शनिवार, 13 जून 2015

कामदुधा रस के फायदे / Benefits of Kamdudha Ras


कामदूधा रस (Kamdudha Ras) शीतवीर्य (ठंडा), क्षोभ (Irritation) नाशक और शक्तिदायक है तथा पाचनक्रिया, रुधिराभिसरण, वातवहन क्रिया और मूत्रमार्ग पर शामक असर पहुंचाता है। कामदूधा रस से जीर्णज्वर (पुराना बुखार), पित्तविकार, अम्लपित्त (Acidity), दाह (जलन), मूर्छा, भ्रम (चक्कर), उन्माद (Insanity) यह सब रोग नष्ट हो जाते है।

कामदुधा रस पोषक, रक्तशोधक, शरीरवर्धक, वीर्यवर्धक, बुद्धिवर्धक, ह्रदय की जलन का नाशक, ह्रदय पोषक, और वात-पित्त नाशक है। इसको पित्त से होने वाले सभी रोगों में निस्संकोच प्रयुक्त कर सकते है। आधुनिक रुक्ष (सूखा) और ऊष्ण युग में ऐसी शीत – स्निग्ध औषध सार्वजनिक उपयोग योग्य है।

स्त्रियोंके रक्तप्रदरमे कामदूधा रस (Kamdudha Ras) उपयोगी है। सगर्भावस्थामे कड़वी, खट्टी, जलती हुई वमन (उल्टी) होती हो, तो वह भी कामदूधा रसके सेवनसे शमन होजाती है। 

बालकोकी काली खांसी पर उपयोगी औषधियोंमे कामदूधा रस उत्तम औषधि है। अति निर्बलता आने पर और आमाशय (stomach)मे अधिक उग्रता होने पर अन्य औषधिया जब निष्फल होजाती है तब यह लाभ पहुंचा देती है।


कामदुधा रस (Kamdudha Ras) शीतवीर्य होने से इसका शामक प्रभाव पाचनक्रिया, रुधिराभिसरण क्रिया, वात वहन क्रिया और मूत्र मार्ग पर होता है। इन अवयवों में उत्पन्न दाह (जलन) कम होता है।

इसका कार्य भ्रम, चक्कर आदि विकारों से लेकर उन्माद (Insanity) की परिस्थिति तक मस्तिष्क के विकार, आमाशय (Stomach) से लेकर सब महास्त्रोतों के विकार, मूत्राघात (पेशाब की उत्पत्ति कम होना या पेशाब का रुकना), मुत्रोत्सर्ग, मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन) आदि मूत्रविकार तथा सामान्य रक्तस्त्राव और नाक से रक्तस्त्राव व रक्तपित्त की भयंकर स्थिति तक, सब पर विभिन्न अनुपनों से उपयोगी है।

इसका निर्माण अधिकतर सुधा (चुना) कल्प से होने के कारण शक्ति वर्धक भी होता है। जीर्णज्वर (पुराना बुखार) में शक्तिपात होता ही है उसे यह दूर करता है।

इसके योग घटक में शंख, कपर्दिक होने से प्लीहावृद्धि (Spleen Enlargement) दूर होकर वह स्वस्थ स्थिति में आ जाता है। मंदाग्नि दूर होकर भूख लगने लगती है।

शीत सह ज्वर (Malaria) में कड़वी (तिक्त) औषधियों का अधिक उपयोग किया जाता है। उनमें भी क्वीनाइन तो मुख्य रूप से प्रयोग होती है, उसके अधिक उपयोग से बधिरता, मंदाग्नि, चक्कर, अरुचि, अन्न की इच्छा का कम हो जाना आदि लक्षण उत्पन्न हो जाते है। उस अवस्था में भी कामदुधा रस उपयोगी है।

पित्त के विदग्ध (जलद) होने से रक्त भी विदग्ध हो जाता है। इस हेतु से रक्तवाहिनियों की श्लैष्मिक कला विकृत होकर दीवार पतली हो जाती है। ऐसी स्थिति में चुने का अंश बहुत कम हो जाता है। इस रक्तपित्त के साथ सर्वांग में दाह (पूरे शरीर में जलन), निर्बलता, मूत्र में दाह, जहां से रक्तस्त्राव होता है वहां से गरम-गरम निकलता है। वह पित्त प्रधान रक्तपित्त होने से कामदुधा रस उत्तम शमन कार्य करता है।

पित्त जनित और वात जनित शिरदर्द में भी कामदुधा रस से उत्तम लाभ मिलता है। जिन्हें बहुत दिनों से शिरदर्द, शिरदर्द के साथ-साथ उल्टी, उल्टी होने से शिरदर्द में कमी, ऐसी अवस्था में यह विशेष उपयोगी है। यदि उल्टी होने पर भी शिरदर्द बना ही रहे तो उस अवस्था में सूतशेखर रस का उपयोग करना चाहिए।

