सोमवार, 25 जून 2018

गंधक वटी के फायदे / Gandhak Vati Benefits


गंधक वटी (Gandhak Vati) मंदाग्नि (indigestion), अरुचि (anorexia), अजीर्ण, शूल (Colic), सूक्ष्म कृमि, ग्रहणी दोष (Duodenum problem), आमवृद्धि, गुल्म (Abdominal Lump) और उदरवर्त (पेटमे दूषित वायु उत्पन्न होना या ऊपर चढ़ना)का नाशकर अग्निको प्रदीप्त करती है। नींबूके रसकी ७ भावना देनेपर यह तत्काल अपना प्रभाव दर्शाती है। उदवर्त- (उदर (पेट)मे उत्पन्न दूषित वायुके ऊपर चढ़ने)को तुरंत दबाती है, शूल (Colic), बेचैनी आदिको दूर करती है।

गंधक वटी (Gandhak Vati) उत्तम किटाणु नाशक और दीपन-पाचन है। आमाशयिक रस (Gastric Juice) तथा यकृत-पित्त (यकृत पित्त अन्नको पचाने का काम करता है)का स्त्राव अधिक होता है। जिससे आमाशय (Stomach) और अंत्र (Intestine), दोनों स्थानो की पाचन क्रिया सबल बनती है। इस हेतु से अग्निमांद्य, आमवृद्धि (आम=अपक्व अन्न रस, जो एक प्रकार का विष बन जाता है और शरीर में रोग पैदा करता है), पेटमे भारीपन, पेट के कृमि और मलावरोध (कब्ज) आदि विकार दूर हो जाते है। एवं यकृत पित्त कम मिलने से उत्पन्न मल में दुर्गंध, मल श्वेत वर्णका हो जाना, शुक्ष्म कृमि हो जाना आदि लक्षण भी दूर हो जाते है।

आमाशय (Stomach), अंत्र (intestine) और यकृत (liver) निर्बल होनेपर घी जैसे भारी पदार्थो का सेवन अधिक हो जाय, तो अपचन होता है। फिर उदर में वेदना (पेट दर्द), अफरा, बार-बार दूषित डकार आना, किसीको थोड़ा थोड़ा दस्त दिनमे ३-४ बार होना और अरुचि आदि लक्षण उपस्थित होते है तथा बार-बार भोजन करने का स्वप्न आता रहता है। इस विकार पर गंधक वटी का अच्छा उपयोग होता है। यदि रोग जीर्ण (लंबे समय का) हो तो इस वटीका सेवन एक मास तक कराने पर आमाशय, अंत्र और यकृत सबल बन जाते है। फिर अग्नि प्रदीप्त हो जाती है। इस वटी मे गंधक, चित्रकमूल, पिप्पली, कालीमिर्च, सोंठ, ये सब अग्निप्रदीपक द्रव्य है। यदि अपचनमेंसे विसूचिका (Cholera) की प्राप्ति हो गई हो अर्थात वमन (उल्टी) और दस्त (मल त्याग) होते रहते हो तथा उदर में पीडा बनी रहती हो, तो गंधक वटी का सेवन १-१ घंटे बाद ३-४ बार प्याज के रस के साथ करने से लाभ हो जाता है। रोग मंद मंद बना रहे, तो यह वटी दिनमे ३ बार मठ्ठे के साथ ४-६ दिन तक देनी चाहिए।

शारीरिक निर्बलता और पांडुता (शरीर पीला पड जाना)की संप्राप्ति आमप्रकोपसे, हुई हो, तो  गंधक वटी का सेवन भोजन करने के २ घंटे बाद कुच्छ दिनो तक करनेसे पचन क्रिया सबल बनती है और आम (Toxin)की उत्पत्ति नहीं होती। फिर धीरे धीरे पांडुता और निर्बलता दूर हो जाती है।

यकृत पित्त (जो अन्नके साथ मिलकर अन्नको पचाता है)का स्त्राव कम होने तथा दूषित पदार्थ खाने, मांसाहार अधिक करने अथवा अपथ्य या संयोग विरोधी पदार्थोका एक साथ सेवन करनेपर उदरमे शुक्ष्म कृमियोंकी उत्पत्ति होजाति है। अनेक बार ये कृमि १२ घंटोमे ही उत्पन्न होकर मलके साथ असंख्य निकलते है। इस विकृति को दूर करने के लिये पहले एरंड तैलका विरेचन लेकर उदर को साफ कर लेना चाहिये। फिर गंधक वटी का सेवन पथ्य पालनसह कुच्छ दिनोतक करानेसे विकार दूर होजाता है।

वक्तव्य: शुक्ष्म कृमिवालोको प्रायः दूध अनुकूल नहीं रहता। दही और मट्ठा विशेष अनुकूल रहता है। लहसुन और प्याज भी हितावह है।

मात्रा: 1 से 4 गोली दिनमे 3 बार भोजनके दो घंटे बाद।

गंधक वती घटक द्रव्य और निर्माण विधि (Gandhak Vati Ingredients): शुद्ध गंधक 2 तोले, चित्रकमूल, पीपल, कालीमिर्च, सब 1-1 तोला, सोंठ 2 तोले, जवाखार, सैंधा नमक, कालानमक और साँभर नमक आधा-आधा तोला लें। सबको मिला नींबू के रस की 7 भावना देकर 2-2 रत्ती की गोलियां बनालें। (1 रत्ती = 121.5 mg; 1 तोला = 11.66 ग्राम)

Ref: रस राज सुंदर

दूसरी विधि:

घटक द्रव्य तथा निर्माण विधि (Gandhak Vati Ingredients): शुद्ध गन्धक 1 भाग और सोंठ का सत्व 4 भाग लेकर दोनों को नीम्बु के रस की 7 भावना देकर यथारुचि सेंधानमक मिलाकर मर्दन करें और 3-3 या 4-4 रत्ती की गोलियां बनाले ।

गुणधर्म: इस गन्धक वटी का नित्य भोजन के अन्त में सेवन करने से रुचि और अग्नि की वृद्धि होती है। इसके दोनो ही द्रव्य रसायन, ऊष्ण, कटु और पाक में मधुर हैं। दोनों ही के सेवन से आम (अपक्व अन्न रस जो एक प्रकार का विष बन जाता है और शरीर में रोग पैदा करता है) का शोषण, विष का नाश और शरीर शक्ति की वृद्धि होती है। यह अन्त्र (Intestine) के सर्व साधारण त्रिदोषज विकारो को भी नष्ट कर सकती है। यह पाचक, वातानुलोमक (वायु की गति को नीचे की तरफ करनेवाली), आक्षेपनाशक और आध्यमान (अफरा), अरुचि तथा अजीर्ण का नाश करनेवाली है।

मात्रा: 1 से 4 गोली । जल के साथ ।

Ref: रसायन सार संग्रह

Gandhak vati is useful in indigestion, anorexia, duodenum problem, abdominal lump and gas.

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