रविवार, 24 फ़रवरी 2019

त्रिमूर्ति रस के फायदे | मोटापा, सूजन, अग्निमांद्य | Trimurti Ras Benefits


त्रिमूर्ति रस का उपयोग मेद (मोटापा), शोथ (सूजन), अग्निमांद्य और आमवात (Rheumatism) को दूर करने के लिये होता है। यह रसायन पचनेन्द्रिय से संबंध वाली वातवाहिनिया और पचन क्रिया करने वाले अवयव, सबको सबल बनाता है। इस रसायन के सेवन से आमाशय रस (Gastric Juice in Stomach) की उत्पत्ति सत्वर बढ़ जाती है। आम (कमजोर पचन शक्ति से अन्न पूरी तरह से नहीं पचता और जो अपक्व अन्न रस है उसे आम कहते है जो एक प्रकार का विष (Toxin) है) और मेद (चरबी) जलने लगता है। खून के भीतर और त्वचा से संबंध वाले मेद के अणु गलने लगते है। आमाशय (Stomach) और अंत्र (Intestine) में उत्पन्न सेंद्रिय विष या किटाणु नष्ट होने लगते है। मलशुद्धि नियमित होने लगती है तथा वातवाहिनिया (Air Ducts) सबल बनकर पचनेन्द्रिय संस्थान को सबल बना देती है। फिर पचन क्रिया बलवान होने पर मेद, मेद जनित शोथ (सूजन) और आमवात सहज दूर हो जाते है।

मेदवृद्धि (Obesity) में जो मेद है, वह शरीर को मोटा तो बना देता है, किन्तु शरीर का पोषण नही करता, विपरीत शरीर के बल का शोषण करता है। यह मेद दूषित होता है। मेदोरोग अधिक बढ़ने पर थोड़े परिश्रम से श्वास भर जाता है, भूख, प्यास का वेग सहन नही होता, शारीरिक परिश्रम करने से मन घबराता है, शरीर भार रूप भासता है। पेट मोटा हो जाता है, मेद जलने से शरीर पर चिकना पसीना आता है। पसीने में दुर्गंध भी अधिक होती है, निद्रा अधिक सताती है, अनेक बार पेट में वायु भरा है, ऐसा भासता है और मन में व्याकुलता बनी रहती है। ऐसी स्थिति में त्रिमूर्ति रस का सेवन अति हितावह है। 3 से 4 मास तक पथ्यपालन पूर्वक औषध सेवन किया जाय, तो रक्त सबल बनने पर लाभ हो जाता है।

त्रिमूर्ति रस में कज्जली रसायन (पारद और गंधक) – जन्तुध्न (जंतुओं का नाश करने वाला) और कोष्ठस्थ दोष नाशक (पेट के भीतर के दोषों का नाश करने वाला) है। लोह भस्म – रक्ताणुवर्धक, रक्तप्रसादक, बल्य, रसायन और दीपन-पाचन है। निर्गुडी – वातवाहिनियों को सबल बनाती है। पडूषण – दीपन, पाचन, मेदोहर (मोटापे का नाश करने वाला) और यकृत (Liver) को ताकत देने वाला है। त्रिफला – पाचक, उदरशोधक (पेट को शुद्ध करने वाला) और रसायन; पंचलवण – पाचक, मेदोहर और आमवात (Rheumatism) नाशक है। बावची – किटाणुनाशक, मेदोहर और कफशोधक है। लोह –अंत्रशक्ति वर्धक और विषहर; शहद – मेदोहर और रसायन है।

मात्रा: 1 से 2 गोली सुबह-शाम।

सूचना: घी, शक्कर, चावल और देर से पचने वाले स्निग्ध द्रव्यों का सेवन ना करें। हो सके उतना शारीरिक श्रम करें। प्रकृतिविरोधी आहार-विहार का त्याग करें।

घटक द्रव्य: शुद्ध पारद, शुद्ध गंधक, लोह भस्म, पडूषण (पीपल, पिपलामूल, चव्य, चित्रक, सौंठ और कालीमिर्च), त्रिफला, पांचों नमक (सैंधा नमक, सांभर नमक, समुद्र नमक, काच नमक, काला नमक) और बाबची।

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