रविवार, 29 अप्रैल 2018

महाकल्याण रस / उत्तम मांसपौष्टिक, रसायन / Benefits of Mahakalyan Ras

महाकल्याण रस / उत्तम मांसपौष्टिक, रसायन / Benefits of Mahakalyan Ras
यह महाकल्याण रस समशीतोष्ण (गरम और ठंडा बराबर), कामोत्तेजक (Aphrodisiac), उत्तम मांसपौष्टिक (Nutritious), रसायन (Promotes long life), आमनाशक (Removes toxin from the body), वातहर और विषहर है। प्रमेह, मदात्यय (Alcoholism = शराब का नशा) आदि रोग अथवा विषप्रकोपके हेतुसे जब मांसपेशियोंकी शक्ति नष्ट होजाती है, मस्तिष्क, ह्रदय और अन्य यंत्र अपना कार्य करनेमें असमर्थ होजाते है तथा रस, रक्त आदि धातुओंमे विष ( आमविष, रोग विष, कीटाणुविष अथवा दूषित औषधिविष ) लीन होजाता है, एसी अवस्थामें लीनविषको नष्टकर देहको सबल बनानेमें यह सफल प्रयोग है। डाक्टरी चिकित्सा कराकर हताश हुए रोगियोंको भी इस महाकल्याण रसने जीवन दान दिया है। वृद्धावस्थामें इस रसके सेवन करनेसे बल प्राप्त होता है।

मात्रा: 1 से 2 गोली दिनमें 2 बार शतावर्यादि धृत, च्यवनप्राश अवलेह अथवा मिश्री मिले दूधके साथ।

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मौक्तिक रसायन / निर्बलतानाशक और आयुवर्द्धक / Benefits of Mauktik Rasayana

मौक्तिक रसायन / निर्बलतानाशक और आयुवर्द्धक / Benefits of Mauktik Rasayana

यह मौक्तिक रसायन शीतवीर्य, निर्बलतानाशक और आयुवर्द्धक है। मूल ग्रंथकारने इसका सेवन 1 वर्ष पर्यन्त करनेका लिखा है। इसके सेवनसे नेत्रज्योति बढती है और सौ वर्षकी आयु भोगता है, स्मरणशक्ति, विचारशक्ति, धारणा शक्ति, धैर्य, विनय आदिकी वृद्धि होती है। शास्त्रार्थमें विजय पाता है। इसके सेवनसे वन्ध्याको पुत्रकी प्राप्ति होती है। सूतिका रोग दूर होता है। बालकों के लिये यह रसायन अत्यंत हितकारक, उत्तम वृष्य और आयुवर्द्धक है। स्त्रियोंके नागोदर और उपविष्टक ( गर्भाशयमें गर्भ सूख जाना या चिपक जाना ) को जल्दी दूर करता है। सगर्भाके सब रोगोंको दूर करके गर्भको सबल बनाता है।

मात्रा: 2-2 रत्ती (1 रत्ती = 121.5 mg) दिनमें 1 बार सुबह शहद-पीपलके साथ लें।

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जयमंगल रस / बुखारकी दिव्य औषधि / Benefits of Jaimangal Ras

जयमंगल रस / बुखारकी दिव्य औषधि / Benefits of Jaimangal Ras
जयमंगल रस बडी दिव्य औषधि है। सब प्रकारके ज्वरो (बुखार)को दूर करती है और मस्तिष्कमे पहुंची हुई ज्वरकी उष्णताको दूर करके शांत बनाती है। बहुत कालका महाघोर जीर्णज्वर, साध्य (जो मिटता है) और असाध्य (जो मिटता नहीं है) आठों प्रकारके ज्वर, वात-पित्त आदि भिन्न-भिन्न दोषोंसे होनेवाले सब प्रकारके ज्वर, सब प्रकारके विषम ज्वर (malaria), मेदोगत ज्वर, मांसात्रित ज्वर, अस्थि और मज्जामे रहा हुआ ज्वर, अंतरवेग और बाह्यवेग वाला उग्र ज्वर, नाना प्रकारके दोषोंसे उत्पन्न ज्वर, शुक्रगत ज्वर तथा अन्य सभी प्रकारके ज्वारोंको यह रसायन दूर करता है। बल-वीर्य की वृद्धि करता है; तथा सर्व रोगोंको नष्ट करता है।

