मंगलवार, 5 मार्च 2019

योगेंद्र रस के फायदे / Yogendra Ras Benefits


योगेंद्र रस (Yogendra Ras) के सेवन से वात-पित्तज रोग – प्रमेह , बहुमूत्र, मूत्राघात (पेशाब की उत्पत्ति कम होना), अपस्मार (Epilepsy), भगंदर, गुदरोग, उन्माद (Insanity), मूर्छा, राजयक्षमा (TB), पक्षाघात, इंद्रियों की कमजोरी, शूल (दर्द) और अम्लपित्त (Acidity) आदि समस्त रोग नष्ट होते है। त्रिफला के स्वरस अथवा शक्कर या च्यवनप्राशावलेह के साथ सेवन कराने से स्वस्थ मनुष्य कामदेव के समान तेजस्वी हो जाता है। निर्बलों को एक-एक गोली गाय के दूध के साथ देवें। पुराना वात, अपस्मार, उन्माद, हिस्टीरिया आदि रोगों में सारस्वतारिष्ट या धमासा, ब्राह्मी और जटामांसी के क्वाथ के साथ देना चाहिये।

यह योगेंद्र रस (Yogendra Ras) आयुर्वेदिक औषधियों में एक उत्कृष्ट और वीर्यवान वातशामक औषध है। यह विशेषतः ह्रदय, मस्तिष्क, वातवहानाड़ियाँ, मन और रक्त पर अपना प्रभाव दर्शाता है। परंपरागत पचन-संस्थान और मूत्र-संस्थान पर भी असर पहुंचाता है। इसके सेवन से वातवहानाड़ियाँ सबल होती है; अतः जीर्ण (पुराना) वातविकार (Musculoskeletal Disorder) के साथ पित्तप्रकोपजन्य दाह (जलन), व्याकुलता, निद्रानाश, मुखपाक (मुंह में छाले), अपचन आदि लक्षण हो, तब विशेष लाभदायक है। जीर्ण वातविकार, अपस्मार और उन्माद आदि रोगों में यह निर्भयतापूर्वक प्रयुक्त किया जाता है।

योगेंद्र रस में ह्रद्य (ह्रदय को ताकत देने वाला) गुण होने से ह्रदय बलवान बनता है और ह्रदय की संकोच-विकास क्रिया नियमित होने से स्पंदन संख्या कम हो जाती है। रक्त में रहे विष (Toxin) और किटाणुओं का नाश होकर रक्ताणुओं की वृद्धि होती है। इस हेतु से इस रस से रोग शमन के साथ शारीरिक शक्ति की भी वृद्धि होती जाती है।

इस योगेंद्र रस (Yogendra Ras) के सेवन से पचनेन्द्रिय सबल होने पर मूत्रसंस्थान के प्रमेह आदि रोग का भी निवारण हो जाता है; शुक्र शुद्ध और गाढ़ा बनता है; कामोत्तेजना होती है और देह दिव्य और तेजस्वी बन जाता है। मूत्रसंस्थान के रोगों पर इसे शिलाजीत के साथ देना चाहिये। 
अति व्यवाय (स्त्री-समागम) से उत्पन्न क्षयरोग (TB) की प्रथम और द्वित्य अवस्था में दाह (जलन) होता हो, वीर्य पतला हो गया हो, स्वप्नदोष होता रहता हो, शिथिलता और व्याकुलता बनी रहती हो, तो इस रस का सेवन करने से क्षय-किटाणुओ का नाश होता है, दाह शमन होता है और वीर्य सुद्रद्ध होता है। फिर निर्बलता और व्याकुलता भी दूर होती है।

अपस्मार (Epilepsy) और उन्माद (Insanity) की उत्पत्ति रक्त में विषवृद्धि होकर मस्तिष्क विकृति होने पर होती है। दोनों रोगों पर स्मृतिसागर, उन्मादगजकेसरी और भूतभैरव रस लाभदायक है, परंतु कितनेक पित्तप्रधान प्रकृतिवाले पुरुष रोगी तथा सगर्भा, प्रसूता, छोटे बच्चे की माता आदि नाजुक स्वभाववाली स्त्री रुग्णाओं से ताम्र भस्म, हरताल, मैनसिल आदि उग्र औषधियाँ सहन नहीं होती। उनको रक्तप्रसादक, बृहणीय (शरीर को पोषण देने वाला) और जीवनीय गुणयुक्त शीतल औषधि देनी चाहिये। इन गुणो का समन्वय योगेंद्र रस में होने से यह अच्छा लाभ पहुंचाता है।

संक्षेप में यह रसायन अनेक महारोगों की अद्वित्य औषधि है। जो रोग अन्य औषधियों के दिर्ध काल सेवन से भी निवृत न हुए हो वे इस औषधि के सेवन से थोड़े ही दिनों में निवृत हो जाते है।

मात्रा: 1 से 2 गोली रोगानुसार अनुपान के साथ दें।

योगेंद्र रस घटक द्रव्य तथा निर्माण विधि (Yogendra Ras Ingredients): रससिंदूर 2 तोले; सुवर्ण भस्म, कान्त लोह भस्म, अभ्रक भस्म, मुक्तापिष्टी और वङ्गभस्म 1-1 तोला लेवें। सबको यथाविधि मिला 3 दिन घीकुँवार के रस मे मर्दन कर गोला बनावे । फिर एरंड के पत्तोंमें लपेट कच्चे डोरेसे बॉध धान्यराशिमें तीन दिनतक दबादेवे । पश्चात् निकाल खरलकर 1-1 रत्तीकी गोलियाँ बना छाया में सुखा लेवें । (1 रत्ती=121.5 mg)

Ref: भैषज्य रत्नावली 

Yogendra Ras is useful in musculoskeletal disorder, urine problem, epilepsy, insanity and stroke. It is tonic and nutritious. 

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