मंगलवार, 3 जुलाई 2018

महासुदर्शन चूर्ण / सब प्रकार के बुखार का इलाज / Benefits of Maha Sudarshan Churna


महासुदर्शन चूर्ण सब प्रकारके पुराने और नये बुखार, एक दोषज, धातुगतज्वर, त्रिदोषज, द्विदोषज, सन्निपात (Eruptive fevers e.g. Typhoid fever), शीतज्वर (ठंड के साथ आने वाला बुखार), विषमज्वर (malaria), मंदाग्नि, अजीर्ण, निर्बलता, शिरदर्द और बुखार के साथ श्वास (asthma), कास (cough), पांडु (anemia), ह्रदय रोग (heart diseases), कामला (jaundice), कटिशूल (कमर दर्द), आदि सब विकारोका नाश करता है। बुखार हो तब उतारने के लिये और न हो तब रोकने के लिये महासुदर्शन चूर्ण दिया जाता है।

इस चूर्णके उपयोगमे किस जातिका बुखार है, इस बातके निर्णयकी विशेष आवश्यकता नहीं है। एवं यह चूर्ण वात, पित्त और कफप्रकोप, द्वंद्वज (किसी दो दोषोसे होने वाला बुखार जैसे के वायु और कफ, कफ और पित्त) और त्रिदोषज (तीनों दोषो से होने वाला ज्वर) ज्वर पुरुष और स्त्री, सगर्भा और प्रसूता, बालक, युवा और वृद्ध इस सबको निर्भयता पूर्वक दे सकते है।

ज्वारोंकी उत्पत्ति विशेषत; आमप्रकोप होने के बाद पसीना द्वारा विष बाहर न निकालने पर होती है। जब पाचन शक्ति कम होती है तब अन्न रस पूरी तरह से नहीं पचता है और नहीं पचा हुआ अन्न रस आम कहलाता है। अगर यह आम ज्यादा बढ़ जाए तो आमप्रकोप होता है। महासुदर्शन चूर्ण से आमका पचन, कोष्टशुद्धि (पेट और अंत्र शुद्ध होना), विषका निर्विष बनना और प्रस्वेद (पसीना) ग्रंथियोको बंधनमुक्त बनाना, ये चारो कार्य सरलतापूर्वक हो जाते है। इस हेतुसे यह महासुदर्शन चूर्ण सब प्रकारके बुखारो पर उपयोगी होता है।

यह  महासुदर्शन चूर्ण जिस तरह नूतन ज्वर (नया बुखार)मे उपयोगी है उसी तरह जीर्ण (पुराना) ज्वर पर भी लाभदायक है। कभी कभी मधुरा (Typhoid) उतर जाने पर रोगी आहार विहार मे भूल कर देता है। जिससे बुखार फिरसे आ जाता है। मधुराके पहिले आक्रमणमे रोगी बहुधा क्षीण (शक्तिहिन) हो जाता है, उसपर फिरसे आक्रमण होनेसे रोगी अधिक कृश और दीन बन जाता है। इसपर महासुदर्शन चूर्णमे मिला सिद्ध दूध मतलब दूधको महासुदर्शन चूर्णमे पकाकर देते रहनेसे सफलतापूर्वक किटाणु, विष और आम जलकर ज्वर समान होजाता है, क्षुद्धा (बुख) प्रदीप्त होकर शरीरमे बल आने लगता है।

ज्वर अधिक दिनोतक बना रहनेपर या बार-बार आता रहनेसे देह (शरीर) निर्बल हो जाता है। फिर किसीको मंद-मंद ज्वर रहता है (जिसे अस्थिगत ज्वर कहते है) या रात्रीको कुछ ज्वरांश हो जाता है। मूत्रमे पीलापन, बेचैनी, अग्निमांद्य, अरुचि, निर्बलता, आलस्य, हाथ-पैर टूटना, मलावरोध, स्वभावमे उग्रता आना आदि लक्षण उपस्थित होते है। एसी अवस्थामे क्वीनाइन आदि तीव्र औषधिके सेवनसे प्रायः हानि पहुचती है। उसपर 4-6 माशे (1 माशा = .97 ग्राम) इस महासुदर्शन चूर्णका फांट (चूर्ण को पानीमे 12 घंटे तक रखकर फिर छान लेने से फांट बनाता है), 2 रत्ती (1 रत्ती = 121.5 mg) शिलाजीत, 1 रत्ती कपूर और 6 माशे शहद मिलाकर सुबह-शाम देते रहनेसे थोडेही दिनोंमे ज्वरका निवारण होता है, पचनक्रिया सुधरती है, स्फूर्ति आती है और बल वृद्धि होती है।

