सोमवार, 3 सितंबर 2018

लवण भास्कर चूर्ण के फायदे / Benefits of Lavan Bhaskar Churna


लवण भास्कर चूर्ण (Lavan Bhaskar Churna) पेट के रोग, वात और कफ से उत्पन्न गुल्म (Abdominal Lump), प्लीहावृद्धि (Spleen Enlargement), बवासीर (Piles), संग्रहणी (Chronic Diarrhoea), अजीर्ण (Indigestion), मंदाग्नि, कब्ज, शूल (पेट दर्द), शोथ (Swelling), आमवात (Rheumatism) आदि दोषोको दूर कर अग्निको प्रदीप्त करता है।
लवण भास्कर चूर्ण (Lavan Bhaskar Churna) दीपक, पाचक, आमनाशक (अपक्व अन्न रस को आम कहते है, जो विष के समान होता है और शरीर में रोग पैदा करता है), अग्निवर्धक, मलशोधक, वात-कफज रोग नाशक, वातानुलोमक (वायु की गति को नीचे की तरफ करनेवाला), मूत्रल, जलन तथा दुष्ट अन्न द्वारा उत्पन्न हुये विष का नाश करता है।

शास्त्रकार ने ठीक ही कहा है कि यह लवण भास्कर चूर्ण आम, कफ और वात द्वारा होनेवाले पेट के रोगों के लिये अति उत्तम है। पेट के विकार के कारण होनेवाले रक्तदोष (Blood Disorder), त्वकदोष (Skin Diseases), बवासीर, भगंदर, श्वास, खांसी, ह्रदयरोग आदि को यह आंत्रिक दोषों को दूर कर इन रोगों के करणों का नाश कर देता है और फिर शुद्ध रस और रक्त (रस और रक्त शरीर की सात धारुओं में से है) द्वारा पोषित ये अंग अपनी क्षतियों शीघ्र ही विकार कारण विनाश पश्चात, पूर्ण कर लेते है। अधिकतर ग्रहणी (Duodenum) के विकार से आम बनता है जिससे दुष्ट रस की उत्पत्ति होती है अथवा तो रस बनता ही नहीं। दुष्ट रस से पुष्ट शरीर अनेक व्याधियों का मूल बन जाता है और रस द्वारा अपुष्ट शरीर शुष्क और वात विशिष्ट बन जाता है। लवण भास्कर चूर्ण का सेवन आमजन्य सभी दोषों से अंत्र को मुक्त रखता है, अतः यह मेद (Obesity) आदि रोगों का भी नाशक है। 

अग्निमांद्य (Indigestion) और निर्बलता में लवण भास्कर चूर्ण के साथ 1-1 रत्ती (125 mg) शुद्ध कुचिलेका चूर्ण और 1-1 माशा (1 ग्राम) सोडा बाईकार्ब मिला देनेसे विशेष लाभ पहुंचता है। एवं मलावरोध (कब्ज) होनेसे लवण भास्कर चूर्ण और पंचसकार चूर्ण मिलाकर सेवन कराने पर कब्ज, पेट-दर्द, अग्निमांद्य आदि विकार दूर होते है। यदि अपचन और पेट में वायु (Gas) हो, तो शुद्ध कुचिला, लहशूनादि वटी और सोडा बाईकर्ब मिला देना चाहिये। लहशूनादि वटी मिलाने पर अपचन रूप विकार सरलतासे दूर होता है।

कभी कोष्ठबद्धता (कब्ज) होनेपर अपानवायु (जो वायु नीचेकी तरफ सरती है) दूषित हो जाती है। फिर सरलता से बाहर नहीं सरती। परिणाम में अफरा रहना और किसी को ह्रदयशूल (छातीमे दर्द) उपस्थित होता है। उसपर यह लवण भास्कर चूर्ण (Lavan Bhaskar Churna) अच्छा लाभ पहुंचाता है। दिनमे 3 समय देना चाहिये। सुबह निवाये (न अधिक ठंडा न गरम) जलसे, दोपहर और रात्रीको घीके साथ देकर ऊपर निवाया जल पिलावे। इस तरह योजना करने पर अग्निमांद्य, अफरा, शूल (पेट दर्द) आदि दूर हो जाते है। आवश्यकता होनेपर उदर (पेट) पर एरंड तैल और काला नमक की मालिश कर सेक भी करना चाहिये।

