खदिरारिष्ट (Khadirarishta) के
सेवन से सब प्रकार के कुष्ट (Skin Diseases), पांडु (Anaemia),
ह्रदय रोग, अर्बुद रोग (गांठ), कृमि, श्वास,
रक्तविकार, प्लीहोदर,
गुल्म (Abdominal
Lump) आदि मिटते है।
यह खदिरारिष्ट (Khadirarishta) विलायती
दवाओं से बढ़कर है। इसकी परीक्षा अनेक विध्वानों ने की है। यह जितना खून को शुद्ध करता
है इतना विलायती दवा कदापि नहीं कर सकती। यह अरिष्ट रक्तशोधक ही नहीं किन्तु रक्त वर्धक
भी है। इसके सेवन से सब प्रकार के त्वचा रोग और रक्त विकार के समस्त रोग नष्ट होते
है। कुछ दिन के उपयोग से संचित दूषित रक्त शुद्ध होकर नवीन रक्त बढ़ता है, जिससे शरीर ह्रष्ट पुष्ट होकर कांतिजनक हो जाता है।
इस खदिरारिष्ट का
विशेष परिणाम रक्त (खून), त्वचा और अंत्र (Intestine) पर होता है। अंत्र में रहे सेंद्रिय विष (Toxin) इस अरिष्ट के सेवन से निष्क्रिय होता है। छोटे रेंगने
वाले सूक्ष्म कृमि अंत्र में होने पर उन पर भी इस अरिष्ट का परिणाम होता है। ये
कृमि इस आसव के योग से मूर्छित हो जाते है। उनके अंडे नष्ट होते है। इस तरह अंत्र स्वच्छ
और कृमिविकार से अलिप्त हो जाते है। अंत्रव्रण (Wound
or Ulcer in Intestine) है, तो उसमें अवस्थित किटाणु खदिरारिष्ट से
नष्ट होते है। एवं व्रण भी सरलता से भर जाता है।
इस तरह चर्म
रोगों के कारणभूत होने वाले किटाणुओ को भी यह आसव नष्ट कर देता है। इसी हेतु से इस
खदिरारिष्ट को कुष्टनाशक कहा है। इस अरिष्ट में मिलाये गये बावची और देवदारू में
से कार्यकारी द्रव्य त्वचा द्वारा शरीर से बाहर निकलता रहता है, एवं खदिर भी रक्त में मिश्रित होकर रक्तकृमिओ को
निरुपयोगी बनाता है। इस तरह यह अरिष्ट कुष्टकृमि और कृमिज कुष्ट को नष्ट करता है।
महाकुष्ट (Leprosy) में भी खदिरारिष्ट (Khadirarishta) उत्कृष्ट कार्य करता है। महाकुष्ट
की उत्पत्ति भी किटाणुओं से होती है। इन कुष्टों में रक्त, लसिका, त्वचा,
मांस आदि दूष्य दूषित हो जाते है। ये किटाणु लसिका (Lymph) में बढ़ते है। फिर सर्वत्र फ़ेल
जाते है; और अन्य दूषयों को दूषित कर देते है। इस
अरिष्ट का परिणाम लसिका पर विशेष होता है। इससे कुष्ट को उत्पन्न करने वाले जीवाणु
बढ़ नहीं सकते। फिर धीरे-धीरे शरीर की और धातुओं की दुष्टि भी निवृत हो जाती है।
अंत्र में आमदोष (Toxin) संचित होकर उसका परिणाम रक्त और ह्रदय पर होता है। परिणाम
में ह्रदय स्पंदन की वृद्धि होकर बार-बार घबराहट हो जाती है और प्रस्वेद (पसीना) आ
जाता है। इस लक्षणों पर खदिरारिष्ट उत्तम उपयोगी होता है।
पांडु रोग, अर्बुद, गुल्म (Abdominal
Lump) या अंत्र में गांठ, खांसी, श्वास,
प्लीहोदर, इन रोगों पर खदिरारिष्ट उपयोगी है। इसके योग
से पुराना आमविष का धीरे-धीरे रूपांतर होता जाता है;
रक्तप्रसादन होता है, लसिका और त्वचा शुद्ध होती है।
मात्रा: 15 से 30
ग्राम समान जल मिलाकर सुबह-शाम।
खदिरारिष्ट घटक द्रव्य (Khadirarishta Ingredients): काले खैर की अंतरछाल या लकड़ी का बुरादा 200 तोले, देवदारु 200 तोले, बावची 48 तोले, दारूहल्दी 80 तोले, त्रिफला 80 तोले, मिश्री 5 सेर, शहद 10 सेर, धाय के फूल 80 तोले, पीपल 16 तोले, जायफल, लौंग, शीतलमिर्च, नागकेशर, इलायची, दालचीनी और तेजपात प्रत्येक 4-4 तोले।
खदिरारिष्ट घटक द्रव्य (Khadirarishta Ingredients): काले खैर की अंतरछाल या लकड़ी का बुरादा 200 तोले, देवदारु 200 तोले, बावची 48 तोले, दारूहल्दी 80 तोले, त्रिफला 80 तोले, मिश्री 5 सेर, शहद 10 सेर, धाय के फूल 80 तोले, पीपल 16 तोले, जायफल, लौंग, शीतलमिर्च, नागकेशर, इलायची, दालचीनी और तेजपात प्रत्येक 4-4 तोले।
Ref:
भैषज्य रत्नावली
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जवाब देंहटाएंAsava aur Arishta Nagarjun Pharma ke uttam hai.
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