काम चूड़ामणी रस
विविध रोगों को नष्ट करता है। इसके सेवन से रतिशक्ति (यौनक्रिया की शक्ति) बढ़ती
है। यह वीर्यवर्धक है। इसके प्रयोग से ध्वजभंग (यौन
क्रिया की शक्ति कम होना), प्रमेह,
मूत्ररोग, मंदाग्नि,
सूजन, स्त्रियों के मासिक संबंधी रोग नष्ट होकर
पुष्टि होती है।
काम चूड़ामणी रस शुक्रहीन, गतध्वज (यौन क्रिया की शक्ति का अभाव) और 80 वर्ष के वृद्ध
को भी युवा के समान बल प्रदान करता है। असाध्य से असाध्य ध्वजभंग को भी एक सप्ताह में
लाभ पहुंचाता है। इसके अतिरिक्त प्रमेह, मूत्ररोग,
अग्निमांद्य, शोथ (सूजन), रक्त दोष और स्त्रियों के समस्त रोगों को दूर करता है।
यह रसायन स्त्रियों
के लिये भी अति हितकारक है। जिस तरह पुरुषों के शुक्र को शुद्ध, शीतल, सबल और गाढ़ा बनाता है। उसी तरह स्त्रियों
के रज को भी शुद्ध और सबल बनाता है। पुरुषों के शुक्राशय और शुक्र के समान स्त्रियों
के बीजाशय और रज पर भी लाभ पहुंचाता है।
कितनीक युवतियों को
युवावस्था आने पर भी शरीर कृश (दुबला) होने से बीजाशय का योग्य विकास नहीं होता। फिर
मासिक धर्म नहीं आता। उनको यदि उष्ण, उत्तेजक औषध देकर मासिक धर्म प्रारम्भ कराया
जाय, तो कुछ वर्षो के बाद युवावस्था में ही वृद्ध
बन जाती है। इसके विपरीत काम चूड़ामणी रस + प्रवाल पिष्टी + अमृता सत्व + सितोपलादि
चूर्ण के मिश्रण का सेवन कराया जाय तो शरीर सबल बनता है, तथा बीजाशय, गर्भाशय,
स्तन आदि अवयवों का योग्य विकास होता है और मासिक धर्म आने लगता है।
सर्व प्रथम
रामजीवन नामक युवक पर सन. 1657 में यह काम चूड़ामणी रस बनाकर अजमाया गया। पूर्ण रूप
से लाभान्वित हुआ। यह पूर्ण रूप से ध्वजभंग युवक था। दवा 60 दिन तक दी गई। आशातीत
लाभ हुआ। यह रस बहुत उत्तम है।
घटक द्रव्य: मोती
भस्म, स्वर्ण माक्षिक भस्म, स्वर्ण भस्म, कर्पूर (भीमसेनी), जावित्री, जायफल,
लवंग, वंग भस्म,
चांदी भस्म, दालचीनी,
छोटी इलायची, तेजपत्र और नागकेशर।
मात्रा: 2-2 गोली
दूध की मलाई में या बादाम के हलबे के साथ सुबह-शाम देवें।
पथ्य: तेल, गुड, खटाई का परित्याग करें। दवा लेने के आधा
घंटा बाद दूध लेवें। सेव, मोसंबी,
दाड़िम, अंगूर,
अंजीर, आम आदि ऋतु फल सेवन काल में खावे। बादाम, किशमिश, काजू आदि सूखे मेवा भी पथ्य है।
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