शनिवार, 27 अक्तूबर 2018

अशोकारिष्ट के फायदे / Ashokarishta Benefits


अशोकारिष्ट (Ashokarishta) स्त्रियों के रक्तप्रदर (Metrorrhagia), मंदज्वर (Fever), रक्तपित्त (मुंह से या नाक से खून निकलना), अर्श (बवासीर), अग्निमांद्य, अरुचि आदि विकारो को दूर करता है।

अशोकारिष्ट (Ashokarishta) स्त्रियों का परम मित्र है। इसका कार्य गर्भाशय पर बल्य होता है। गर्भाशय की शिथिलता से उत्पन्न होनेवाले अत्यार्तव (मासिक धर्म के समय बहुत ज्यादा रक्त गिरना) विकार मे इसका उत्तम उपयोग होता है। अत्यार्तव विकार अनेक कारणो से होता है। गर्भाशय के भीतर के आवरण मे विकृति, बीजवाहिनियों की विकृति, गर्भाशय के मुखपर, योनिमार्ग मे या गर्भाशय के भीतर की ओर कर्कस्फोट होना और प्रसवके पश्चयात गर्भाशय के भीतर या बाहर व्रण (घाव) हो जाना, आदि कारणो से अत्यार्तव व्याधिकी प्राप्ति होती है। इनमे से कर्कस्फोट के अतिरिक्त कारणो से उत्पन्न अत्यार्तव पर इस अशोकारिष्ट का अच्छा उपयोग होता है। मासिकधर्म मे अति रक्तस्त्राव होता हो तथा साथमे मलावरोध (कब्ज) रहता हो तो अशोकारिष्ट के साथ दंत्यरिष्ट भी मिला देना चाहिये।

कितनीही स्त्रियों को मासिकधर्म आने पर उदरपीडा (पेटमे दर्द)की आदत पड जाती है, उसे पीडितार्तव और कष्टार्तव कहते है। इसमे मुख्यतः, बीजवाहिनी और बीजाशयकी विकृति कारण है। कितनीही रुग्णाओ को पीडा अत्यधिक तीव्र होती है। कमर मे भयंकर दर्द, शिरदर्द, वमन (उल्टी) आदि लक्षण होते है। इसपर अशोकारिष्ट अत्युत्तम कार्य करता है।

अशोकत्वक् तिक्त, कषाय, ग्राही, वर्ण प्रसादक, शीतल, हृदय पोषक, पित्त-दाह (जलन) नाशक, रक्तरोधक (खून को शुद्ध करनेवाला), कृमि नाशक तथा गुल्म (Abdominal Lump), शूल और उदर आध्मान (पेट का अफरा) नाशक है ।

अशोकारिष्ट (Ashokarishta) की क्रिया उदर (पेट) और जरायु (गर्भाशय) की श्लेष्मकलाओ (Mucous Membrane) पर विशेष होती है। यह दाह और पित्तजन्य शोथ (सूजन) का नाश करके उदर (पेट) और गर्भाशय को सक्रिय और विकार विहीन करता है। उदरविकार नाशक होने के कारण यह वातदोष नाशक, वीर्य प्रणालिका, डिम्बग्रंथि (Ovary) और डिम्बकोष तथा शुक्राशय के शोथ को नष्ट करता है । इसका सेवन स्त्री पुरुषों को समान हितकर है। स्त्रियों में यह गर्भाशयकला शोथ, गर्भाशय शोथ, दाह, व्रण (घाव) और क्षोभ (Irritation) का नाश करता है तथा डिम्बशूल, ऋतुशूल और जरायु शोथ शूल नाशक है । इसके सेवन से अति ऋतुस्राव, रक्तप्रदर और बस्तिदाह (मूत्राशय की जलन) का नाश होता है ।

पुरुषों में अशोकारिष्ट बस्तिशोथ, आमवात (Rheumatism), पुरुष ग्रंथिशोथ, इंद्रियगत व्रण, शोथ और दाह का नाश करता है। यह औषध रक्तरोधक, शोधक और जलन तथा स्त्राव नाशक है।  

मात्रा: 10 से 20 ml बराबर मात्रा में पानी मिलाकर सुबह-शाम।

अशोकारिष्ट घटक द्रव्य और निर्माण विधि (Ashokarishta Ingredients): अशोकछाल 5 सेर जौकुट करके 4066 तोले जल में क्वाथ करे। चतुर्थांश शेष रहने पर उतारकर छान ले । शीतल होने पर गुड़ 10 सेर, धायके फूल 64 तोले; काला जीरा, नागरमोथा, सोंठ, दारुहल्दी, कमल, हरड़, बहेड़ा, आँवला, आम की गुठली की गिरी, जीरा, अडूसा की छाल, रक्त चन्दन प्रत्येक 4-4 तोले मिलावे । फिर अमृतबानमें भर, मुखमुद्रा करके 1 मास रखदे । पश्चात् छानकर उपयोग में लेवें।

Ref: भैषज्य रत्नावली

Previous Post
Next Post

0 टिप्पणियाँ: