मंगलवार, 2 अक्तूबर 2018

पूर्ण चंद्रोदय रस के फायदे / Benefits of Purna Chandroday Ras


पूर्ण चंद्रोदय रस ह्रदय-पौष्टिक, वाजीकर, रसायन, बल्य, रक्त प्रसादक, जन्तुओ का नाश करने वाला, सेंद्रिय विषनाशक और योगवाही (जो औषध दूसरे औषध के गुण में वृद्धि करे उसे योगवाही कहते है) है। राज्यक्षमा (TB), कफप्रकोप जन्य रोगों और शुक्र की निर्बलता के नाश करने में अत्यंत लाभदायक है। वीर्यस्त्राव, स्वप्नदोष, धातुक्षीणता, मानसिक निर्बलता, नपुंसकता, ह्रदय की निर्बलता, जीर्ण ज्वर (लंबे समय से आने वाला बुखार), क्षय (TB), श्वास, प्रमेह, विषविकार (Toxin), मंदाग्नि (Indigestion), अपस्मार (Epilepsy) आदि को दूर करके बल-वीर्य की वृद्धि करता है।

इस पूर्ण चंद्रोदय रस का सेवन यदि रत्तीकाल (संभोग के समय) में या रति के अंत में किया जाय, तो सो स्त्रियों के साथ संभोग करने की ताकत देता है। इस रसायन के सेवन काल में घी, औंटा कर गाढ़ा किया हुआ दूध, जड़-मांस, मांस-रस, उड़द के पदार्थ और अन्य आनंदवर्धक आहार-विहार पथ्य है। इस रसायन का एक वर्ष तक सेवन करने पर कृत्रिम, स्थावर या जंगम कोई भी प्रकार का विष (Toxin) बाधा नहीं पहुंचा सकता। मनुष्य को इस रसायन के नित्य सेवन से मृत्यु का भय नहीं सता सकता।

स्वर्ण और स्वर्ण मिश्रित औषधियां ह्रदय को शक्ति देती है और खून में से जहर को निकालती है। सुवर्ण योगवाही होने से हेमगर्भ पोटली रस आदि उत्तेजक औषधियों के संयोग से ह्रदय पर उत्तेजक गुण और शामक असर दर्शाता है। पूर्ण चंद्रोदय रस में भी उत्तेजक गुण रहता है। सुवर्ण के योग से इस रसायन का उपयोग किटाणु जन्य क्षय (TB) में होता है। राज्यक्षमा (TB) की द्वित्यावस्था में अनेक समय उत्तम उपयोग होने के उदाहरण मिले है। इस रसायन का क्षय के किटाणुओ पर साक्षात परिणाम होता है। अतः क्षय की तीव्र अवस्था में यह सत्वर लाभ पहुंचाता है।

केवल राज्यक्षमा का संशय (शक) उत्पन्न होने पर ही पूर्ण चंद्रोदय रस का सेवन प्रारम्भ किया जाय, तो उत्तेजक होने से कुच्छ समय तक उत्तेजकता दर्शाता है, जिससे कभी-कभी लक्षण बढ़ जाने का भास होता है। परंतु जैसे-जैसे सुवर्ण क्षार का खून में मिश्रण होता जाता है, वैसे-वैसे खून सबल बनता जाता है। कभी कभी पूर्ण चंद्रोदय रस के सेवन से बुखार बढ़ जाता है, ऐसा होने पर पूर्ण चंद्रोदय रस की मात्रा कम कर देनी चाहिये।

पूर्ण चंद्रोदय रस शारीरिक घटको (Tissues) का नाश नहीं करता, केवल शरीर को हानी पहुंचाने वाले किटाणुओं का नाश करता है। इस द्रष्टि से किटाणु नाशक औषधियों में यह उत्तम औषधि है।

किटाणु जन्य अन्य रोगों में रक्त में मिले हुए किटाणुओं को नष्ट कर रक्त को सबल बनाने का इस रसायन में गुण है। इस हेतु से आंत्रिक सन्निपात (Typhoid Fever), फुफ्फुस सन्निपात (Pneumonia), फुफ्फुस आवरण सोथ (Pleurisy) और इस तरह के अन्य संक्रामक बुखारों में जब-जब ह्रदय क्रिया किटाणुओं के विष के हेतु से विकृत, मंद या क्षीण होती है, तब-तब अन्य किसी भी औषधि की अपेक्षा पूर्ण चंद्रोदय रस देना विशेष हितकर है।

जब आयु वृद्धि के साथ शरीर वृद्धि नहीं होती, तब शरीर ठिंगना प्रतीत होता है, मुखमंडल निस्तेज और सूजा-सा भसता है, त्वचा, नाखून आदि शुष्क प्रतीत होते है, जननेन्द्रिय और नितंब भाग की वृद्धि न होने से आयु वृद्धि होने पर भी युवा स्त्री सामान्य छोटी लड़की समान दिखती है, अर्थात इन इंद्रियों का व्यवहार आयु अनुसार नहीं होता और इसी तरह स्तन आदि इंद्रियों का विकास भी नहीं होता। पुरुषों के अंडकोष (Testicles) का यथाचित विकास न होने से योग्य शूक्रोत्पत्ति क्रिया नहीं होती, शरीर पर तेज नहीं आता, समस्त अवयवों की योग्य वृद्धि न होने से अवयव संकुचित जैसे दिखते है, स्फूर्ति नहीं रहती, नेत्र पर निस्तेजता भासती है और नाड़ी मंद गति से चलती है। इस स्थिति में आयुर्वेदिक औषधियां उत्तम कार्य करती है- एक पूर्ण चंद्रोदय रस, दूसरी आरोग्यवर्धीनी वटी। वात-प्रधान विकार वालों को आरोग्यवर्धीनी और कफ-प्रधान विकृति वालोंको पूर्ण चंद्रोदय रस उपयोगी है।

किसी भी कारण से आई हुई इंद्रिय-शिथिलता को पूर्ण चंद्रोदय रस दूर करता है। यहां पर इंद्रिय का अर्थ ज्ञानग्रहण-सामर्थ्य और आज्ञा-प्रदान सामर्थ्य क्रिया है। शरीर अवयव इंद्रियों के अधीन है। जैसे नेत्र नेत्रेंद्रिय के अधीन है। जिव्हा रसनेन्द्रिय के और त्वचा त्वकेन्द्रीय के अधिकार में रहती है। इन ज्ञानेन्द्रियों के सामर्थ्य से मनुष्य को शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध गुण का बोध होता है। इनकी शिथिलता होने पर नेत्र से दर्शन-क्रिया और कर्ण से श्रवण-क्रिया यथोचित नहीं होती। यह शिथिलता वात और पित्त धातुओं की विकृति के हेतु से होती है। धातुओं का कार्य जिस तरह शरीर-अवयव और शरीर घटक पर होता है, उस तरह मन, मनोदेश और ज्ञानेन्द्रिय पर भी होता है। पूर्ण चंद्रोदय रस के सेवन से  धातु साम्य (Balance) प्रस्थापित होकर इंद्रियों की शिथिलता दूर होती है, और शरीर-अवयव व्यवस्थित रूप से काम करने लग जाते है।

ज्ञानेन्द्रिय के समान अन्य अवयवों में रही हुई इंद्रिय (शक्ति) का पराभव हो जाता है, वह भी इससे उत्तेजित हो जाती है। इस हेतु से नपुंसकता प्राप्त होने पर पूर्ण चंद्रोदय रस से लाभ होता है। इसके सेवन से इंद्रिय-शैथिल्य का नाश होता है, और मन में भी स्फूर्ति की प्राप्ति होती है।

पूर्ण चंद्रोदय रस में कपूर अत्यधिक मात्रा में मिलता है। एवं जायफल, समुद्रशोष आदि अन्य औषधियों के संयोग से वृषत्व (सांड जैसी संभोग करने की ताकत) गुण अधिक मात्रा में बन जाता है। यह रस अत्यंत कामोत्तेजक है, इस हेतु से संभालपूर्वक इसका उपयोग करना चाहिये।

सन्निपात में कफ-प्रकोप होने पर पूर्ण चंद्रोदय रस का अच्छा उपयोग होता है। कफ दूषित और संगृहीत हो जाने पर रोगी के कमरे में जाने के साथ दुर्गंध का भास होता है, कंठ में घर-घर आवाज, नेत्रा में लाली, कोष्टबद्धता (कब्ज), कफ, रक्तस्त्राव, निंद्रानाश, जिव्हा काली और कटेदार आदि लक्षण उपस्थित होते है। ऐसी अवस्था में पूर्ण चंद्रोदय रस, प्रवालपिष्टी और सुवर्ण माक्षिक भस्म मिलाकर शहद के साथ दिन में 3 बार थोड़ी-थोड़ी मात्रा में दिया जाता है। इसके अतिरिक्त मुलहठी, बहेड़ा, मुनक्का, अड़ूसा और मिश्री का अष्टमांश क्वाथ (पानी आठवे भाग का बाकी रहे ऐसा क्वाथ) करके देते रहने से कफ शुद्धि सत्वर होने में सहायता मिल जाती है।

सूचना: पूर्ण चंद्रोदय रस के सेवन-समय में घी-युक्त मधुर पदार्थ विशेष रूप से लेने से विशेष लाभ पहुंचता है। जिसकी नाड़ी और ह्रदय गति मंद हो और कफप्रधान प्रकृति हो, उसके लिये यह रसायन विशेष अनुकूल रहता है। पित्त-प्रधान प्रकृति वाले, जिनकी नाड़ी और ह्रदय की गति में विशेष तेजी रहती हो, उनको यह रसायन नहीं देना चाहिये।

मात्रा: 125 mg से 250 mg पानी के साथ दिन में 1 या 2 बार।

पूर्ण चंद्रोदय रस घटक द्रव्य: चंद्रोदय, अभ्रक भस्म, शुद्ध कपूर, केशर, अकलकरा, समुद्रशोष, छोटी पीपल प्रत्येक 1-1 तोले और कस्तुरी 3 माशा। भावना: नगरवेल के पान का रस। चंद्रोदय बनाने में सुवर्ण के वर्क का उपयोग होता है।

दूसरी विधि: चंद्रोदय 5 तोला, शुद्ध कपूर 20 तोला, जायफल, मिर्च और लौंग का चूर्ण तथा कस्तुरी 5-5 माशे।

Ref: बृहत योग तरंगिनी, रसतंत्रसार, रस राज सुंदर, भैषज्य रत्नावली 

Purna Chandroday Ras is useful in impotency, wet dream, TB, cough, indigestion, debility of heart, mental debility and physical debility. It is aphrodisiac, heart tonic and antibiotic.

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