शुक्रवार, 27 अप्रैल 2018

कुमार कल्याण रस के फायदे / Benefits of Kumar Kalyan Ras

कुमार कल्याण रस (Kumar Kalyan Ras) ज्वर (बुखार), श्वास, कास (खांसी), वमन (उलटी), कामला (Jaundice), दूषित ज्वर, अतिसार (Diarrhoea), मंदाग्नि, निर्बलता, कृशता (दुबलापन), इन सबको दूर करता है, रोग की भयंकर अवस्था मे शक्तिका रक्षण करता है और ह्रदयको उत्तेजना देता है। इस रसके सेवनसे बालक पुष्ट और उत्साही बनता है।

आचार्योने इस रसायनको  कुमार कल्याण संज्ञा दी है, वह सार्थक है। क्योकि, यह रस निर्बल, कृश और रोगी बालको के लिये सच्चा कल्याणकर है। आचार्योने इस रसकी योजना इस तरह की है कि, यह वात, पित्त और कफ, तीनों प्रकृतिवाले बच्चों को लाभ पहुंचा सके। एवं वातज, पित्तज और कफज विकृति में प्रायोजित हो सके। इन तीनों विकृतियों में भी वातज और कफज पर यह कुमारकल्याण रस अधिक प्रभाव दर्शाता है।

सामान्मत बालक को पारदप्रधान ओपधि अधिक अनुकल रहती है। पारदप्रधान औषध सेवन से इन्द्रियोपर सत्वर लाभ पहुचता है । कुमार कल्याण रस (Kumar Kalyan Ras) पारद (रससिन्दूर) प्रधान होनेसे सुवर्ण आदि धातुओं के गुण को अनेक गुना बढ़ा देता है तथा सत्वर लाभ पहुचाता है। रससिंदूर रसायन, यकृत (Liver), हृदय और रक्त आदिके लिये उपकारक और कीटाणुनाशक है । मोती मस्तिष्क, नेत्र, हृदय, रक्त और अस्थि (हड्डी) को बलवान बनाता है तथा पित्त प्रकोप को दबाता है । सुवर्ण शीतल, रसायन, मस्तिष्क के वातनाडी और हृदयके लिये पोषक, विष का संशोधक, कीटाणुनाशक और आयुवर्द्धक है । अभ्रक रसायन, उत्तेजक, सर्वरोगहर, वातनाडी, मांसपेशिया, हृदय आदिके लिये हितकर तथा कीटाणुनाशक है । लोह भस्म रक्त्तपोष्टिक है । सुवर्णमाक्षिक रक्त्त पौष्टिक, पित्तशामक तथा मस्तिक के लिये हितकर है। घीकूवार की भावना देनेसे अंत्रस्थविकृति, यकृविकृति और मलावरोध (कब्ज) में भी लाभ पहुचता है । इस रसायन का संयोगजन्य गुण धातु परिपोषण क्रम को नियमित बनाना, इन्द्रियो को सवल बनाना तथा कीटाणुविष को नष्ट करना आदि है।

कोई भी प्रबल व्याधि होजानेपर बालको की जीवनीय शक्ति सत्वर कम हो जाती है। फिर धातुपरिपोषण (शरीर की सात धातुए होती है, रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र) योग्य नहीं होता। इस हेतुसे यकृत् (Liver) आदि इन्द्रियाँ सबल नहीं बन सकती। फिर दूध या भोजन का पचन योग्य नहीं होता, रसोत्पत्ति (खाये हुए अन्न में से रस बनता है, जिससे शरीर की सात धातुए बनती है) लगभग बन्द हो जाती है और बालक दिन-प्रति-दिन गलता जाता है, उसे बालशोप कहते है। उस अवस्था में शुस्क, निस्तेज मुखमण्डल, म्लानदेह, दुर्बल हाथ-पैर, उदरवृद्धि (पेट बड़ा होना), नितंब पर सलवट पडना, सारा दिन रो-रो करना, अग्निमाद्य, अरुचि, अपचन और मलावरोध (कब्ज) आदि लक्षण उपस्थित होते हैं। मल-मूत्र दुर्गन्धयक्त हो जाते हैं तथा मल में आम (अपक्व अन्न रस जो एक प्रकार का विष बन जाता है और शरीर में रोग पैदा करता है) की प्रतीति होती है। ऐसी अवस्था में कुमार कल्याण रस का सेवन कराने से पचन क्रिया सुधरती है; इन्द्रियां अपना अपना कार्य नियमित करने लगती हैं; रस , रक्तादि धातुओं की उत्त्पत्ति नियमित होने लगती है और शरीर थोड़े ही दिनोंमें सबल बन जाता है।

यद्यपि कुमार कल्याण रस श्वास, कास (खांसी), वमन (उल्टी), त्रिदोषजज्वर (तीनों दोषों से उत्पन्न बुखार), सन्निपात, डब्बा आदि रोगों की मुख्य औषधि नहीं है, तथापि इन रोगों की तीक्ष्णावस्था में हृदय का संरक्षण करने के लिये, रोग दूर होजान के पश्चात् रोगनिरोधकशक्ति बढ़ानेके लिये तथा शारीरिक यन्त्रोंकी क्रिया नियमित करके देह (शरीर) को सबल बनाने के लिये यह निर्भयरूपसे व्यवहृत होता है।

प्रायः देखा जाता है कि स्तन्य दोष के कारण, दांत निकलते समय और अन्न सेवन काल मे शिशुओं को पाचन विकार सताते है, इससे उनके पेट बड़े हो जाते है, यकृतप्लीहा की वृद्धि हो जाती है और शरीर हाडपजिर निकल आता है। और बच्चा दिनो दिन क्षीण बल, अग्नि और काय दीखने लगता है ऐसी स्थिति मे उसे सुपाच्य, अग्निदीपक, रक्तवर्द्धक, वर्णकारक, आमनाशक और अपथ्य दोषनाशक औषध देनी चाहिए। कुमार कल्याण रस बालकों के लिए सर्वश्रेष्ठ औषध है।

मात्रा: आधी से एक गोली तक दिनमे 2 बार माताके दूध अथवा रोगानुसार अनुपान के साथ। बच्चों की आयु और वजन के हिसाब से आधी से एक गोली देनी चाहिये। (१ गोली आध रत्ती की होती है मतलब ६०.७५ mg की)


कुमार कल्याण रस घटक द्रव्य तथा निर्माण विधान (Kumar Kalyan Ras Ingredients): रससिन्दुर, मोतीपिष्टी, स्वर्णभस्म, अभ्रकभस्म, लौहभस्म और स्वर्णमाक्षिक भस्म समान भाग ले । सबको एकत्र खरल करे । तदनन्तर घीकुमारी के रस मे घोटकर १/२-१/२ रत्ती की गोलियां बनाले। (1 रत्ती=121.5 mg)

Ref: भैषज्य रत्नावली


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