाहर फेंकने में और रक्त का प्रसादन करने में
सहायक बनती है।
हरताल: ज्वरध्न
(बुखार का नाश करने वाला), किटाणु विनाशक, आमपाचन, कफध्न (कफ का नाश करने वाला) और बल्य है।
अभ्रक भस्म: मस्तिष्क, वातसंस्थान, ह्रदय और मांससंस्थान के लिये पोशाक, उत्तेजक, कफध्न,
लीन विष नाशक (शरीर में मिले हुए विष को नाश करने वाली) और रसायन अर्थात धातु
परिपोषण क्रिया (Constructive Metabolism) सुधारक है।
सुवर्ण: मस्तिष्क, वात नाड़ीसंस्थान और ह्रदय के लिये बल्य, किटाणु नाशक, आमविषध्न और रसायन है। रौप्य भस्म:
वातनाशक, आमविषनाशक,
मूत्रसंस्थान के लिये बल्य है। मुक्ता और प्रवाल: मस्तिष्क और ह्रदय के संरक्षक, उत्तापहर, निद्राप्रद, रक्तशुद्धिकर, पित्तशामक और त्वचापोशाक है। लोह भस्म:
रक्ताभिसरण क्रिया वर्धक, रक्तप्रसादक, मूत्रशोधक, लीन विषनाशक और रसायन है। शेष द्रव्य
सौम्य है और भिन्न-भिन्न लक्षणों को दूर करने में सहायक है। उन सब द्रव्यों के
संयोग से यह रस सर्वज्वर विनाशक और त्रिदोषशामक बना है।
मात्रा: 1-2 गोली
अदरक के रस, नागरवेल के पान के रस, अर्कादि क्वाथ, तगरादि कषाय या देवदार्वादि क्वाथ के साथ
देवें। (1 गोली = 125 mg)
घटक द्रव्य (Brihat Kasturi Bhairav Ras
Ingredients): कस्तुरी, कर्पूर, ताम्रभस्म,
धाय के फूल, कौंच के बीज, रौप्य भस्म, सुवर्ण भस्म, मोतीपिष्टी, प्रवालपिष्टी, लोह भस्म, पाठा,
वायविडंग, नागरमोथा,
सोंठ, खस, शुद्ध हरताल (माणिक्य रस), अभ्रक भस्म और आंवले। भावना: आक के पत्तों का
स्वरस।
0 टिप्पणियाँ: