सोमवार, 6 अगस्त 2018

सितोपलादि चूर्ण के फायदे / Benefits of Sitopaladi Churna

सितोपलादि चूर्ण क्षय (TB), खांसी, जीर्णज्वर (पुराना बुखार), धातुगत ज्वर, मंदाग्नि (Indigestion), अरुचि (Anorexia), प्रमेह, छातीमे जलन, पित्तविकार, खांसीमे कफके साथ खून आना, बालकोकी निर्बलता, रात्रीमे बुखार आना, नेत्रो (आंखो)मे उष्णता (गरमी) तथा गलेमे जलन आदि विकारोको दूर करता है। सगर्भा स्त्रियोको 3-4 मास तक सितोपलादि चूर्ण का सेवन करानेसे गर्भ पुष्ट और तेजस्वी बनता है।

राज्यक्षमा (TB) की प्रथम अवस्थामे श्वास प्रणालिका और फुफ्फुसों के भीतर रहे हुए वायुकोषोमे क्षय किटाणुओके विषप्रकोपसे शुष्कता (सूखापन) आजाती है। उस अवस्थामे यदि बुखारको शमन करने के लिये क्वीनाइन आदि उग्र औषधियोका, या त्रिक्टु, चित्रकमूल आदि अग्निप्रदीपन औषधियोका सेवन प्रधानरूप से या विशेषरूप से किया जाय, तो फुफ्फुस संस्थानमे शुष्कताकी वृद्धि होती है। फिर शुष्क कास (सुकी खांसी) अति बढ़ जाती है और किसी-किसी रोगी को रक्त मिश्रित थूक आता रहता है। दिनमे शांति नहीं मिलती और रात्रीको पूरी निंद्रा भी नहीं मिलती। व्याकुलता बनी रहती है। अग्निमांद्य, शारीरिक निर्बलता, मलावरोध (कब्ज), मूत्रमे पीलापन, शुष्क कासका वेग चलने पर बार-बार पसीना आते रहना, नेत्रमे जलन होते रहना आदि लक्षण प्रतीत होते है। एसी अवस्थामे अभ्रक आदि उत्तेजक औषधिसे लाभ नहीं मिलता, किन्तु कष्ट और भी बढ़ जाता है। शामक औषधिके सेवन की ही आवश्यकता रहती है। अतः यह सितोपलादि चूर्ण अमृतके सद्रश उपकार दर्शाता है। मात्रा 2-2 ग्राम गौधृत (गायका घी) और शहदके साथ मिलाकर दिनमे 4 समय देते रहना चाहिये। मुक्तापिष्टि या प्रवालपिष्टि साथमे मिला दी जाय तो लाभ सत्वर मिलता है।

सूचना: याद रखे घी और शहद कभी समान-मात्रामे न ले। समान-मात्रामे लेनेसे विष के समान बन जाता है। या तो शहदको घीसे कम ले या घीको शहदसे कम ले। 

ज्वर जीर्ण होनेपर शरीर निर्बल बन जाता है, फिर थोड़ा परिश्रम भी सहन नहीं होता; आहार विहारमे थोड़ा अंतर होनेपर भी ज्वर बढ़ जाता है। शरीरमे मंद-मंद ज्वर बना रहता है या रात्रीको ज्वर आ जाता है और सुखी खांसी भी चलती रहती है। उन रोगियोको प्रवालपिष्टि और सितोपलादि चूर्ण शहद मिलाकर दिनमे 3 समय देते रहनेसे थोड़े ही दिनोमे खांसी शांत हो जाती है, ज्वर विषका पचन हो जाता है और रस, रक्त आदि धातुए पुष्ट बनकर ज्वरका निवारण हो जाता है। 

माता निर्बल होनेपर संतान निर्बल रह जाती है। उनकी हड्डीयां बहुत कमजोर होती है। ऐसे शिशुओको प्रवाल और सितोपलादि चूर्णका मिश्रण 1 से 2 रत्ती (125 से 250 mg) दिनमे 2 समय लंबे समय तक देते रहनेसे बालक पुष्ट बन जाता है। यह उपचार प्रथम वर्षमे ही कर लिया जाय तो लाभ अधिक मिलता है। 