अनेक समय विषमज्वर (malaria) कई दिनो तक त्रास पहुंचाता रहता हो; जो मुद्दती ज्वर औषधि या पथ्यमे भूल होनेसे 2-2 मास तक या इससे भी ज्यादा समयका हो गया हो, अन्य किसी भी प्रकारके ज्वर, जीर्ण होकर मांस आदि धातुके आश्रित रहे हुए हो, और शीतल उपचारसे तथा गरम उपचारसे भी बढ़ जाते हो; एसे सब ज्वारों को समूल नष्ट करने के लिये यह रस अद्वित्य है।

इस रसके सेवनसे अंत्रमे रहे हुए ज्वरके किटाणु नष्ट हो जाते है; सेंद्रिय विश (toxin) जल जाता है, निंद्रा आने लगती है। दाह (Irritation) शमन हो जाती है; कफ सरलतासे निकल जाता है, दुष्ट कफकी उत्पत्ति बंद हो जाती है, वातवाहिनिया बलवान बनने लगती है; मन प्रफुल्लित बनता है; एवं क्षुधा (भूख) प्रदीप्त होने लगती है। परिणाममें थोड़े ही दिनोमे शरीर निरोग, पुष्ट और तेजस्वी बन जाता है।

जब ज्वरविष (बुखारका जहर) रक्त आदि धातुओमें लीन रहता है; वात, पित्त, कफ, तीनों धातु निर्बल हो जानेसे जीवनीय शक्ति ज्वरविष या किटाणुओको नष्ट करनेमे असमर्थ हो गई हो; ह्रदयकी शिथिलताके हेतुसे बच्छनागप्रधान औषधि अनुकूल न रहती हो; तब विषध्न, ज्वरध्न, बल्य, ह्रद्य (ह्रदय को ताकत देने वाली) औषधकी आवश्यकता है। ये सब गुण जयमंगल रसमें उपस्थित है।

मात्रा: ½ से 1 रत्ती तक दिनमें 2 से 3 समय जीरेके चूर्ण और शहदके साथ या रोगानुसार अनुपानके साथ देवें। ज्यादा मात्रा लेने पर यह औषध नुकसान पहुंचा सकता है। बिना आयुर्वेद चिकित्सक की सलाह, इस औषध का प्रयोग न करें। आयुर्वेद चिकित्सक की सलाह से लें।

हानी रहित निर्दोष बुखार की दवा सिर्फ महासुदर्शन चूर्ण और सुदर्शन घनवटी है।     


घटक द्रव्य: सिंगरफ से निकाला हुआ पारद, शुद्ध गंधक, सोहागे का फुला, ताम्र भस्म, वंग भस्म, स्वर्णमाक्षिक भस्म, सैंधा नमक और सफेद मिर्च, प्रत्येक 1-1 तोला; सुवर्ण भस्म 2 तोले, लोह भस्म 1 तोला और रौप्य भस्म 1 तोला। भावना: धरूते के पत्तों का रस, हारसिंहरे के पत्तों का रस, दशमूल क्वाथ और चिरायते के क्वाथ की भावना।


Ref: भै. र. (भैषज्य रत्नावली), र. त. सा. (रस तंत्र सार)


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महाज्वरांकुश रस के फायदे / Benefits of Maha Jwarankush Ras

महाज्वरांकुश रस के फायदे / Benefits of Maha Jwarankush Ras

महाज्वरांकुश रस वेदनाशामक, ज्वरध्न (बुखार का नाश करने वाला) और पाचक है। वातज्वर, कफज्वर, द्वंदज्वर, त्रिदोषज ज्वर और सब प्रकारके विषमज्वर (Malaria)- एकाहिक, द्वीयाहीक,तृत्यक, चातुर्थिक आदि का नाशक है। यह रस बिना ठंडके ज्वर और लगातार रहनेवाले और घटने बढ़नेवाले ज्वरमे अति उपयोगी है। ज्वरके साथ उत्पन्न अजीर्ण, पतले दश्त होना, पेटमे दर्द होना, पेटमे वायु (अफरा) होना इत्यादि विकारोंको भी दूर करता है। जीर्ण संधिवात (आमवात) मे यह रस लाभदायक है। इस रसके सेवन से कुच्छ प्रस्वेद आता है, वेदना शमन होती है; और आम पाचन होकर ज्वर दूर हो जाता है।

