नित्यानंद रस
श्लीपद रोग (हाथीपगा) पर दिव्य औषध है। कफजन्य और कफवातजन्य श्लीपद, जिसमें त्वचा का रंग काला, ऊपर में चीरा हो गया हो, वेदना तीव्र हो, बुखार कम हो, कभी बढ़ जाता हो, पैर जड़,
अति मोटा, फीका सफेद रंग का हो, खाज बहुत आती हो,
क्लेद निकलता हो, ऐसे लक्षणयुक्त श्लीपद, जो रस, रक्त,
मांस, मेद या शुक्रगत हो, इन सबको यह रसायन नष्ट करता है। इसके अलावा अर्बुद
(रसोली), गंडमाला,
अति पुरानी अंत्रवृद्धि, वातपित्तज और श्लैष्मिक गुद रोग और कृमि
रोग को दूर करके अग्नि को प्रदीप्त करता है, तथा बल-वीर्य की वृद्धि करता है।
श्लीपद रोग
(हाथीपगा) अधिक जलयुक्त प्रदेश, शीतल सील वाले स्थानों में रहने वालो को
होता है। जिस जलमय स्थान में पत्र-फूल-फल आदि कूड़ा-कचरा संचित होकर दुर्गंध
उत्पन्न होती है, उस स्थान वासियो के त्वचागत कफ दोष में
विकृति होती है। प्रारंभ में किसी स्थान में त्वचा मोटी होती है, तथा हाथ-पैर, कान की पाली, नेत्र की मोफणी, शिश्न,
ओष्ठ और नाक आदि स्थानों में त्वचा मोटी हो जाती है,
एवं मंद-मंद ज्वर (बुखार) रहता है। ज्वर रहने पर शोथ (सूजन) अधिक होता है।
कफ-प्रधान चिकित्सा करने पर ज्वरसह शोथ (सूजन) कम हो जाता है।
डाक्टरी मतानुसार
यह व्याधि फाइलेरिया (Filaria) नामक किटाणु जनित है। यह बंगाल, कोचीन, मलाबार आदि परदेशो में अधिक होता है। यह
रोग पैर के अलावा वृषण, लिंग,
हाथ आदि स्थानों में भी होता है। इस व्याधि पर इस नित्यानंद रस के दिर्धकाल सेवन
से ही लाभ होता है। साथ-साथ गर्जन तेल की मालिश भी कराते रहना चाहिये। रोग अति
पुराना हो जाने पर अस्त्रचिकित्सा का आश्रय लेना चाहिये।
मात्रा: 1 से 2 गोली दिन में 2 बार ठंडे पानी के साथ दें।
घटक द्रव्य (Nityanand Ras Ingredients): पारा,
शुद्ध गंधक, ताम्र भस्म, वंग भस्म, शुद्ध हरताल, शुद्ध नीलाथोथा, शंख भस्म,
कांस्य भस्म, कौड़ी भस्म,
लोह भस्म, हरड़,
बहेड़ा, आंवला,
सौंठ, कालीमिर्च,
पीपल, वायविडंग,
सैंधानमक, कालानमक,
बीडनमक, काचनमक,
समुद्रनमक, चव्य,
पीपलामूल, हाऊबेर,
बच, कचूर,
पाठा, देवदारू,
छोटी इलायची और विधारा। क्वाथ: निसोत, चित्रकमूल,
दंतीमूल और हरड़।
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