शनिवार, 19 मई 2018

कासीस भस्म के फायदे / Benefits of Kasis Bhasma


कासीस भस्म पाण्डु (Anaemia), क्षय (T.B.), मूत्रकुच्छ (Urine irritation), पथरी (Stone), यकृतवृद्धि (Liver enlargement), प्लीहोदर, उदरवातयुक्त संग्रहणी, अतिसार (Diarrhoea), प्रवाहिका, मधुमेह (diabetes), आम विकार (Toxin), कफप्रकोप, शूल, वातज गुल्म (Tumour) और स्त्रियोंके गर्भाशय दोषको दूर करनेमे उपयोगी है। एवं किसी रोगके हेतुसे या चिंतासे अकालमे आई निर्बलताको भी दूर करके शरीरको सुदर्ढ् और कांतिवान बनाती है।

कासीस भस्म किंचित उष्ण, कषाय तथा अम्ल गुणयुक्त है। नेत्रोके लिये हितकर है। कफनाशक होनेसे मंदाग्निको दूर करके अग्नि प्रदीप्त करती है तथा रक्तमे रहे हुए रक्ताणुओकी वृद्धि करती है। इस भस्ममे कषाय गुण होनेसे यह रक्तप्रसादन कार्य करके नेत्रविकारको शमन करती है।

कासीस भस्म आमसंशोषक होनेसे अग्निको प्रदीप्त करती है। कासीस भस्म मात्रके सेवनसे आम (Toxin)का पाचन होता है।
कासीस भस्म अग्निप्रदीपक है; अर्थात पाचक रस का पाचकत्व कम होनेपर पचनेन्द्र्यको उत्तेजना देकर पाचक-रसकी तीव्रता प्रस्थापित करानेवाली औषधि है। अंत्रमे रहे हुए आमपर इस भस्मका कार्य होता है। इसलिये आमजन्य अजीर्ण, अजीर्ण रोग और उनसे होनेवाले विकारपर यह उपयोगी है।

शरीर अकालमे निर्बल और निस्तेज होजानेपर इस भस्मका सेवन कराया जाता है। यदि अकालमे बाल पककर सफेद हो जाते है; और वृदधावस्था के समान कमजोरीकी प्राप्ति होती है, तो कासीस भस्म, लोह भस्म और त्रिफला, तीनोंको मिलाकर परिस्थिति अनुसार योग्य परिमाणमे धृत और शहदके  साथ देनेसे अच्छा उपयोग होता है। यह योग पांडु रोगकी प्रथमावस्थामे भी दिया जाता है। बार-बार अजीर्ण होनेकी आदत हो और पाण्डुता आई हो; तो इस योग का अवश्य प्रयोग करना चाहिए।

वातज गुल्म और शूलपर कासीस भस्मका उपयोग होता है। यह अग्निप्रदीपन करके गुल्म और शूल (वेदना)को नष्ट करती है।
बृहदन्त्रमे सेन्द्रिय विषको रूपांतरित करनेवाली औषधियोंमे कासीस भस्मकी गणना होती है। इस स्थानपर दो प्रकारकी औषधिया उपयोगी है- आरोग्यवर्धीनी, वराटिका भस्म, ताम्रभस्म आदि उष्ण, तीक्ष्ण और रसायन गुणयुक्त औषधिया। और दूसरी कासीस भस्मके समान कषाय,रसात्मक और शामक रसायन औषधीया। इनमेसे कासीस भस्मका उपयोग विशेष सेन्द्रिय विषके योगसे दाह होनेपर अच्छा होता है। दाहके साथ उदरमे वात भी उत्पन्न होता हो, दुष्ट अपानवायु बार-बार निकलता हो, और उदरमे गुडगुडाहट आदि लक्षण हो तो कासीस भस्मका उपयोग किया जाता है।

कासीस भस्म वात और कफ दोष, रस और रक्त दूष्य तथा यकृत (Liver), प्लीहा (Spleen), आमाशय, ग्रहणी और नेत्र स्थान, इन सब पर लाभ पहुचाती है। इसके सेवनसे रक्तके रक्ताणुओकी वृद्धि होती है। यह इसका विशेष धर्म है।

सूचना: कासीस भस्मसे किसी-किसीको वमन (Vomit) होती है, और चक्कर आता है। एसा होनेपर मात्रा कम करे, और सुवर्णमक्षिक मिलाकर देवे।

मात्रा: 1 से 3 रत्ती (1 रत्ती = 121.5 mg) तक दिनमे 2 समय।   

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