अजीर्ण या असातम्य भोजनसे पचनेन्द्रिय संस्थानके कार्यकी विकृति होकर उत्पन्न ज्वर पर इस रसका उत्तम उपयोग होता है। विशेषतः वेदना सहन न करनेवाले अधीर और चंचल प्रकृतिके रोगीको यह दिया जाता है।

सर्वांगमे कंप (सारा शरीर कांपना), ज्वरवेग असमान (बुखार चढ़-उतर करता हो), निंद्रानाश, बार-बार छींके आना, शरीर जकड जाना, हाथ पैर टूटना, संधि-संधिमे वेदना, मस्तिष्क और कपालमे दर्द, मुहमे बेस्वादुपन, मलावरोध (कब्ज), सारे शरीरमे भारीपन, हाथ पैर शून्य हो जाना, कानमे आवाज आना, दांत भींचना, व्याकुलता, शुष्क कास (खांसी), थोड़ी-थोड़ी वमन (उल्टी), रोंगटे खडे होना, तृषा (प्यास), चक्कर आना, प्रलाप, मूत्रका रंग पीला, लाल या काला-सा हो जाना, उदरमे शूल (पेटमे दर्द), आफरा तथा लक्षणवृद्धि होने पर असहनशीलता, रोगीका बड़-बड़ करते रहना इत्यादि वातप्रधान लक्षण होनेपर यह महाज्वारंकुश रस दिया जाता है।

ज्वरका मंद वेग, अंगमे जड़ता, आलस्य, निंद्रावृद्धि, अंग अकडा हुआ भासना, कपड़ा उतारनेपर शीत लगना, मुहमे बार-बार पानी आना, वमन (उल्टी), उदर (पेट)मे भारीपन, नेत्रके समक्ष अंधकार, सूर्यके तापमे बैठने या अग्निसे तापनेकी इच्छा, सूर्यके तापमे बैठनेसे अच्छा लगना, खांसी, अरुचि, बेचैनी, आदि कफप्रधान लक्षण होनेपर इस महाज्वारंकुशका अच्छा उपयोग होता है।

कफवात ज्वर होनेसे अंगमे जड़ता, मस्तिष्क जकड़ा हुआ भासना, हाड-हाड फूटना, तंद्रा, जुकामके समान नाकमे श्लेष्मकी उत्पत्ति होना, खांसी, प्रस्वेद न आना, हाथ पैर और नेत्रोमे दाह, भय लगना, क्रोध उत्पन्न होना, थकावट-सी लगना आदि लक्षणोमे ज्वर विशेषतः मर्यादित होता है। इस पर यह रसायन लाभदायक है।

सतत विषमज्वर अर्थात 7 या 10 दिन तक रहने वाले ज्वरमे अति जड़ता, हाथ-पैर टूटना, अति प्यास, आदि लक्षण प्रतीत होते है। इस ज्वरमे और एक दिन छोड़कर आने वाले तृत्यक ज्वरमे यह महाज्वरांकुश हितकारक है।

अजीर्ण या अपथ्य सेवनसे ज्वर आनेपर कोष्टस्थ विकृति होती है। फिर उबाक, लालास्त्राव, उदरमे वायु भर जाना, अरुचि, उदरमे मंद-मंद शूल (पेटमे थोड़ा-थोड़ा दुखना), थोड़ा-थोड़ा दस्त लगते रहना, मंदाग्नि, किसी भी प्रकारके भोजनकी इच्छा न होना, संधि-संधि मे वेदना आदि लक्षण प्रतीत होते है। इस ज्वर पर महाज्वरांकुश रस का अच्छा उपयोग होता है।

मात्रा: 1-1 रत्ती (रत्ती = 121.5 mg) अदरखके रस और शहदके साथ देवे। बच्चों को न दें। यह वच्छनाग प्रधान औषधि है। इसकी ज्यादा मात्रा नुकसान पहुंचा सकती है। यह हानी रहित औषधि नहीं है। बिना चिकित्सक की सलाह, इस औषध का उपयोग न करें। बुखार के लिये महासुदर्शन चूर्ण और सुदर्शन घनवटी उत्तम है और हानी रहित है।    

ग्रंथ: व.रा. (वसवराजीयम), र. त. सा. (रस तंत्र सार)

घटक द्रव्य: शुद्ध पारद, शुद्ध गंधक, शुद्ध वच्छनाग तीनों 1-1 भाग, शुद्ध धतूरे के बीज 3 भाग, सोंठ, कालीमिर्च और पीपल तीनों 2-2 भाग। भावना: अदरख और नीबू का रस।  
  