कितनेही मनुस्योंकी निर्बलतासे उनकी संतान निर्बल होती है। ऐसी संतानकी माताओको सगर्भावस्थामे अभ्रक-प्रवालसह सितोपलादिका सेवन 5-7 मास तक कराया जाय, तो संतान बलवान, तेजस्वी और बुद्धिमान बनती है। इससे गर्भिणी और गर्भ दोनों पुष्ट बन जाते है, शरीरमे स्फूर्ति रहती है और मन भी प्रसन्न रहता है।

कोई रोगकी वजहसे अथवा अधिक गरम-गरम मसाला, अधिक गरम चाय आदि अथवा आमाशय पित्त (Gastric Juice)की वृद्धि करने वाले लवण भास्कर आदि चूर्णोका सेवन होनेपर आमाशयस्थ पित्तकी वृद्धि हो जाती है या पित्त तीव्र बन जाता है अर्थात लवणाम्ल (Acid Hydrochloric)की मात्र बढ़ जाती है। जिससे छाती और गलेमे जलन, मुहमे छाले, खट्टी-खट्टी डकारे आते रहना आदि लक्षण प्रतीत होते है, आहारका योग्य पचन नहीं होता और अरुचि भी बनी रहती है। इन रोगियोको प्रवाल भस्म या वराटिका भस्म और सितोपलादि चूर्णका सेवन करानेसे थोड़े ही दिनोंमे अम्लपित्तके लक्षण और अरुचि दूर होकर अग्नि प्रदीप्त हो जाती है।

आमाशय (stomach) पित्त (Gastric Juice) तीव्र बननेके कारण पचन क्रिया मंद हो जाती है। इसका उपचार शीघ्र न किया जाय तो किसी किसिको विदग्धाजीर्ण (अजीर्णका एक प्रकार है) हो जाता है। पेसाबका वर्ण अति पीला भासता है। सर्वांगमे दाह (पूरे शरीरमे जलन), तृषा (प्यास), मूत्रके परिमाणमे कमी, मूत्रस्त्राव अधिक बार होना, देह (शरीर) शुष्क (सूखा) हो जाना, चक्कर आते रहना आदि लक्षण उपस्थि होते है। इस अवस्थामे मुख्य औषधि चन्द्रकला रसके साथ साथ आमाशय पित्तकी शुद्धि करनेके लिये सितोपलादि चूर्णका सेवन कराया जाय तो जल्दी लाभ पहुंचता है।

जीर्णज्वर (पुराना बुखार) या प्रकुपित हुआ ज्वर दिर्धकाल पर्यन्त रह जानेपर शरीर अशक्त बन जाता है और मस्तिष्कमे उष्णता आजाती है। जिससे सहनशीलता कम हो जाती है, थोड़ीसी प्रतिकूलता होने या विचार विरुद्ध होनेपर अति क्रोध आ जाता है। यकृत (Liver) निर्बल हो जाता है। मलावरोध (Constipation) रहता है और मलमे दुर्गंध आती है, एवं पांडुता (शरीरमे पीलापन), ह्रदयमे धड़कन और अति निर्बलता आदि लक्षण उपस्थित होते है। ऐसे रोगियोको सितोपलादि चूर्ण खमीरेगावजवाके साथ कुच्छ दिनों तक देते रहनेपर सब लक्षणोसह पित्तप्रकोप दूर होकर शरीर बलवान बन जाता है।

मात्रा: 2 से 4 ग्राम दिनमे 2 बार घी और शहदके साथ। कफ प्रधान रोगोमे घीसे शहद दूना (Double) ले। वात और पित्त प्रधान रोगोमे घीमे शहद आधा मिलावे। घी पहले मिलावे फिर शहद मिलावे। कफ सरलतासे निकलता हो ऐसी खांसीमे केवल शहदके साथ।

सितोपलादि चूर्ण बनाने की विधि (Sitopaladi Churna Ingredients): मिश्री 16 तोले (1 तोला = 11.66 ग्राम), वंशलोचन 8 तोले, पीपल 4 तोले, छोटी इलायची के बीज 2 तोले और दालचीनी 1 तोला लें। सबको कूटकर बारीक चूर्ण बनावें।
 



Previous Post
Next Post

0 टिप्पणियाँ: