विषमज्वरान्तक लोह वात, पित्त और कफ, तीनों दोषोकी विकृतिसे उत्पन्न आठों
प्रकारके ज्वारोंको दूर करती है। एवं यह प्लीहावृद्धि, यकृतवृद्धि, गुल्म,
साध्य और असाध्य सतत, संतत आदि सब विषमज्वर (Malaria), कामला (Jaundice), पांडुरोग,
शोथ (Swelling), प्रमेह,
अरुचि, ग्रहणी,
आमवृद्धि, कास,
श्वास, मूत्रकुच्छ और अतिसारका भी नाश करती है, अग्नि प्रदीप्त करती है। तथा बल और वर्णकी वृद्धि
करती है।
विषमज्वरान्तक लोह यकृतबलवर्धक, किटाणुनाशक, आमपाचक,
ज्वरध्न तथा मस्तिष्क, ह्रदय और रक्तके लिए पौष्टिक है। इस
लोहका उपयोग बार-बार बढ़नेवाले जीर्णज्वर (long
term fever) और बार-बार
उलटकर आनेवाले विषमज्वर
(malaria) और राज्यक्ष्माके
ज्वरपर बहुत अच्छा होता है।
जीर्ण ज्वर, जिसमे यकृतप्लीहा (Liver and Spleen) वृद्धि होगई हो, जो ज्वर महीनोसे नहीं छोडता, मंद-मंद बना रहता है,
और बार-बार थोड़े दिनपर बढ़ जाता है। जिसमे प्लीहा नाभि तक पहुँच गई हो, यकृतपर भी शोथ आगया हो,
शरीर अतिकृश और निस्तेज होगया हो, अग्नि अति मंद हो, कब्ज बना रहता हो,
कार्य करनेका उत्साह न रहा हो, एसी स्थितिमे पथ्य-पालनसह भुना जीरा
शहदके साथ इस रसका सेवन करानेसे धीरे-धीरे प्लीहावृद्धिका ह्रास होता जाता है, बल वृद्धि होती है और ज्वर दूर हो जाता है। आम अधिक
गिरता हो और अपचनजनित पतले दश्त बार-बार लगते हो,
तो वे भी दूर होकर शरीर निरोगी बन जाता है।
मात्रा: 1 से 2
रत्ती भुने जीरेका चूर्ण 1 माशा और 4 माशे शहदके साथ। या 2 तोले ताजी गिलोयके
क्वाथके साथ दिनमे 2 या 3 बार। आमाजीर्णसह ज्वरमे हींग, पीपल और सैंधानमकके साथ।
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