यह अशोक धृत स्त्रियोके सब प्रकारके रोगोंका नाशक है।
श्वेत, नील और कृष्ण वर्णके भयंकर प्रदर, गर्भाशयमे शूल (दर्द),
कटिशूल (कमर दर्द), मंदाग्नि,
अरुचि, पाण्डु (Anaemia),
कृशता (दुबलापन), श्वास,
कमला (Jaundice) आदिको नष्ट करता है। शरीरबल, कांति और आयुकी वृद्धि करता है।
यदि बीजाशय या बीजाशय
नलिका में विकृति होने से मासिक धर्म के समय वेदना होती हो; रजःस्त्राव पूरा न होता हो तथा प्रदर रूप से स्त्राव होता
रहता हो, तो ऐसी स्थिति में चंद्रांशु रस के साथ इस
अशोक धृत का सेवन 2-4 मास तक कराने से विकार दूर हो जाता है और रुग्णा (रोगी स्त्री)
सबल हो जाती है।
मासिक धर्म की योग्य
शुद्धि न होने पर विष का प्रवेश रक्त द्वारा मस्तिष्क में होता है; नेत्र द्रष्टि मंद हो जाती है तथा शिरदर्द और आलस्य आदि
लक्षण उपस्थित होते है। किसी किसी को श्वास प्रकोप भी हो जाता है। क्वचित उन्माद का
असर आ जाता है। इस रोग पर चंद्रांशु रस के साथ अनुपान रूप से इस अशोक धृत की योजना
की जाती है।
सामान्यतः 50-60 वर्ष
की आयु में मासिक धर्म की निवृति होती है। इसके पहिले कुच्छ समय तक मासिक धर्म की योग्य
शुद्धि नहीं होती। फिर उसी हेतु से सारे शरीर में वेदना होना, मस्तिष्क में भारीपन रहना, व्याकुलता और किसी किसी को स्मृति नाश और उन्माद का असर
होना आदि लक्षण उपस्थित होते है। ऐसी अवस्था में चंद्रांशु रस के साथ अशोक धृत का सेवन
कराया जाय, तो मासिक धर्म की शुद्धि होती है और व्याकुलता
आदि लक्षण दमन हो जाता है।
मात्रा: 12-12 ग्राम
दिन में दो बार।
सूचना:
1. यदि रुग्णा को कब्ज हो, तो मासिक धर्म आने के पहले मृदु विरेचन दे कर पेट शुद्धि
करा लेनी चाहिये।
2. मासिक धर्म के दिनों में 3 दिन तक शीतल वायु का सेवन, शीतल जल से स्नान,
सूर्य के ताप में घूमना, नेत्रों को परिश्रम पहुंचे ऐसा कार्य करना और भारी भोजन ये सब हानिकर
है।
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