यह आसव धातुक्षय
(वीर्य की कमी) और पांचों प्रकारकी कास (खांसी)को दूर करता है। कृश (दुबले)
मनुष्योको पुष्ट बनाता है। यह आसव बलदायक, वाजीकरण (वीर्य और कामशक्तिको बढ़ाने
वाला) और वंध्या स्त्रियोको संतानोत्पादक है।
इस आसवका प्रयोग
बद्धकोष्ठ (कब्ज)मे बहुत अच्छा होता है। बद्धकोष्ठ होनेपर अंत्रके भीतर मलका संचय
अधिक होता है। मल सड़ता रहता है। फिर असमेसे दुर्गंध और सेंद्रिय विषकी उत्पत्ति
होती है। यह विष श्लैष्मिक कला द्वारा शोषित होकर रक्त आदि धातुओमे प्रवेश करता
है। इस विष के हेतुसे विविध रोगोकी सृष्टि निर्माण होती है। इन सबकी उत्पत्तिको
भृगराजासव रोक देता है। इसके योगसे कोष्ठस्त सेंद्रिय विष निर्विष होजाता है, या हानी पहुंचानेके लिये समर्थ नहीं रहता।
मात्रा: 1 से 2꠱
तोले तक समान जल मिलाकर सेवन करे।
(12
से 28 ग्राम)
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