शनिवार, 4 अगस्त 2018

अविपत्तिकर चूर्ण के फायदे / Benefits of Avipattikar Churna


अविपत्तिकर चूर्ण (Avipattikar Churna) के सेवन से अम्लपित्त (Acidity), शूल (पेट दर्द), अर्श (Piles), प्रमेह, मूत्राघात (पेसाबकी उत्पत्ति कम होना) और मूत्रास्मरी (पथरी)का नाश होता है।

अविपत्तिकर चूर्ण (Avipattikar Churna) अम्लपित्त (Acidity) रोग में विशेष उपयोगी होता है। अम्लपित्त होने पर छाती में जलन होती रहती है, रोग अधिक बढ़ने पर उबाक (उलटी करनेकी इच्छा) और वमन (उलटी) भी होती रहती है, वमन खट्टी और जलती हुई होती है। उलटी होने पर गले में जलन होती है और आंखो में पानी आजाता है। भोजन कर लेनेपर थोड़े ही समय में उदर (पेट) में भारीपन अधिक आता है। इस विकार में अपचन होने या रोग पुराना होनेपर आमाशय पित्त (Gastric Juice) अधिक बढ़ जाने से सुबह भी खट्टी डकारे आती रहे, और वमन होती रहे तब अविपत्तिकर चूर्ण का सेवन शीतल जल या नारियलके जलके साथ कराया जाता है, जिससे आमाशय (Stomach)का पित्त (Gastric Juice) आंतोंमे चला जाता है।

सूचना: यदि आंतोंमे सूजन हो, ऊपर दबा ने पर वेदना होती हो, तो अविपत्तिकर चूर्ण का उपयोग नहीं करना चाहिये।

वृक्क (kidneys) में जलन होनेपर खून में मूत्र विष (Urine Toxin) की वृद्धि होती है। फिर आंखे और मुखमंडल पर सूजन उत्पन्न होती है। शरीर दुबला और निस्तेज हो जाता है, आलस्य की वृद्धि होती है। द्रष्टि मंद हो जाती है। आमाशय में पित्त तेज हो जाता है। ऐसी स्थिति में प्रायः मलावरोध (कब्ज) भी दुख देता है, इस मलावरोध को दूरकर पेट को शुद्ध करने के लिये अविपत्तिकर चूर्णका उपयोग किया जाता है।

इसके अतिरिक्त आमवात (Rheumatism) और खूनकी प्रतिक्रीया अम्ल होने से उत्पन्न संधिवात, पक्षघात, पेट दर्द, पित्तप्रकोपज उन्माद, रक्त दबाव वृद्धि (High Blood Pressure) आदि रोगोमे विरेचन की आवश्यकता होनेपर अविपत्तिकर चूर्ण का उपयोग किया जाता है।

हमने अविपत्तिकर चूर्ण को कई रोगियों पर प्रयोग किया है। इसके सेवन से गेस और अम्लपित्त धीरे-धीरे कम होने लगते है, दस्त साफ आता है और कब्ज टूट जाता है। यह औषधि तुरंत अपना प्रभाव गेस पर दिखाती है और अम्लपित्त को कम करने के लिये थोड़ा समय लगता है, लेकिन अम्लपित्त को यह जड़ से खत्म कर देता है। अगर छोटे बच्चों को कब्ज हो तो उनको भी थोड़ी मात्रा में दिया जा सकता है। यह बिलकुल हानिरहित औषधि है। परीक्षित है।

अविपत्तिकर चूर्ण पित्तशामक, सहज रेचक, दाह (जलन) नाशक, वातानुलोमक (वायु की गति नीचे की तरफ करनेवाला), कृमिध्न, मूत्रल और कोष्ठ (Stomach) को शुद्ध करने वाला है। पित्त द्वारा उत्पन्न हुये अंत्र (Intestine) के विकारों का इसके प्रयोग से विनाश होता है। जिन रोगियों को अम्लपित्त का विशेष विकार हो, उन्हें इस औषध का प्रयोग भोजन करने के आध घंटा पूर्व करके भोजन करना चाहिये।

अविपत्तिकर चूर्ण सहज रेचक है। इसके सेवन से किसी प्रकार की आदत नहीं पड़ती। कुछ लोगों को खाने के कुछ समय बाद पेट में जलन होने लगती है और कुछ लोगों को सोते समय पेट में जलन होने लगती है, इसके सेवन से यह मिट जाता है। नित्या रात्री को 10 ग्राम सेवन करने से प्रातः मल शुद्धि हो जाती है। 