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विषमज्वरान्तक लोह के फायदे / Benefits of Visham Jwarantak Lauh

विषमज्वरान्तक लोह के फायदे / Benefits of Visham Jwarantak Lauh

विषमज्वरान्तक लोह वात, पित्त और कफ, तीनों दोषोकी विकृतिसे उत्पन्न आठों प्रकारके ज्वारोंको दूर करती है। एवं यह प्लीहावृद्धि, यकृतवृद्धि, गुल्म, साध्य और असाध्य सतत, संतत आदि सब विषमज्वर (Malaria), कामला (Jaundice), पांडुरोग, शोथ (Swelling), प्रमेह, अरुचि, ग्रहणी, आमवृद्धि, कास, श्वास, मूत्रकुच्छ और अतिसारका भी नाश करती है, अग्नि प्रदीप्त करती है। तथा बल और वर्णकी वृद्धि करती है।

विषमज्वरान्तक लोह यकृतबलवर्धक, किटाणुनाशक, आमपाचक, ज्वरध्न तथा मस्तिष्क, ह्रदय और रक्तके लिए पौष्टिक है। इस लोहका उपयोग बार-बार बढ़नेवाले जीर्णज्वर (long term fever) और बार-बार उलटकर आनेवाले विषमज्वर (malaria) और राज्यक्ष्माके ज्वरपर बहुत अच्छा होता है।

जीर्ण ज्वर, जिसमे यकृतप्लीहा (Liver and Spleen) वृद्धि होगई हो, जो ज्वर महीनोसे नहीं छोडता, मंद-मंद बना रहता है, और बार-बार थोड़े दिनपर बढ़ जाता है। जिसमे प्लीहा नाभि तक पहुँच गई हो, यकृतपर भी शोथ आगया हो, शरीर अतिकृश और निस्तेज होगया हो, अग्नि अति मंद हो, कब्ज बना रहता हो, कार्य करनेका उत्साह न रहा हो, एसी स्थितिमे पथ्य-पालनसह भुना जीरा शहदके साथ इस रसका सेवन करानेसे धीरे-धीरे प्लीहावृद्धिका ह्रास होता जाता है, बल वृद्धि होती है और ज्वर दूर हो जाता है। आम अधिक गिरता हो और अपचनजनित पतले दश्त बार-बार लगते हो, तो वे भी दूर होकर शरीर निरोगी बन जाता है।

मात्रा: 1 से 2 रत्ती भुने जीरेका चूर्ण 1 माशा और 4 माशे शहदके साथ। या 2 तोले ताजी गिलोयके क्वाथके साथ दिनमे 2 या 3 बार। आमाजीर्णसह ज्वरमे हींग, पीपल और सैंधानमकके साथ।

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शनिवार, 28 अप्रैल 2018

अर्जुनारिष्ट के फायदे / Benefits of Arjunarishta

अर्जुनारिष्ट के फायदे / Benefits of Arjunarishta

अर्जुनारिष्ट (Arjunarishta) उत्तम ह्रद्य (ह्रदय को बल देने वाला) है। पित्तप्रधान ह्रदयरोग और फेफड़ोकी सूजन से फुली हुई शिथिल नाड़ियोको संकुचित और द्रढ़ बनाकर निर्बलताको दूर करता है, तथा शरीरमे बल लाता है।

अर्जुन ह्रदय रोगों के लिये किर्ति सम्पन्न औषध है। इसका अनेक रूप में सेवन किया जाता है। धमनियों और रक्तवाहिनियों में अधिक ऊष्मा का प्रवेश हो, रक्त अधिक तरल और पोषक गुण विहीन हो गया हो, धमनि और शिराओं की दीवारों में शिथिलता आ गई हो और ह्रदय, धमनी एवं शिराओं में वातजन्य अवरोध या रक्तदोषजन्य अवरोध हो वहां पर अर्जुनारिष्ट का प्रयोग बहुत ही लाभप्रद होता है।

अर्जुनारिष्ट (Arjunarishta) ह्रदय की गति को सर्वदा सम्पन्न रखता है। ह्रदय की शिथिलता, ह्रदय मांस कृच्छता, ह्रदय मंदता, ह्रदय के आवरण की सूजन, क्षोभ (Irritation) और जलन में इसका प्रयोग सर्वदा लाभप्रद सिद्ध होता है।

