खदिरादि वटी मुंह
के छाले, जिह्वा,
दांत, मसूढ़े और गले के रोग, खांसी और स्वरभंग (गला बैठना) दूर करती है, और दाँतो को मजबूत करती है। यह उत्तम संशोधन और गुण
दर्शाती है। खून की गर्मी नष्ट करती है।
खदिरादि वटी अगर
घर पर बनानी हो तो बिलकुल आसान है। खैरसार 110 ग्राम, कपूर, चिकनी सुपारी, जायफल, शीतल मिर्च और छोटी इलायची 22-22 ग्राम
लें। सबको कूट, पीस,
छानकर जल में चने के समान गोलियां बनावे। अगर घर पर न बनानी हो तो बाजार में तैयार
मिल जाती है।
खदिरादि वटी मुख के स्थानिक विकारो के लिये लाभप्रद है। यदि वे रोग नासिका, उदर (पेट) अथवा किसी विष (Toxin) से सम्बन्ध रखकर उत्पन्न होते हो तो उनके कारणों की शोध करके चिकित्सा
करनी चाहिये। ऐसा न करने से इन गोलियो से भले ही सामयिक (Temporary) लाभ हो जाय परन्तु कालान्तर मे रोग की पुनरावृत्ति होती है। यदि मुखपाक
केवल मुख कला के दोष के कारण है और वह भी विषज या फिरङ्गजन्य (Caused by Siphilis) अथवा भयङ्कर
कीटाणुजन्य नहीं है तो खदिरादि वटी उसमें शीघ्राति शीघ्र लाभप्रदान करती है। इसके
सभी द्रव्य रोचक, श्लेष्मकला (Mucous Membrane) शोधक, स्रावनाशक और स्थानिक दोष के कारण उत्पन्न
हुये तथा साधारण विष दोपों से उत्पन्न हुए विकारो को भी नष्ट करनेवाले है।
खदिरादि वटी में
सब से ज्यादा मात्रा खदिर की होती है। खदिर पाचक,
शीतल, रक्तशुद्धिकारक और दांतों को हितावह है।
और कपूर के योग से यह वटी दांतों और मसूढ़ो के रोगो को नष्ट करती है। गला बैठने में
यह अक्सीर है।
मात्रा: एक-एक
गोली करके दिन में 5-7 गोली चूसें।
Khadiradi Vati is useful in mouth ulcer, disease of the mouth and it
strengthens the gum. It is extremely useful in hoarseness of voice.
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शानदार एवं सुक्ष्म जानकारी के लिए धन्यवाद ।।
जवाब देंहटाएंश्री मान जी चिकित्सा में आहार संबंधी जानकारी सामिल करने की कृपा करें
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