मात्रा: 4 से 6 ग्राम भोजन के पहले ठंडे पानी के साथ।

अविपत्तिकर चूर्ण बनाने की विधि (Avipattikar Churna Ingredients): सोंठ, कालीमिर्च, पीपल, हरड़, बहेड़ा, आंवला, नागरमोथा, वायविडंग, छोटी इलायची के दाने और तेजपात, सब एक तोला, लौंग 10 तोले, निसोत 40 तोले और मिश्री 60 तोले लें। इन सबको मिला कूटकर बारीक चूर्ण करें।
    
विशेष जानकारी:

अविपत्तिकर चूर्ण का सबसे ज्यादा प्रयोग अम्लपित्त (Acidity) और पेट की गेस में होता है। अविपत्तिकर चूर्ण के घटक द्रव्यों में दूसरा सबसे ज्यादा प्रमाण  निसोथ का है, जो पित्त को आंतों में भेज देती है। जिससे अम्लपित्त में खास फायदा होता है। कुच्छ लोगों को बहुत तीखा भोजन करने के बाद छाती में जलन होती है या किसी किसी को पेट में जलन होती है, वह अगर भोजन के पहेले एक छोटा चम्मच अविपत्तिकर चूर्ण सेवन कर लें, तो यह समस्या नहीं होती। निसोथ का दूसरा धर्म रेचक है, जिससे कब्ज और पेट के रोगों का नाश होता है। रेचक औषधि से किसी किसी को पेट दर्द होता है और अफरा भी आ जाता है। इस लिए अविपत्तिकर चूर्ण में रेचक औषधि निसोथ के साथ सोंठ, इलायची और लौंग मिलाये गए है, जिससे पेट दर्द और अफरा नहीं होता। कब्ज के लिये अविपत्तिकर चूर्ण एक निर्दोष औषधि है, क्योंकि इसकी आदत नहीं होती और इसके प्रयोग से पेट दर्द भी नहीं होता। रात को सोने से पहेले 10 ग्राम अविपत्तिकर चूर्ण का सेवन करने से सुबह दस्त साफ आता है। गेस की समस्या का मुख्य कारण भी कब्ज ही है, अगर पेट साफ रहेगा तो धीरे धीरे गेस की समस्या भी दूर हो जाएगी।  

अविपत्तिकर चूर्ण में सोंठ, लौंग, कालीमिर्च, पीपल, वायविडंग, तेजपात और इलायची यह औषधियाँ पेट की गेस को नाश करती है। जिससे गेस की समस्या में फायदा होता है। हमारे अनुभव में यह गेस में बहुत जल्दी फायदा करता है।

अविपत्तिकर चूर्ण में तीसरा सबसे ज्यादा प्रमाण लौंग का है, जो दीपन, पाचन, रुचिकर तथा कफ, पित्त, पेट दर्द और पेट के भारीपन को नाश करनेवाला है। भोजन के बाद कुच्छ लोगों को पेट में भारीपन आ जाता है। अविपत्तिकर चूर्ण के सेवन से पेट का भारीपन दूर हो जाता है। लौंग मूत्रल भी है जिससे मूत्रमार्ग की शुद्धि होती है। अविपत्तिकर चूर्ण का उपयोग मूत्राघात रोग में भी होता है, मूत्राघात में मूत्र की उत्पत्ति कम हो जाती है, अविपत्तिकर चूर्ण में मिश्री और लौंग दोनों मूत्रल है, जिससे पेसाब की उत्पत्ति बढ़ जाती है और रोग दूर हो जाता है। यह चूर्ण पथरी को भी नष्ट करता है।  

अविपत्तिकर चूर्ण कृमि नाशक भी है, क्योंकि इसमें कालीमिर्च, नागरमोथा और वायविडंग है जो कृमिनाशक औषधियाँ है।

अविपत्तिकर चूर्ण में त्रिफला, नागरमोथा, लौंग और निसोथ है, जो पित्तनाशक औषधियाँ है। इस लिये यह पित्त का शमन करता है। इसमें सबसे ज्यादा प्रमाण मिश्री का है जो, पाचन, कब्ज नाशक, मूत्रल तथा रक्तपित्त, त्रिदोष (कफ-पित्त और वात) तथा जलन का नाश करती है। 

Ref: भैषज्य रत्नावली 

Avipattikar churna is especially useful in acidity. It is also useful in abdominal pain, piles and urine retention. Avipattikar churna is very effective remedy for gas, acidity and constipation. If used continuously for long time, it surely cures gas, acidity and constipation.

Dose: 4 to 6 gram before meal two times a day.

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