इस अमृत भल्लातक रसायन
के सेवन करने से रोगी विध्वान, सिंह के समान बलवान, मजबूत इंद्रियों वाला और बुद्धिमान होता है। इसके
सेवन से शरीर सुवर्ण के समान तेजस्वी बनता है। हिलते हुए दांत द्रद्ध होते है। पके
हुए बाल पुनः काजल के समान काले हो जाते है। त्वचा मुरजाई हुई हो, वह सबल हो जाती है। वृद्ध मनुष्य भी तरुण सद्रश बन
जाता है और सौ वर्ष तक जीता है।
अमृत भल्लातक अवलेह
वातरोग (शरीर में किसी अंग में दर्द या पूरे शरीर में दर्द होना), श्वास रोग, कुष्ठ (Skin
Diseases), वातरक्त,
अर्श (बवासीर) और फिरंग – पूयमेह आदि रोगों के उपद्रवों से पीड़ित तथा कफ और
वातप्रधान रोगों में दिया जाता है। शून्य कुष्ठ होने पर सुई चुभोने या अग्नि से
तपाने पर भी दुःख का असर नहीं होता। गलत कुष्ठ होने पर मुंह फूल कर विचित्र मालूम
पड़ता है। रोग बढ़ने पर नाक, कान गल जाते है और किसी किसी को शरीर में
कीड़े पड़ जाते है। इस रोग की सभी अवस्था में रोग निवारण और बल वृद्धि के लिये यह अमृत
भल्लातक दिया जाता है। पथ्यपालनसह 1-2 मास तक सेवन कराने पर रोग निवृत हो जाता है।
कफ प्रधान श्वास
रोग पुराना होने पर श्वसनयंत्र बिलकुल शिथिल हो जाते है। श्वासप्रणालिकाएं और
फुफ्फुस में कफ भर जाता है। कुछ उत्तेजक कफध्न औषधि लेने या धूम्रपान करने पर कफ
निकलकर छाती हल्की हो जाती है। किन्तु धूम्रपान से पुनः नया कफ उत्पन्न होता है।
फुफ्फुस दिन पर दिन अधिक निर्बल बनता जाता है। उन रोगियों को इस अमृत भल्लातक का
सेवन पथ्य पालन सह शीतकाल में कराने पर फुफ्फुसयंत्र और ह्रदय सबल बन जाता है। कफ
की उत्पत्ति नहीं होती और शारीरिक बल की वृद्धि होती है।
मात्रा: 10 – 10
ग्राम सुबह-शाम।
घटक द्रव्य: भिलावे शुद्ध 4 सेर, दूध 8 सेर, घी 2 सेर, शक्कर 2 सेर, सोंठ, कालीमिर्च, पीपल, हरड़, बहेड़ा, आंवला, कपूर, जटामांसी, निसोथ, वंशलोचन, खैरसार (कत्था), अकरकरा, श्वेतचन्दन, पीपल, शीतलमिर्च, लौंग, सफेद मूसली, काली मूसली, शीतलमिर्च (दूसरी बार), मोचरस, अजवायन, अजमोद, गजपीपल, विदारीकंद, जायफल, नागरमोथा, जावित्री, नंदी वृक्ष की छाल, जीरा, समुद्रशोष, मेदा, महामेदा, लौह भस्म, रससिंदूर, वंग भस्म और केशर यह 36 औषधियाँ 1-1 तोला। भीलवे अत्यंत उष्ण होने के कारण गरम प्रकृतिवालों को यह औषधि अनुकूल नहीं रहती तथा अन्य प्रकृतिवालों को भी संभालपूर्वक इस भल्लातक रसायन का उपयोग करना चाहिये। चिकित्सक की देखरेख में इसका उपयोग करें।
सूचना: इस अमृत
भल्लातक रसायन के सेवन समय ग्रंथकार ने कोई पथ्यापथ्य नहीं बतलाया फिर भी
सेवन करने वालों को चाहिये की मिर्च और नमक हो सके उतना कम करें। तेज खटाई, राई, अति गरम पदार्थ, सूर्य का ताप, अग्नि का सेवन और स्त्री-समागम का त्याग
करना चाहिये। घी, तैल,
तैली द्रव्य – बादाम, पिस्ता,
काजू, चिरौंजी आदि हितावह है। दूध की अपेक्षा
दही अधिक अनुकूल रहता है। इस रसायन का उपयोग करने से पहले आयुर्वेद चिकित्सक की सलाह लें। यह रसायन हानिकारक भी साबित हो सकता है, इसलिये इसका उपयोग करने से पहले अवश्य चिकित्सक की सलाह लें।
अमृत भल्लातक रसायन उष्णबीर्य होता है इसके सेवन काल में स्निग्ध आहार दुध दही घी अवश्य लेने चाहिए।
जवाब देंहटाएंवैद्यराज डा०यु०के०मिश्रा मो० 7903996586,9934889158
अमृत भल्लातक रसायन कहा मिलेगा
जवाब देंहटाएंअमृत भल्लातक रसायन कितनी आयु होने पर ले सकते हे?
जवाब देंहटाएंSince Bhallataka is extremely hot and sharp in its attributes, it should be used with caution. Individuals showing allergic reactions to it should stop and avoid the usage of Bhallataka. Agni Rasayana is balanced formulation with Bhallatak. It offers an efficient treatment for intractable and chronic pain. Agni Rasayana gives better results along with Yogic support of Pranayama and meditation.
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