कोमल स्वभावकी निर्बल रुग्णा या रोगी जो पित्त प्रकोपसे पीडित हो, उनको विषमज्वर (malaria) आनेपर क्वीनाइन नहीं दे सकते। यदि क्वीनाइन अल्प मात्रामे भी दिया जायेगा, तो विविध स्थानोसे रक्तस्त्राव, निंद्रानाश, व्याकुलता आदि लक्षण उपस्थित होते है, किन्तु इस महासुदर्शन अर्कका सेवन करानेपर सर्व लक्षणोसह ज्वरकी तुरंत निवृति होती है।

रक्त (खून)मे विष (जहर) लीन हो जानेपर रोगीकी पचनक्रिया अधिक निर्बल हो जाती है। फिर भोजन करनेकी रुचि नहीं होती। मूत्रमे पीलापन, अग्निमांद्य, कठोर उदर, कभी कभी उदरमे शूल (वेदना) चलना, हाथ-पैर टूटना, किसी-किसीको छातीमे जलन, किसीको श्वास-कास होजाना, शिरमे भारीपन बना रहना आदि लक्षण उपास्थि होते है। इस विकार पर महासुदर्शन चूर्ण खिलाते रहनेसे सब लक्षणो सह ज्वर शमन होता है।

बुखार लगभग 21 दिनसे अधिक हो जानेपर जीर्णज्वर माना जाता है। थोडा परिश्रम करनेपर ह्रदयकी गति बढ़ जाती है। आलस्य बना रहता है। पांडु (anaemia)के साथ शारीरिक निर्बलता, मलावरोध (कब्ज), आलस्य बना रहना, शिरमे भारीपन, अरुचि और अग्निमांद्य आदि लक्षण उपस्थित होते है। इस विकारपर महासुदर्शन चूर्णका फांट और संशमनी वटीका सेवन करानेपर थोडेही दिनोंमे शरीर स्वस्थ हो जाता है।

सगर्भावस्थामे कब्ज होनेपर कितनी ही स्त्रियोको बार-बार बुखार आ जाता है। पचनक्रिया मंद हो जाती है। भोजन करनेपर आहार उदरमे जड़ होकर पड़ा रहता है। इनके अतिरिक्त शिरदर्द, आलस्य, जुकाम, कफ वृद्धि आदि लक्षण उपस्थित होते है। उसपर सुवर्ण वसंत या लघुवसंतके साथ इस चूर्णका फांट देते रहनेसे ज्वरकी निवृति हो जाती है।

कितनेही बालकोको मधुर पदार्थका अत्यधिक सेवन करते रहनेसे मलावरोध (कब्ज) और अपचन होकर बार-बार ज्वर आता रहता है। फिर धीरे-धीरे प्लीहा (spleen) बढ़ जाती है और अग्निमांद्य हो जाता है। उनको पथ्यसह महासुदर्शन चूर्ण का सेवन थोडे दिनोंतक नियमित रूपसे कराया जाय और मधुर पदार्थ बंदकर दिये जाय तो ज्वर निवृत होता है। प्लीहावृद्धिका ह्रास होता है और पचनक्रिया सबल बन जाती है।

मात्रा: 2 से 4 माशे दिनमे 3 बार जलके साथ दे। अथवा 4 से 6 माशे चूर्णका फांट बनाकर पिलावे।

Maha sudarshan churna is useful in all types of fever. It successfully cures typhoid, malaria and indigestion.

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