रक्तचाप की क्षीणता (Low Blood Pressure) में अर्जुनारिष्ट का सतत सेवन शक्तिवर्धक, पोषक, भ्रम (चक्कर), मूर्च्छा, संतापनाशक और आनंदप्रद होता है।

अर्जुनारिष्ट जैसे ह्रदय की मंद गति को बढ़ाता है वैसे ही ह्रदय की अनैच्छिक एवं परिवर्द्वित गति को सम (Balance) करता है। इसके सेवन से रक्तचाप वृद्धि (High Blood Pressure) में विकार की संभावना नहीं होती, बल्कि ह्रदय की पुष्टि होती है। यह नाड़ियों का भी पोषण करता है।

खांसी, श्वास, क्षय (Tuberculosis), उरःक्षत (छाती का मांस फटना), ह्रदय की शिथिलता, श्वास-कृच्छता और ह्रदय तथा फुफ्फुस की दुर्बलता में इसका प्रयोग लाभकारी है। अर्जुनारिष्ट ह्रदय और फुफ्फुस के समस्त रोगों को नष्ट करता और बल-वीर्य बढ़ाता है। 

अर्जुनारिष्ट घटक द्रव्य और निर्माण विधान: अर्जुन की छाल 400 तोले, द्राक्षा 200 तोले और महुवे के फूल 80 तोले मिला जौकूट करा 4096 तोले जल मिलाकर क्वाथ करें। चतुर्थांश जल शेष रहे, तब उतारकर छान लें। फिर शीतल होने पर गुड़ 400 तोले और धाय के फूल 80 तोले मिला मुखमुद्रा करके 1 मास तक रख देवें; फिर छान कर भर लेवें।

मात्रा:  10 से 20 ml बराबर मात्रा मे पानी मिलाकर भोजन के बाद शुबह-शाम।
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मदनमोदक के फायदे / Benefits of Madan Modak

मदनमोदक के फायदे / Benefits of Madan Modak

मदनमोदक के सेवनसे नष्टेन्द्रिय, नष्ट शुक्र (नष्ट वीर्य) और वलिपलित व्याप्त जर्जरित वृद्ध भी युवाके समान हर्षायुक्त होकर मंदोंमत स्त्रियोके प्रीति-पात्र बनजाते है, और ग्रहणी, श्वास, कास (खांसी), अर्श (piles), प्रमेह, मधुमेह (Diabetes), सब रोग दूर होकर शरीर हष्ट-पुष्ट और तेजस्वी बन जाता है। यह पाक परम रसायन है।

मदन मोदक घटक द्रव्य: सुवर्ण सिंदूर, लोह भस्म, अभ्रक भस्म, वंग भस्म, जलवेत के बीज, चोपचीनी, सेमल का कंद, धामन की छाल, केशर, जीरा, जायफल, लौंग, समुद्रशोष, सोंठ, मिर्च, पीपल और वंशलोचन, ये 17 औषधियाँ 6-6 माशे। जावित्री, शतावरी, मुनक्का, खरैटी की जड़, काकड़ासींगी, छोटी इलायची के बीज, कौच के बीज, मीठ कुठ, नागरमोथा, विदारीकंद, पेठा, नागकेशर, जटामांसी, शुद्ध कपूर, शीतलचीनी और गोखरू, ये 16 औषधियाँ 2-2 तोले। भुनी भांग सबसे आधी और सबसे दुनी मिश्री।

Ref: रसयोगसार

मात्रा: 1 से 2 गोली सुबह-शाम मिश्री मिले दूधके साथ सेवन करे। मात्रा धीरे-धीरे बढ़ावे। 
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मदन मंजरी वटी के फायदे / Benefits of Madan Manjari Vati

मदन मंजरी वटी के फायदे / Benefits of Madan Manjari Vati

मदन मंजरी वटी (Madan Manjari Vati) कामोत्तेजक, वीर्यवर्द्धक और बल्य है। नवयुवकों के लिये हितकारक है। इसके सेवन से वीर्य की वृद्धि होकर वह गाढा और सुद्ध बनजाता है। शीतकाल में इसका सेवन करनेपर सत्वर लाभ मिलता है। इसमें अफीम न होनेसे यह बिल्कुल निर्भय औषधि है।

