च्यवनप्रास का निर्माण च्यवन नाम के ऋषी ने किया था। यह आयुस्य और स्वस्थ्य के लिये बहोत ही अव्वल दर्जे का रसायन है। मानव जात की भलाई के लिये उन्होने इस अवलेह के ज्ञान का प्रचार किया था। इसके व्यापारीकरण की वजह से आज भारत में यह च्यवनप्रास इतना प्रचलित हुआ की आयुर्वेद के उत्पाद की जितनी बिकरी है इनमे च्यवनप्रास का एक तिहाई हिस्सा है। यह पश्चिमी देशो मे भी बहुत सफल हुआ है।
च्यवनप्राश सप्त
धातुओं (रक्त, रस, मांस,
मेद, अस्थि,
मज्जा और शुक्र) को बढ़ाकर शरीर का कायाकल्प करने की प्रसिद्ध औषधि है। फेंफड़े के
विकार, पुराना श्वास, खांसी, शारीरिक क्षीणता, पुराना बुखार, खून की कमी, केल्शियम की कमी,
क्षय (TB), रक्तपित्त (Epilepsy), मंदाग्नि, धातुक्षय आदि रोगों की प्रसिद्ध औषधि है।
इसमें स्वाभाविक रूप से विटामिन ‘सी’ पर्याप्त मात्रा में होता है। बाल, वृद्ध, स्त्री-पुरुष सब के लिये एक उत्तम टॉनिक
है। प्रत्येक ऋतु में सेवन किया जाता है। बल, वीर्य वर्धक है।
च्यवनप्रास में
मुख्य औषध आंवला है जो अपने आप में एक रसायन है और विटामिन ‘सी’ से भरपूर है। जो स्वास्थ्य और आयुस्य को
बढ़ाता है। शरीर के सब दोषो (कफ, पित्त और वायु) को बराबर करता है। आंवला
का नियमित रूप से उपयोग करने पर आयुस्य को 100 से 120 वर्ष तक बढ़ा देता है।
च्यवनप्राश में
स्वर्ण और चांदी मिलाकर इसे स्पेशल च्यवनप्राश भी बनाया जाता है। स्वर्ण और चांदी
मिलाने से इसके गुण में वृद्धि होती है।
मात्रा: 10 से 15
ग्राम (2 से 4 छोटा चम्मच) सुबह-शाम दूध के साथ।
According
to Ayurveda, Chyawanprash as a dietary supplement it strengthens the organs
under the ribs. It is very effective in the convalescence of weak individuals, children
and old people suffering from coughs, colds, urinogenital problems and in all
disturbances of vata, pitta and virya (vital fluid). It makes the body strong
and lustrous, sharpens the memory, contributing to a happy mind.
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