शुक्रवार, 29 मार्च 2019

विडंगारिष्ट के फायदे / Vidangarishta Benefits


विडंगारिष्ट दीपन, पाचन, ग्राही (जो औषध दीपन, पाचन और उष्ण होने की वजह से शरीर में रहे दोषों को सूखाकर कठिन बनाता है, उसे ग्राही कहते है), किटाणुनाशक और अंत्र-संशोधक है (आंतों को शुद्ध करता है)। मूलग्रंथकार ने नये उत्पन्न होने वाले अंत्रविद्रधि (Abscess on Intestine) आदि विकारों के प्रतिबंध के लिये इस अरिष्ट का निर्माण किया है। यह अरिष्ट आमाशय (Stomach) और अंत्र (Intestine) में स्थित सेंद्रिय विष (Toxin) का रूपांतर करा देता है। किटाणुओं को नष्ट करता है; तथा पचन-क्रिया को बढ़ा देता है। इस हेतु से रस (Plasma) और रक्त की शुद्धि हो जाती है। परिणाम में विद्रधि (Abscess) की उत्पत्ति में रुकावट आ जाती है; एवं भगंदर, गंडमाला (Scrofula) का बल भी घट जाता है। पचनक्रिया बढ़ जाने के कारण दूषित आम (Toxin) और मेद नहीं बनता और वातप्रकोप नहीं होता। जिससे किटाणुजन्य उरुस्तंभ (कमर के नीचे का पक्षाघात), प्रमेह, हनुस्तंभ (Lock Jaw) और प्रत्यष्ठीला (पेडू के नीचे की गांठ जिससे मल-मूत्र बंद हो जाते है, इसका कारण वातरोग है) रोग दूर हो जाते है।

पेट के कृमि पर भी यह विडंगारिष्ट लाभदायक है। यह अरिष्ट छोटे कृमियों को नष्ट कर देता है। एवं बड़े कृमियों की उत्पत्ति को रोकने में हितावह है। बड़े कृमियों को कृमिनाशक औषध और विरेचन द्वारा निकाल, फिर इस विडंगारिष्ट का सेवन कराया जाय, तो अंत्र और रक्त में रहे हुए कृमिजन्य विष और अंडे नष्ट हो जाते है। अंत्र निर्दोष होकर सत्वर सबल बन जाते है। फिर कृमि रोग की अथवा कृमि जन्य पांडु (Anaemia), उदरशूल (पेट दर्द), अतिसार (Diarrhoea), उल्टी, ह्रदयरोग, शिर दर्द आदि की पुनः उत्पत्ति नहीं हो सकती।

मात्रा: 10 से 20 ml समान मात्रा में पानी मिलाकर दिन में दो बार।

घटक द्रव्य (Vidangarishta Ingredients): वायविडंग, पिपलामूल, रास्ना, कूड़े की छाल, इन्द्रजौ, पाठा, एलवालुक, आंवला, शहद, धाय के फूल, त्रिजात (दालचीनी, तेजपात और छोटी इलायची के दाने), प्रियंगु, कंचनार की छाल, लोध और त्रिकटु (सोंठ, कालीमिर्च और पीपल)

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