वातकुलांतक रस
महा घोर अपस्मार (Epilepsy), हिस्टीरिया, मूर्छा, आक्षेपयुक्त (झटके के साथ होनेवाले रोग)
विविध वातरोग, निद्रानाश,
प्रबल हिक्का, धनुर्वात,
सूतिकारोग (Puerperal Diseases) में आक्षेप (झटका) आदि सबको दूर करता है; और मन को प्रसन्न बनाता है। एवं सन्निपात, न्यूमोनिया आदि रोगों में बुद्धिभ्रंश, मूर्छा, कंप,
आक्षेप, प्रलाप (बेहोशी में बोलना) आदि उपद्रवों
को शमन कर निद्रा लाने के लिये भी यह रस हितकर है।
हिस्टीरिया में
निद्रानाश को दूर करने के लिये यह वातकुलांतक रस महाऔषध है। मानसिक विकृति जन्य
अपस्मार में अभ्रक भस्म आध-आध रत्ती (1 रत्ती = 121.5 mg) मिलाते रहने से त्वरित लाभ होता है। मानसिक
व्याघातजन्य मूर्छा में भी अभ्रक भस्म के साथ देना विशेष हितकर माना गया है।
धनुर्वात, बालकंप,
ह्रदय कंप आदि वातवाहिनियों की विकृति पर यह अति हितावह है।
मात्रा: 1-1 गोली
दिन में 2 या 3 बार जटामांसी के क्वाथ से दें।
घटक द्रव्य:
कस्तुरी, शुद्ध मैनसिल, नागकेसर, बहेड़ा,
शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, जायफल, इलायची,
लौंग और ब्राह्मी क्वाथ।
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