अर्शकुठार रस सब
प्रकार के बवासीर – रक्तार्श, वातार्श आदि को छेदन करने में कुल्हाड़ी
के समान है। इसके सेवन से मलशुद्धि बराबर होती रहती है, पाचनशक्ति सबल बनती है,
और सेवन के प्रारंभ से दाह (जलन) का शमन होता है। इस को सेवन करने से एक या दो
जुलाब लगते है। परीक्षित है।
इस अर्शकुठार रस
के सेवन के साथ-साथ अगर कासीसादि तेल को बवासीर के मस्से पर लगाया जाय तो बहुत
फायदा होता है। कासीसादि तेल एक उत्तम मस्से का नाश करने वाला तेल है जो हमारा
आजमाया हुआ है। इसके लगाने से कोई नुकसान नहीं होता। हमने जीतने भी बवासीर के रोगी
पर आजमाया है, यह कामयाब रहा है। बहोत बार का परीक्षित
है।
अगर कब्ज रहता है, तो छोटी हरड़ जिसको हिमज भी कहते है, उसको एरंड तेल में भूने। जब सहज लाल-पीला सा रंग हो
जाये तब उतार लें। फिर उसका बारीक चूर्ण कर रख लें। इस चूर्ण को “एरंड भृष्ट हरड़े”
भी कहते है। यह बाजार में भी मिलता है, मगर घर पर बनाया हुआ अधिक गुणकारक मालूम
हुआ है। रात को सोते समय एक छोटा चम्मच लेने से सुबह पेट साफ हो जाता है। हमारे
अनुभव में पेट साफ करने में यह घर का बनाया हुआ चूर्ण जितना कामयाब हुआ है उतनी और
कोई दवा कामयाब नहीं हुई है। आर्यभिषक में लिखा है “यह
चूर्ण रेचक होने से पेट के कई रोगों का नाश करता है;
पेट में जमे मल को बाहर निकालता है और निःसंदेह बवासीर का नाश करता है” एक बार प्रयोग करने लायक है। हमारा बहोत बार का
परीक्षित है।
अर्शकुठार रस घटक
द्रव्य: शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, लोह भस्म, अभ्रक भस्म, बेलगिरी, चित्रकमूल,
कलिहारी, सौंठ,
मिर्च, पीपल,
पित्तपापड़ा, दंतीमूल,
सोहागे का फुला, जवाखार और सैंधानमक, थूहर का दूध।
मात्रा: 1 से 2
गोली 21 दिन तक सुबह कुटजावलेह, गुलकंद अथवा जल के साथ देवें।
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