मंगलवार, 24 जुलाई 2018

क्रव्याद रस / पाचनशक्ति बढ़ाने वाला / Benefits of Kravyad Ras in Hindi


घटक द्रव्य:

शुद्ध गंधक, शुद्ध पारा, ताम्र भस्म, लोह भस्म, जंबीरी नींबूका रस, पीपल, पिपलीमूल, चव्य, चित्रकमूल, सौंठ, सोहागेका फुला, काला नमक और काली मिर्च। भावना: अम्लवेत क्वाथ

गुण और उपयोग:

क्रव्याद रस अत्यंत दीपन और पाचनशक्ति बढ़ाने वाला है। मध्यम कोष्टमे सब पचनेन्द्रियोंकी शिथिलताको दूर करके उत्तेजित करता है; तथा पचनेन्द्रियके व्यापारको प्रबल बनाता है। मांस खानेवाले और जड़ अन्न खानेवाले लोगोके लिये यह रसायन अति उपयोगी है। मांसाहार या पक्के भोजनका ठीक तरहसे पचन न होनेपर उत्पन्न होनेवाले अलसक (पेटमे भोजन पत्थर सद्रश पड़ा रहे और तीक्ष्ण शूल (वेदना) चले, ऐसा अजीर्ण), विलंबिका (वात-कफ दोषसे भोजन पत्थर सम होकर पेटमे पड़ा रहे, किन्तु तिक्षण पीड़ा न हो ऐसा अजीर्ण), विसूचिका (Cholera) आदि अजीर्ण विकारको मट्ठे और नमकके साथ देनेसे क्रव्याद रस शीघ्र दूर करता है।

भोजन अच्छी तरहसे पचन न होनेसे अन्न-रस ठीक तैयार नही होता। फिर इस रसका योग्य रूपांतर न होनेसे आम (toxin) उत्पन्न होता है। इस आमका संचय होनेसे धीरे-धीरे यह विकृत होता है। इस हेतुसे विविध आम विकारोकी उत्पत्ति होती है। इनमे आम-अजीर्ण ये तीव्र प्रकार है। आमसंचय अधिक होता है, तो शूल (पेट दर्द), अतिसार (diarrhoea), ग्रहणी (chronic diarrhoea), कोष्ठबद्धता (कब्ज) आदि व्याधियोंकी उत्पत्ति होती है।  क्रव्याद रस उत्तम प्रकारसे इस दुष्ट आमका पचन कराता है और आमके हेतुसे होने वाली यह सब व्याधिया नष्ट होती है। पहिले लंघन (उपवास) करा कर फिर क्रव्याद रसकी योजना करनी चाहिये।

भोजनसे जो अन्न-रस बनता है वह अन्न-रस शरीरकी सब धातुओको पोषण देता है। हमारा शरीर सात धातुओसे बना है। शुक्र, मज्जा, अस्थि, मेद, मांस, रक्त और रस, इन धातुओकी क्रिया सतत होती रहती है। इन सबका आधार योग्य अन्न-रस है। यदि इस नियमका भंग होता है (अन्नका पचन योग्य नहीं होता), तो मेद आदि कोई धातु बढ़ती ही जाती है; और अन्य धातुओको पोषण नहीं मिलता। यदि मेदकी वृद्धि होती है; तो फिर मनुष्य स्थूल-फुला हुआ बनता ही जाता है। इस स्थूलताको नष्ट करनेके लिये सब धातुओका पोषण होना अत्यंत जरूरी है और यह काम पचन क्रिया बढ़ाने पर ही होता है। यह पचन क्रिया बढ़ानेका काम क्रव्याद रससे उत्तम प्रकारका होता है।

मध्यमकोष्ठ (अंत्र)मे दिर्धकालके अजीर्ण रोगसे अन्नका कीटांश या पुराना मल संचित होता है। इस संचयसे विविध सेंद्रिय विष निर्माण होता है। यह विष दिर्धकाल तक अंत्रमे रह जानेपर समस्त शरीरको दुष्ट बनाता है। विरुद्ध, दूषित और अपथ्य आहारके योगसे इस गर (विष)की उत्पत्ति होती है। बासी, बिगड़े हुए, ताम्र आदि धातुके विषसे दूषित या सड़े मांससे विष अधिक बनते है। इसको कृत्रिम विष (गर) भी कहते है और यह अत्यंत भयंकर है। गरके लक्षण दोषानुरोधसे भिन्न-भिन्न होते है। जिन जिन प्रकारके गरोसे कफप्रधान या कफवातप्रधान लक्षण उत्पन्न होते है; उन सब पर क्रव्याद रसका अच्छा उपयोग होता है।

लंबे समयके अजीर्ण रोगमे विशेष गुरु और स्निग्ध भोजन अधिक करनेसे उत्पन्न होने वाले अजीर्णमे आम संचय हो कर बार-बार पेट दर्द होता हो तथा पेटमे जड़ता, मुह फीका रहना और मुख मंडल सूजा हुआ-सा भासना आदि लक्षण हो तो क्रव्याद रसकी योजना करनी चाहिये। इसके योगसे आमका पाचन होकर शूल (पेट दर्द) निवृत हो जाता है।

संग्रहणी (Chronic diarrhoea)के विकारमे अन्नका पचन अति कष्ट से होता हो, तथा मुहमे पानी छुटना, उबाक, अरुचि, मुहमे चिपचिपापन और मिठापन, खांसी, बार-बार लालास्त्राव होकर चिपचिपे झाग समान थूक निकलना, नाक पक जाने समान भासना, जुकाम-सा होना, उदार (पेट) जड़ और जल भरा-सा भासना, मीठे दुर्गंधयुक्त डकार आने, अंग टूटना, शरीर अति कृश (दुबला) न होने पर भी अति बलहीनता आ जाना, कमजोरी इतनी के थोड़ा-सा चलनेमे भी दुख हो, आम मिले कफयुक्त बार-बार दस्त लगना आदि लक्षण हो तो दीपन-पाचन औषध देना चाहिये। ऐसी अवस्थामे क्रव्याद रस उत्तम औषध है।

सूचना: पित्त प्रधान रोगोमे क्रव्याद रस का उपयोग नहीं करना चाहिये।

मात्रा: 2 से 4 रत्ती (250 से 500 mg) मट्ठा और सैंधा नमकके साथ देवे।

Kravyad ras is useful in indigestion, abdominal ache, chronic diarrhoea and cholera.

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