बुधवार, 18 अप्रैल 2018

हिंग्वाष्टक चूर्ण के फायदे / Benefits of Hingwashtak Churna


हिंग्वाष्टक चूर्ण (Hingwashtak Churna) अजीर्ण रोग, अपचन, मंदाग्नि, हैजा, पतला दस्त, वात संग्रहणी, वातगुल्म (Abdominal Lump), वातशूल (Colic), आफरा आदि दोषोको दूर करके पाचनशक्तिको सुधारता है। कफ़ज और वातज विकारमे लाभदायक है। पित्तविकारमे और पित्तप्रधान प्रकृतिवालो के लिये इसका उपयोग नहीं करना चाहिये।

हिंग्वाष्टक चूर्ण (Hingwashtak Churna) मे प्रधान औषधि हिंग है। हिंगमे उदरवातघ्न (पेट की गेस दूर करने का) और शूलहर (दर्द को दूर करने का) गुण प्रधान है। यह आमाशय (Stomach) और अंत्र (Intestinez) मे संगृहीत वायुको दूर करती है, उदरशूल (पेट दर्द) का शमन करती है, पाचक रस का स्त्राव अधिक कराती है और किटाणुओ को नष्ट करती है। इस हिंग के साथ मिलाये हुए त्रिकटु आदि द्रव्य यकृतपित्तको सबल बनाकर पित्तस्त्राव कराने मे सहायक होते है। इस हेतु से यह चूर्ण आमाशय और अंत्र दोनोंकी पचन क्रिया बढ़ाता है।

जब अंत्र की निर्बलता या पचन विकृतिके कारण भोजन करनेपर तुरंत शौच जाना पड़ता हो अथवा दिनमे 4-5 बार थोड़ा थोड़ा मल त्याग होता हो, उदर मे भारीपन बना रहता हो, तथा मुखका स्वाद फीका रहता हो तब इस चूर्णके साथ जायफल, जावित्री और कपूर मिलाकर थोडी मात्रा मे देते रहने से तुरंत लाभ पहुंचता है।

मात्रा: 2 से 4 माशे (1 माशा = .97 ग्राम ) भोजनके समय घीके साथ लेवे।

हिंग्वाष्टक चूर्ण बनाने की विधि: सोंठ, कालीमिर्च, पीपल, अजमोद (या अजवायन), सैंधा नमक, जीरा, कालाजीरा और भुनी हींग इन 8 औसहाधियों को समभाग मिलाकर बारीक चूर्ण करें।

Ref: अष्टांग ह्रदयम्

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