शनिवार, 28 अप्रैल 2018

अर्जुनारिष्ट के फायदे / Benefits of Arjunarishta


अर्जुनारिष्ट (Arjunarishta) उत्तम ह्रद्य (ह्रदय को बल देने वाला) है। पित्तप्रधान ह्रदयरोग और फेफड़ोकी सूजन से फुली हुई शिथिल नाड़ियोको संकुचित और द्रढ़ बनाकर निर्बलताको दूर करता है, तथा शरीरमे बल लाता है।

अर्जुन ह्रदय रोगों के लिये किर्ति सम्पन्न औषध है। इसका अनेक रूप में सेवन किया जाता है। धमनियों और रक्तवाहिनियों में अधिक ऊष्मा का प्रवेश हो, रक्त अधिक तरल और पोषक गुण विहीन हो गया हो, धमनि और शिराओं की दीवारों में शिथिलता आ गई हो और ह्रदय, धमनी एवं शिराओं में वातजन्य अवरोध या रक्तदोषजन्य अवरोध हो वहां पर अर्जुनारिष्ट का प्रयोग बहुत ही लाभप्रद होता है।

अर्जुनारिष्ट (Arjunarishta) ह्रदय की गति को सर्वदा सम्पन्न रखता है। ह्रदय की शिथिलता, ह्रदय मांस कृच्छता, ह्रदय मंदता, ह्रदय के आवरण की सूजन, क्षोभ (Irritation) और जलन में इसका प्रयोग सर्वदा लाभप्रद सिद्ध होता है।

रक्तचाप की क्षीणता (Low Blood Pressure) में अर्जुनारिष्ट का सतत सेवन शक्तिवर्धक, पोषक, भ्रम (चक्कर), मूर्च्छा, संतापनाशक और आनंदप्रद होता है।

अर्जुनारिष्ट जैसे ह्रदय की मंद गति को बढ़ाता है वैसे ही ह्रदय की अनैच्छिक एवं परिवर्द्वित गति को सम (Balance) करता है। इसके सेवन से रक्तचाप वृद्धि (High Blood Pressure) में विकार की संभावना नहीं होती, बल्कि ह्रदय की पुष्टि होती है। यह नाड़ियों का भी पोषण करता है।

खांसी, श्वास, क्षय (Tuberculosis), उरःक्षत (छाती का मांस फटना), ह्रदय की शिथिलता, श्वास-कृच्छता और ह्रदय तथा फुफ्फुस की दुर्बलता में इसका प्रयोग लाभकारी है। अर्जुनारिष्ट ह्रदय और फुफ्फुस के समस्त रोगों को नष्ट करता और बल-वीर्य बढ़ाता है। 

अर्जुनारिष्ट घटक द्रव्य और निर्माण विधान: अर्जुन की छाल 400 तोले, द्राक्षा 200 तोले और महुवे के फूल 80 तोले मिला जौकूट करा 4096 तोले जल मिलाकर क्वाथ करें। चतुर्थांश जल शेष रहे, तब उतारकर छान लें। फिर शीतल होने पर गुड़ 400 तोले और धाय के फूल 80 तोले मिला मुखमुद्रा करके 1 मास तक रख देवें; फिर छान कर भर लेवें।

मात्रा:  10 से 20 ml बराबर मात्रा मे पानी मिलाकर भोजन के बाद शुबह-शाम।
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