त्रयोदशांग
गुग्गुल (Trayodashang Guggulu) कटिवेदना (कमर का दर्द), कटिग्रह (Lower Back Pain), गृध्रसी (Sciatica), जानु (घुटना), पैर, अस्थि (हड्डी), मज्जा एवं स्नायुगत वायु, हनुग्रह (Lock Jaw), अत्यधिक स्वप्नदोष से उत्पन्न सर्वांग
वेदना (पूरे शरीर में वेदना), कटिशूल (Back
Pain) एवं मेरुदंड शूल (Pain in Spinal Cord), त्रिकशूल (पीठ के नीचे के हिस्से का दर्द) तथा कुष्ठ (Skin Diseases) आदि व्याधियों को नष्ट करने में परम
लाभप्रद है। इतना ही नहीं यह उचित अनुपान एवं नियमित प्रयोग से वातज और श्लैष्मिक
व्याधि, ह्रदय रोग,
योनिदोष, खंजवात (एक पैर स्तंभित होना) और अस्थि मज्जा आदि विकृतियों को
दूर करता है।
यदि पक्षाघात की
शुरू वाली अवस्था में इस त्रयोदशांग गुग्गुल का प्रयोग दशमूल क्वाथ के साथ
धैर्यपूर्वक किया जाय तो कुछ ही दिनों में रोग विनष्ट हो जाता है।
ध्यान रहे!
गृध्रसी (Sciatica), स्नायुगत वात (Muscle Pain), कुष्ठ आदि पुराने रोगों में इस औषधि को
धैर्यपूर्वक निरंतर नित्य नियमित रूप से 6-7 महीनों तक सेवन करना चाहिये तब ही
इच्छित लाभ प्राप्त हो सकता है।
उपर्युक्त
व्याधियों के अतिरिक्त अन्य व्याधियों में यह प्रायः गुणकारी नहीं है वरना हानि ही
पहुंचाता है। पित्त प्रकृति वालों को यह पर्याप्त हानि पहुंचाता है।
त्रयोदशांग
गुग्गुल (Trayodashang Guggulu) का नये रोग में निरंतर एक मास तक तथा
पुराने रोग में 3-4 मास तक तथा किसी-किसी को 6 मास तक सेवन कराने से पर्याप्त लाभ
मिलता है।
त्रयोदशांग गुग्गुल वातनाशक, आमशोषक (आम=अपक्व
अन्न रस जो एक प्रकार का विष बन जाता है और शरीर में रोग पैदा करता है), शरीरपोषक, त्रिदोषनाशक, पाचक,
वातानुलोमक (वायु की गति को नीचे की तरफ करनेवाला), शोथनाशक (सूजन का नाश करनेवाला), शिरा, धमनी, स्नायु, कण्डरा, मांसपेशी और लसिकाओं का पोषण करनेवाला है तथा तत्तत्स्थानों में प्रकुपित
वात द्वारा होनेवाले विकारों को नष्ट करता है । यह समस्त सन्धियो की श्लेष्मकलाओ (Mucous Membrane) में से वात विकारों को नष्ट करके उन्हें
सक्रिय करती है । अतः सम्पूर्ण सन्धियो के विकार इसके सेवन से दूर होते है ।
यह औषधि सेवन काल
में थोड़ी उष्णता अनुभूत होती है एवं इसके साथ पर्याप्त मात्रा में गाय का दूध तथा
थोड़ा-थोड़ा घी खूब ठांसकर खिलना चाहिये।
सूचना: अतिसार (Diarrhoea) के रोगी, गर्भवती,
क्षयरोग (TB) से ग्रस्त,
पित्त प्रकृति, अधिक ताप वाले तथा शरीर से क्षीण (दुबला)
एवं दुर्बल व्यक्तियों को इसका सेवन नहीं कराना चाहिये।
मात्रा: आवश्यकता
अनुसार 2 से 4 गोली। रोगी की प्रकृति, शारीरिक शक्ति तथा रोग की तीव्र या जीर्ण
दशा के अनुसार औषधि की मात्रा न्यूनाधिक करनी चाहिये।
पथ्य: पथ्य में
पुराने गेहूं तीन भाग और चना एक भाग मिश्रित आटे की रोटी, चने की दाल, मूंग की दाल, परवल, देशी घी (गाय का या भेंस का), चने के बेसन की कढ़ी,
पकौड़े आदि। नारंगी, सेब,
पका पपीता, गाय का उबाला दूध, मुनक्का भुना हुआ आदि।
अपथ्य: अपथ्य में
खेसाड़ी की दाल, अंचार कनौला, खट्टी चीजें, लालमिर्च,
वातवर्धक द्रव्य, दीवा स्वप्न मैथुन, भ्रमण, शारीरिक कठोर श्रम आदि पूर्णतया वर्जित
है।
Ref: भैषज्य
रत्नावली
Trayodashang Guggulu is useful in back pain, lower back pain, total body pain, sciatica, lock jaw and pain in spinal cord.
त्रयोदशांग गुग्गुल घटक द्रव्य तथा निर्माण विधान (Trayodashang Guggulu Ingredients):किकरौली
(कीकर के फल),
असगन्ध, हाऊवेर, गिलोय,
शतावर, गोखरू, विधारा,
रास्ना, सौंफ, कचूर,
अजवायन और सोंठ का चूर्ण प्रत्येक द्रव्य समान भाग लें और सब का
मिश्रित चूर्ण करलें। इस चूर्ण के समान भाग गूगल लें और गूगल से आधा भाग घी ले ।
प्रथम घृत और गूगल को भलीभान्ति आलोडित करें तत्पश्चात् उपरोक्त चूर्ण को उसमे कूट-कूट
कर मिला लें। तैयार होने पर 4-4 रत्ती की गोलियां वनाले। (1 रत्ती=121.5 mg)
Trayodashang Guggulu is useful in back pain, lower back pain, total body pain, sciatica, lock jaw and pain in spinal cord.
Very nice info about Trayodashang guggul. Thanks a lot.
जवाब देंहटाएंHii
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर जानकारी । जय श्रीराम
जवाब देंहटाएंTrayodashang guggulu ke bare me pahli bar zankari mili thank you
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