मात्रा: 1 से 2 गोली दिनमें 2 बार मिश्री मिले दूधके साथ।


मदनमंजरी वटी घटक द्रव्य (Madan Manjari Vati Ingredients): रससिंदूर, अभ्रक भस्म, वंग भस्म, प्रवालपिष्टी, केशर, जायफल, जावित्री, लौंग, छोटी इलायची के दाने, अकरकरा और सफेद मिर्च, ये 11 औषधियाँ 1-1 तोला, सुवर्ण भस्म 6 माशे, कपूर 6 माशे, कस्तुरी और अंबर 1.5-1.5 माशे। भावना: नागरबेल के पान का रस।

Ref: र. त. सा. (रस तंत्र सार)

दूसरी विधि:

मदनमंजरी वटी घटक द्रव्य तथा निर्माण विधि (Madan Manjari Vati Ingredients):-अभ्रकभस्म 4 भाग, वंगभस्म 2 भाग, पारदभस्म (अभाव मे रससिन्दुर) 1 भाग, शतावर का चूर्ण 7 भाग तथा दालचीनी, तेजपात, इलायची, नागकेसर, जायफल, कालीमिर्च, सोंठ, लोग, और जावित्री का चूर्ण 2-2 भाग लेकर सबको एकत्र घोटकर उसमें सबसे 2 गुनी (68 भाग) खांड और आवश्यकतानुसार घृत और मधु मिलाकर 2-2 रत्ती की गोलियां वनाले ।

Ref: योग तरंगिणी

गुणधर्म: इस मदन मंजरी वटी (Madan Manjari Vati) के सेवन करने से कामशक्ति अत्यन्त प्रबल हो जाती है । यह औषध वात, पित्त, क्षय को नष्ट करनेवाली, बुद्धिवर्द्धक, रोगनाशक, वृष्य (पौष्टिक), रसायन और वाजीकरण है। इसका सेवन धातुवर्द्धक, कान्तिवर्द्धक, ओजप्रद और शरीर पोषक होता है । जीर्ण-शीर्ण शरीर में यौवन का विकास लाने के लिये इसका सेवन हितावह है।

मात्रा:-1 से 4 गोली तक । दूध के साथ । अग्निबलानुसार ।

Madan Manjari Vati is aphrodisiac. It is nutritious and tonic.

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कस्तूरी भैरव रस के फायदे / Benefits of Kasturi Bhairav Ras

कस्तूरी भैरव रस के फायदे / Benefits of Kasturi Bhairav Ras

कस्तूरी भैरव रस (Kasturi Bhairav Ras) ज्वर की तरुणावस्था (बुखार की शुरुआत में) आम (अपक्व अन्न रस जो एक प्रकार का विष बन जाता है और शरीर में रोग पैदा करता है)-पाचन और ज्वर शमनार्थ (बुखारको रोकने के लिये) दिया जाता है। इस औषधि के सेवन से 14 दिन के मुद्दती ताप प्रलापक सन्निपात (Typhus Fever) और 21 दिन के मुद्दती ताप आंत्रिक सन्निपात (Typhoid Fever) में रोगी की शक्ति स्थिर रहती है, और समय पूरा होनेपर ज्वर चला जाता है। जिन रोगियों के जीवन की आशा छुट गई हो; ऐसे मोतीझरा (Typhoid) के अनेक रोगी ब्राह्मी क्वाथ के साथ इस औषधि के सेवन से सुधर गये है। कस्तूरी भैरव रस कोमल प्रकृतिवालो और बालको के लिये भी हितकर है। प्रसूता के धनुर्वात, कंप, दांत भिंचना, श्वास, कास (खांसी) और ह्रदयावरोध को सत्वर (जल्दी) दूर करता है। हिस्टीरिया, अपस्मार (Epilepsy), उन्माद (Insanity) और मूर्च्छा में मस्तिष्क को शांत रखता है, और ह्रदय को भी सबल बनाता है।

मात्रा: 2 से 3 गोली दिनमे 2 से 3 समय जल या रोगानुसार अनुपानके साथ देनी चाहिये। बच्चों को कोई भी दवा देने से पहेले चिकित्सक की सलाह लें।

कस्तूरी भैरव रस घटक द्रव्य (Kasturi Bhairav Ras Ingredients): शुद्ध हिंगुल, शुद्ध वच्छनाग, सोहागे का फुला, जावित्री, जायफल, कालीमिर्च, पीपल और कस्तुरी, सब समभाग। भावना: नागरबेल के पान का रस।

Ref: र. रा. सुं. (रसराजसुंदर)

Kasturi Bhairav Ras is useful in fever, Typhus fever and typhoid fever.

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