त्रिफला धृत के सेवन
से सब प्रकार के नेत्ररोग (आंखो के रोग) दूर हो जाते है। यह धृत रुधिर (खून) के बढ़ने
या दूषित होने से नेत्र में जो दोष उत्पन्न हुआ हो,
रतोंधी (Night Blindness), तिमिर,
मोतिया बिन्दु, मांस बढ़ना,
नेत्र की लाली, तीव्र जलन सहित नेत्र की लाली, मोफनी के बाल गिरना,
वातज, पित्तज और कफज नेत्र रोग, अंधता, मंद दृष्टि, कफ और वायु से दूषित दृष्टि, वात और पित्तप्रकोप से नेत्रस्त्राव, खुजली, आसन्नदृष्टि (दूर की वस्तु स्पष्ट न दिखना
– Short Sight), दूरदृष्टि (दूर की वस्तु अच्छी दिखना किन्तु
समीप की वस्तु या छोटे अक्षर स्पष्ट न दिखना – Long
Sight) आदि समस्त नेत्र रोगों को नष्ट करके गृध्र
के समान प्रबल दृष्टि बनाता है। शरीर बल, पचनशक्ति और शारीरिक कांति को बढ़ाता है। इस
त्रिफला धृत का 4-6 मास तक श्रद्धापूर्वक पथ्य सहित सेवन करने से लाभ मिलता है। पुराने
कब्ज के रोगियों की अंतड़ी (Intestine), मेदा और यकृत (Liver) की शुद्धि हो जाती है।
मोतिया बिन्दु का
विष (Toxin) रक्त में से धीरे-धीरे दृष्टिमणि (Lens) में पहुंचता है। फिर दृष्टिमणि के तन्तु दूर-दूर होते
जाते है, जिससे बीच में दूषित रस भरकर अपारदर्शकता
आने लगती है। यदि इस रोग की प्रारंभ की अवस्था में ही इस त्रिफला धृत का सेवन कराया
जाय, नेत्र में नेत्रसुदर्शन अर्क डाला जाय तथा
विषवर्धक तमाखू आदि द्रव्यों का त्याग किया जाय तो मोतिया बिन्दु की वृद्धि रुक जाती
है, इतना ही नहीं अनेकों की दृष्टिमणि पारदर्शक
होकर मोतिया बिन्दु नष्ट हो जाता है।
मात्रा: 12 से 24
ग्राम तक दिन में 2 बार भोजन के साथ।
घटक द्रव्य: त्रिफला
का क्वाथ, भांगरे का रस, अडूसे का रस, आंवले का रस, शतवार का रस, गिलोय का रस, बकरी का दूध, पीपल,
मिश्री, मुनक्का,
हरड़, बहेड़ा,
आंवला, नीले कमल,
क्षीरकाकोली, असगंध की जड़, कटेली और घी।
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