रविवार, 7 अक्तूबर 2018

प्रवाल पंचामृत रस के फायदे / Benefits of Praval Panchamrit Ras


प्रवाल पंचामृत रस आनाह (अफरा), गुल्म (Abdominal Lump), उदररोग (पेट के रोग), प्लीहा (Spleen), बद्धोदर (कब्ज), कास (खांसी), श्वास, मंदाग्नि, कफ-वात प्रकोप से होने वाले रोग, ह्रदय रोग, ग्रहणी, अतिसार (Diarrhoea), प्रमेह, सब प्रकार के मूत्ररोग, मूत्रकृच्छ (मूत्र में जलन), अश्मरी (पथरी) इन सबको दूर करता है।

प्रवाल पंचामृत रस का कार्य विशेषतः मध्यम कोष्ट (Stomach), यकृत (Liver), प्लीहा (Spleen) और ग्रहणी (Duodenum) पर अच्छा होता है। पाचक पित्त में द्रवत्व धर्म बढ़ने पर अन्न पचन होने का धर्म कम हो जाता है। फिर अन्न-विदाह (अन्न पचने की जगह जलने लगता है) और अपचन होने लगता है। इस कारण से कभी-कभी उदर (पेट) में अफरा भी आता है। बार-बार दूषित खट्टी डकार, भोजन करने के कुच्छ समय बाद पेट में भारीपन, पेट खींचना, पेट पर पत्थर बांधने समान जड़ता, शूल या वेदना बहुधा ना हो, बेचैनी, मध्यम कोष्ट (Stomach) में आहार जैसा का वैसा पडा रहा हो ऐसा भासना आदि लक्षण होने पर प्रवाल पंचामृत रस नींबू के रस के साथ देना चाहिये। पुराने विकार में मात्रा कम देनी चाहिये और लंबे समय तक देना चाहिये। कंठ में दाह (गले में जलन), खट्टी डकार आदि पित्त के अम्लता के लक्षण अधिक हो, तो अनार के रस या दाडिमावलेह के साथ देना चाहिये।

इसी तरह अनाह (मलावरोध) के हेतु से मध्यम कोष्ट में वातगुल्म (वायु की गांठ) समान अफरा आता है। यह वायु बृहदंत्र (Large Intestine) में संगृहीत होती है। इस पर प्रवाल पंचामृत रस का अच्छा उपयोग होता है।

पित्त-गुल्म के प्रारंभ में थोडा बुखार, प्यास, मुखमंडल और समस्त शरीर लाल हो जाना, भोजन करने के दो घंटे बाद भयंकर पेट दर्द, पसीना आना, अन्न के विदाह (जलन) के हेतु से छाती में जलन, पेट में दर्द वाले स्थान पर स्पर्श भी सहन न होना आदि लक्षण पित्त-गुल्म के लक्षण है। यह सब लक्षण होने पर प्रवाल पंचामृत रस आंवले के क्वाथ के साथ देने से उत्तम उपयोग होता है।

उदर (पेट) रोग में यकृत वृद्धि (Liver Enlargement) कारण हो, और पित्तप्रधान लक्षण जैसे के – आंख, त्वचा, नाखून और मूत्र में पीलापन; मुख, हाथ और पैर पर थोड़ी सूजन, पेट में वायु भरा रहना, पेट में थोडा पानी भरा रहना, बार-बार घबराहट, प्यास, मूत्र थोडा और अति पीला या लाल रंग का हो जाना, मल कच्चा, सफेद और दुर्गंधयुक्त हो जाना, मलशुद्धि योग्य न होना, कभी कभी छाती में जलन और घबराहट होकर उल्टी होना आदि लक्षण मुख्य होने पर प्रवाल पंचामृत रस का उपयोग अति हितावह है। अनुपान रूप से ताजा दही का पानी देने से पित्तप्रकोप जल्दी शमन होता है।

कास (खांसी) और श्वास रोग में अति घबराहट, अन्न का विदाह (अन्न पेट में जल जाता है), बेचैनी, ठंडे पदार्थ और ठंडी हवा की इच्छा, ठंडे पदार्थ और ठंडी हवा अच्छी लगना, दूध, अनार दाने आदि पित्तशामक वस्तु अच्छी लगना आदि लक्षण होने पर प्रवाल पंचामृत रस का उपयोग करना चाहिये।

पुराना अग्निमांद्य होने पर पचनेन्द्रिय संस्था (Digestion Sources) अशक्त हो जाती है; जिस से पाचक रस (Gastric Juice) का व्यवस्थित निर्माण नहीं होता। अपचन, पेट में वायु का भरा रहना, अफरा, दूषित डकार, रस की उतपत्त योग्य न होने से रक्त आदि धातुओं में क्षीणता आकर शरीर कृश और अशक्त हो जाना आदि लक्षण प्रतीत होते है। उस पर प्रवाल पंचामृत रस का उपयोग उत्तम होता है।

पित्त की विकृति से अतिसार (Diarrhoea) उत्पन्न हुआ हो, फिर उसी से संग्रहणी (Chronic Diarrhoea) हुई हो, तो भी प्रवाल पंचामृत रस का प्रयोग करना चाहिये। इससे पित्त प्रधान अतिसार और संग्रहणी में पित्तप्रकोप का शमन हो कर सत्वर रोगनिवारण होता है।

प्रमेह के विकार में पुराना अपचन कारण हो या तीव्र पित्तदोष की प्रधानता हो, तो प्रवाल पंचामृत रस उत्कृष्ट कार्य करता है। अतिशय प्यास, इस तरह मूत्र का प्रमाण अधिक और बार-बार होना, मूत्र काला, नीला, अति पीला या अति लाल होना, चिपचिपा पसीना सारे शरीर में और हाथ-पैरों के तलो में दाह, बार-बार गला सुखना, पानी पीने पर भी संतोष न होना आदि लक्षण होने पर प्रवाल पंचामृत रस देना चाहिये।

मात्रा: 125 से 250 mg दिन में 2 बार शहद और पीपल, गुलकंद, मात्र शहद, नींबू के रस अथवा अनार के रस के साथ देवें।

प्रवाल पंचामृत रस घटक द्रव्य (Praval Panchamrit Ras Ingredients): प्रवाल 2 तोले; मोती, शंख, मोती की सीप और कौड़ी 1-1 तोला। भावना: आक का दूध। कितनेक वैध आक के दूध के बदले में गोदुग्ध का उपयोग करते है। यह विशेष सौम्य और विशेष पित्तशामक होता है। आक के दूधवाला योग थोड़ा उग्र रहता है। इस औषधि में पारद नहीं है; परंतु रसायन के समान गुण होने से शास्त्रकारों ने प्रवाल पंचामृत रस नाम रखा है। रस औषध में पारद होता है लेकिन इसमें नहीं है।

Ref: योगरत्नाकर

Praval Panchamrit Ras is useful in constipation, tumour, abdominal diseases, cough, asthma, indigestion, diarrhoea, cholera, heart diseases and urine irritation. It regulates the functioning of bowel and helps to improve digestion.  
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1 टिप्पणी:

  1. How many days Praval Panchmrit tablet (1) daily can be taken for irritable bowl syndrome. Can I know practical experience of a person treated with Praval PANCHAMRIT

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