शुक्रवार, 11 जनवरी 2019

शंख भस्म के फायदे / Benefits of Shankh Bhasma


शंख भस्म उदरवात (पेट की गेस), यकृतवृद्धि (Liver Enlargement), प्लीहावृद्धि (Spleen Enlargement), गुल्म (Abdominal Lump), मंदाग्नि, अतिसार (Diarrhoea), अजीर्ण, अफरा, पेट दर्द, संग्रहणी और नेत्र के फुले आदि रोगों में अति उपयोगी है। स्नायु (नारु) निकला होवे, तब 1-1 ग्राम भस्म दिनमें 2 समय चार दिन तक देते रहने से खून में रहे हुए (किन्तु बाहर न निकले हुए) नारु जल जाते है।

शंख भस्म एक प्रकार का क्षार है। क्षार के गुणधर्म बहुत अंश में इस भस्म में प्रतीत होते है। शंख और वराटिका में गुणों की समानता अधिक है। कारण, दोनों चुने के सेंद्रिय कल्प है।

शंख भस्म में ग्राही अर्थात स्तंभक गुण है, जिससे अतिसार (Diarrhoea) में अच्छी उपयोगी है। ग्रहणी के विकार में शंख भस्म का उपयोग होता है। विशेषतः ग्रहणी में बार-बार पतले दस्त होते हो, पेट दर्द हो और दर्द के वेग के साथ पतले थोड़े-थोड़े दस्त होते हो, तो इस भस्म का अच्छा उपयोग होता है।

पेट में वात (Gas) उत्पन्न होकर अफरा-सा हो जाना, पेट में दर्द होना, कोष्ट (Stomach) की क्रिया स्तंभित-सी होकर अन्न जहा का तहा स्थिर हो जाना, मीठी या जली हुई अथवा अन्न की दूषित स्वाद वाली डकार आना आदि लक्षण होने पर शंख भस्म के उपयोग से उदरवात (पेट की गेस) का शमन हो कर, अन्न पचन होने लगता है, और अफरा तत्काल दूर होता है।

अन्न पचन ठीक न होने से आमाशय या पकवाशय में दर्द उत्पन्न होने पर शंख भस्म घी या नींबू के रस के साथ देनी चाहिये। किन्तु गर्म प्रकृति वाले रोगी को यह भस्म नहीं देनी चाहिये।

शंख भस्म का उपयोग यकृत (Liver) और प्लीहा (Spleen) की क्रिया मंद होने से उत्पन्न होने वाले विकारों में अच्छा होता है। यकृत और प्लीहा वृद्धि में क्षार का अच्छा उपयोग होता है।

ऋतु परिवर्तन से होने वाले अतिसार (Diarrhoea), अपचन जनित और किटाणु जनित विसूचिका (Cholera) में तीव्र वेग कम होने पर इस भस्म का अच्छा उपयोग होता है। कोलेरा की सुधार वाली अवस्था में (जुलाब, उल्टी आदि लक्षण कम होने पर) थोड़े-थोड़े परिणाम में दस्त होने और निर्बलता शेष रहने पर शंख भस्म और सुवर्ण माक्षिक भस्म का उत्तम उपयोग हुआ है।

नेत्र के फुले में शंख भस्म उपयोगी है। इसके अंजन से फुले नष्ट होते है। इस स्थान में इसके रोपण धर्म (घाव को भरने का गुण) का उपयोग हुआ है।

तरुण स्त्री-पुरुषों के मुखदूषिका (तारुण्यपिटिका – मुह पर फुंसियाँ हो जाना) में शंख भस्म खिलाने से उत्तम उपयोग होता है।
शंख भस्म पित्त दोष, रस, रक्त और अस्थि, ये दूष्य; एवं यकृत, प्लीहा, ग्रहणी (Duodenum), पकवाशय (Gall Bladder), बृहदंत्र (Large Intestine), कोष्टग्रंथि, पचनेन्द्रिय, नेत्र और मुख ये स्थान, इन सब पर असर पहुंचाती है।

अम्लपित्त (Acidity) रोग में अपचन, पेट में भारीपन, खट्टी उल्टी और छाती में जलन रहता हो, तब शंख भस्म के साथ नारिकेल क्षार और नौसादर मिलाकर भोजन कर लेने पर घी या नींबू के रस के साथ देने से विशेष लाभ होता है। किन्तु जिनको भोजन के बाद जलन बढ़ जाती हो, मुखपाक (मुंह में छाले) भी रहते हो, उनको भोजन के बाद 3-3 घंटे पर शंख भस्म, शुक्ति भस्म और अमृतासत्व मिलाकर अनार के शर्बत के साथ देवें।

हिक्का रोग में वेग बढ़ गया हो; शिरदर्द, जलन और वात-पित्त प्रधान लक्षण प्रतीत होते हो; तो शंख भस्म 1-1 घंटे पर देते रहने और सौंठ का कपड़छान चूर्ण सुंघाते रहने से हिक्का रोग एक ही दिन में शमन हो जाता है।

इनके अतिरिक्त यह भस्म पित्तविदग्धज उदावर्त (पेट में गेस उठना) रोग में लाभदायक है। इस रोग में पेट दर्द, अफरा, जलन, पतले दस्त, व्याकुलता, शिरदर्द आदि लक्षण प्रतीत होते है। इन पर शंख भस्म का सेवन पुराने गुड के साथ कराने से थोड़े ही दिनों में रोग दूर हो जाता है।

मात्रा: 125 mg से 500 mg दिन में दो समय, अजीर्ण पर नींबू के रस और मिश्री अथवा गरम जल के साथ या 125 mg हिंग और 6 ग्राम घी के साथ दें। अतिसार और संग्रहणी में बेल के मुरब्बे के साथ। नेत्र के फुले पर दिन में 2 समय अंजन करें। हिक्का में 125 mg काकड़ासिंगी और 250 mg पीपल के चूर्ण के साथ 1-1 घंटे पर 3-4 बार दें। त्रिदोषज पेट दर्द पर कालानमक, भुनी हिंग और त्रिकटु के साथ मिलाकर ताजे जल के साथ देवें।  

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