पित्तज शिरशूल (शिरदर्द) में रोगी, अति व्याकुल, क्रोधी, जरा से कारण पर ही शिर फूटने लगाना, ज़ोर से हँसना, ज़ोर से बोलना, बालकों का रोना, गाजा-बाजा की आवाज, पक्षियों का कलरव इत्यादि भी सहन नहीं होता। रोगी की मानसिक स्थिति बड़ी नाजुक हो जाती है, ऐसी स्थिति में कामदुधा रस अधिक लाभप्रद है। चूंकि यह पित्त शामक अधिक है। सूतशेखर रस से पित्त की उत्पत्ति नियमित होती है तथा अधिक तीव्र गति से या अधिक परिमाण में उत्पन्न नहीं होता और कामदुधा रस से पित्त की तीक्ष्णता, अम्लता कम होकर उसकी प्रबलता शमन होती है। इसका ध्यान रखकर ही दोनों का उपयोग करें।

पित्तज विकार जब आमाशय में होता है तब खट्टी डकारें, शिर दर्द, चक्कर, खट्टी, कड़वी उल्टी होने लगती है। उसे अम्लपित्त (Acidity) कहा जाता है। पित्त का स्त्राव आवश्यकता से अधिक होने से होता है या पित्त की तीव्रता बढ़ जाती है। पित्तस्त्राव की अधिकता से भोजन खट्टा हो जाता है। खट्टी उल्टी होती है। उस समय सूतशेखर रस अधिक उपयोगी है। परंतु पित्त की तीव्रता अधिक होकर उल्टी होने से अधिक त्रास होना, पित्त थोड़ा-थोड़ा निकलना आदि लक्षण होने पर कामदुधा रस उपयोगी है।

अम्लपित्त रोग के बढ़ जाने पर क्षोभ (Irritation) और जलन होते है फिर क्वचित सूक्ष्म-सूक्ष्म व्रणों (घावों) की उत्पत्ति होती है। इस तरह के अम्लपित्त जनित विकारों पर कामदुधा रस का उत्तम उपयोग होता है।

इसके योग में स्वर्णिक गेरू होता है जो अधिक शामक, स्तंभक होने से भी पित्त का स्त्राव कम हो जाता है, रक्त और रक्तवाहिनियों का प्रसादन भी हो जाता है। पित्तजनक क्षोभ भी दूर हो जाता है। पित्तातिसार, रक्तपित्तातिसार पर कामदुधा का शामक प्रभाव है। किसी औषधि के योग से उत्पन्न अंतस्त्वचा पर क्षोभ (Irritation) होता है तो उसका शमन भी इससे हो जाता है। अधिकतर देखा जाता है कि रक्तातिसार और पित्तातिसार में लघु (Small) और बृहद (Large) अंत्र (Intestine) की अंतस्त्वचा का क्षोभ होता है। पेट में जलन होती है, बार-बार जल पीने की इच्छा होती है, शौचादि जाने पर गुदा में जलन, इत्यादि पित्तज विकारों में कामदुधा रस उत्तम कार्य करता है।

संक्षेप में यह ही समझना चाहिए जब पित्त विदग्ध हो, पित्त विकृति हो, उसका स्त्राव अधिक हो, उससे उत्पन्न विकारों में, चाहे वे विकार किसी अवयव विशेष में हों या सर्वांग में, पेट में, नेत्रों में, गविनियों (Ureters), गर्भाशय में कहीं भी हों उन सब में कामदुधा रस (Kamdudha Ras) का उपयोग होता है। 

Kamdudha ras is cool, it has soothing effect on digestive system, blood circulation and nervous system. Kamdudha ras cures long-term fever, bile disorder, acidity, irritation in any part of the body, dizziness and insanity.

मात्रा: 1 से 3 रत्ती तक दिन मे दो बार। ( 2-2 गोली सुबह-शाम )

कामदुधा रस घटक द्रव्य: मोती भस्म, प्रवाल भस्म, मुक्ता भस्म, मुक्ताशुक्ति भस्म, कौड़ी भस्म, शंख भस्म, गेरू और गिलोय का सत्व प्रत्येक 1-1 भाग।

Ref: रसयोगसार
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1 टिप्पणी:

  1. सर कामद्दुधा रस से रोग जड़ से खत्म होता ह या दबता ह ?क्या दोबारा हो सकता ह ?मेरे पेट मे सूक्ष्म वर्ण ह पेट मे जलन होती ह ।मानसिक त्रास भी ह।कामदुधा रस से आराम ह।क्या ये रोग को जड़ से खत्म करेगा

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