नारसिंह चूर्ण का एक मास तक सेवन करने से क्षय (TB), खांसी,
वृद्धावस्थाकी निर्बलता, गंज (बाल गिरना), प्लीहा (Spleen Diseases), अर्श (piles), पांडु (anaemia), हलीमक, महाश्वास (chronic asthma), पांचो प्रकारके कास (खांसी), पीनस, भगंदर,
मूत्रकुच्छ (मूत्रमे जलन), अश्मरी (पथरी), १८ प्रकारके कुष्ट (Skin
Diseases), ८ प्रकारके उदर रोग (Abdominal Diseases), अति दुस्तर मेह, कष्टसाध्य (hard to cure) पाँच प्रकारकी कास (खांसी), ८० प्रकारके वातरोग, ४० प्रकारके पित्तरोग,
२० प्रकारके कफरोग, द्वंद्वज (दो दोषोसे होने वाला) रोग, त्रिदोषज (तीनों दोषोसे होने वाला) रोग, सब जातीके अर्श (Piles),
ये समस्त रोग दूर होकर पुरुष कंचनके सद्रश तेजवाला,
सिंहके समान पराक्रमी,
घोड़ेके समान वेग और गंभीर स्वरवाला बन जाता है। १०० स्त्रियोंके साथ रमण कर
सकता है और भगवान नारसिंहके समान कांतिमान और पराक्रमी पुत्रोको उत्पन्न करता है।
वात (वायु) की
वजह से 80 प्रकार के रोग होते है। इनमे से पक्षघात एक है। यह आयुर्वेद का सिद्धांत
है की जो भी दर्द शरीर में होता है वह वात की वजह से ही होता है। पित्त की वजह से
40 प्रकार के रोग होते है और अम्लपित्त (Acidity) इनमे से एक है। शरीर में जो भी जलन (Irritation) होती है वह पित्त की वजह से ही होती है जैसे के
हाथ-पैर में जलन। कफ की वजह से 20 प्रकार के रोग होते है इनमे से खांसी एक है।
शरीर में खुजली होती है तो वह कफ की वजह से ही होती है। यह चूर्ण इन तीनों दोषो
(वायु, पित्त और कफ) का नाश करता है।
भिलावे मिलाने से
चूर्ण अधिक उग्र बनता है। वातप्रधान और कफप्रधान प्रकृति वालो के लिये यह हितकर
है। पित्तप्रकृति वालो से सहन नहीं होता एवं इसमे कामोत्तेजक गुण होने से बालको को
भी न दे। यह नारसिंह चूर्ण सब प्रकार के वातरोग (पूरे शरीर मे दर्द या शरीर के
किसी अंग मेन दर्द) अच्छा लाभ पहुंचाता है।
नारसिंह चूर्ण
में शतावरी, गोखरू,
तिल, विदारीकंद,
वाराहीकंद, गिलोय,
शुद्ध भिलावे, चित्रक मूल, त्रिकटु, मिश्री,
शहद और घी यह सब घटक द्रव्य होते है।
वक्तव्य: नारसिंह
चूर्ण में घी और शहद नहीं मिला हुआ होता, सेवन करते समय 6 ग्राम घी और 12 ग्राम
शहद मिला लेना विशेष हितकर है। अगर तैयार चूर्ण में घी और शहद मिलाया गया हो, तो मिलाने की जरूरत नहीं है।
मात्रा: 4 से 8
ग्राम चूर्ण या घी-शहद मिला हो तो 6 ग्राम से 12 ग्राम दिन में 2 बार दूध के साथ
लेवें।
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