आमाशय (Stomach) रसस्त्राव (Gastric Juice) कम होनेपर भोजन कर लेने से उदर (पेट) मे भारीपन आ जाता है, पचनक्रिया ठीक नहीं होती। किये हुए भोजन की डकारे बार-बार आती रहती है। ऐसी अवस्था में भोजन के आधे घंटे या भोजन कर लेनेके बाद तुरंत लवण भास्कर चूर्ण का सेवन कराया जाता है। भोजन के पहले सेवन करना हो तो जलसे और भोजन कर लेनेपर सेवन करना हो तो माट्ठे के साथ सेवन करना चाहिये।

अर्श (Piles) रोग की उत्पत्ति अग्नि मंद होने के पश्चयात पेट में वायु भरा रहने पर भी हो सकती है। एवं सब प्रकार के अर्श रोग में अग्नि मंद रहती है और कब्ज भी रहता है। अतः अर्श रोग में अग्नि प्रदीप्त करने के लिये लवण भास्कर चूर्ण का मट्ठेके साथ (या घी और निवाये जलके साथ) सेवन कराया जाता है।

ग्रहणी रोग (Chronic Diarrhoea) मे प्रायः अग्नि मंद होती है तथा अंत्र निर्बल होजाने से पंचामृत पर्पटी आदि पर्पटी-कल्पका सेवन करने पर कितने ही रोगियोंको कब्ज भी होता रहता है। ऐसे रोगियोंको लवण भास्कर चूर्ण ताजे मट्ठेके साथ दिन में 2 बार देते रहने से अग्नि प्रदीप्त होती है और मलावरोध (कब्ज) नहीं होता।

उदर (पेट)में वातनाड़ियों के निर्बलता आ जानेपर भोजनके 3-4 घंटे बाद आमाशय (Stomach) या अंत्र (Intestine) में वायु की उत्पत्ति होती है। आमाशय में वायु उत्पन्न होने पर वह डकार रूपसे बाहर निकलने का प्रयत्न करती है और अंत्र में होने पर वह अपानवायु रूपसे (Farting) बाहर निकलती है।  इस वायु की उत्पत्ति रोकने और वातनाड़ियों को सबल बनाने के लिये लवण भास्कर चूर्ण के साथ शुद्ध कुचिले का चूर्ण 1-1 रत्ती (125 mg) देते रहना लाभदायक माना गया है। यदि अपचन होकर आमाशय में दूषित अम्लरस भी साथमें रहा हो तो सोडा बाईकर्ब 1-1 माशा (1 ग्राम) साथमे मिला देना चाहिये।

अग्निमांद्य के रोगी को मलावरोध (कब्ज) होनेपर उदरशूल (पेट दर्द) चलता है। यह शूल मल की आगे गति होने में रुकावट आनेपर उपस्थित होता है। प्रायः मलकी गांठ बन जाने पर ऐसा होता है। ऐसी अवस्थामे लवण भास्कर चूर्ण (Lavan Bhaskar Churna) के साथ पंचसकार चूर्ण मिलादेनेसे शूल का तुरंत निवारण हो जाता है।

मात्रा: 2 से 3 माशे (2-3 ग्राम) दिनमें 2 बार मट्ठे या जलके साथ लें।

Lavan Bhaskar Churna is useful in abdominal diseases, gas, indigestion, rheumatism and swelling.

लवण भास्कर चूर्ण बनाने की विधि (Lavan Bhaskar Churna Ingredients): समुद्र नमक 8 तोले, काला नमक 5 तोले, कांच नमक, सैंधा नमक, धनिया, पीपल, पिपलामूल, कालाजीरा, तेजपात, नागकेशर, तालीसपत्र, अम्लवेत सब 2-2 तोले, कालीमिर्च, जीरा, सोंठ, तीनों 1-1 तोला, अनारदाना 4 तोले, इलायची और दालचीनी आधा-आधा तोला लें। सबको मिलाकर कूटकर बारीक चूर्ण करें।

Ref: शार्गंधर संहिता  
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