शुक्रवार, 31 अगस्त 2018

स्वर्ण भस्म के फायदे / Benefits of Swarna Bhasma


स्वर्ण भस्म क्षय (TB), धातुक्षीणता, जीर्ण ज्वर (Long-term fever), त्रिदोष, वातवाहिनियों की निर्बलता, पुराना श्वास, कास (Cough), दाह (Irritation in body), नेत्रजलन (Irritation in eye), पित्तरोग, पित्तज उन्माद (Insanity), भूतबाधा, विषविकार (Toxin), पित्तप्रधान प्रमेह और नपुंसकता आदि रोगोको दूर करती है। सुवर्ण भस्म मे रसायन गुण है। यह प्रज्ञा, वीर्य, बल, स्मृति और कान्ति को बढ़ाने वाली, वृष्य (पौष्टिक), बृहण (शरीर को पुष्ट करने वाली), ह्रद्य (ह्रदय को बल देने वाली) तथा वाणीको स्थिर व  शुद्ध करने वाली है।

ह्रद्य (Heart Tonic):

स्वर्ण भस्म  के सेवन से ह्रदय को शक्ति मिलती है। सुवर्ण का यह ह्रद्य गुण अन्य औषधियो से विशेष है। इस गुण के लिये अदरकके रस के साथ सेवन करना चाहिये।

विष नाशक (Toxin= जहर का नाश करने वाली):

विष, उपविष, शरीरमे उत्पन्न होनेवाला सेंदरीय विष, और इसको उत्पन्न करने वाले किटाणु, इन सबसे शरीरपर होने वाले दुष्परिणामको दूर करने का अद्भुत गुण सुवर्णमे है। जब विषकी तीव्रावस्था शमन हो जाती है, और सूक्ष्मावस्था शेष रह जाती है, तब सुवर्ण का उपयोग करने से शरीर पूर्ण रूपसे निर्विष हो जाता है। एसे प्रसंग पर अल्प मात्रा मे सुवर्ण बार-बार दिया जाता है। एसे ही कृत्रिम विषका तीव्र वेग दूर होनेपर शेष विकृतिकी शांति के लिये सुवर्ण का उपयोग करना चाहिये। कारण स्वर्ण भस्म मे जंतुध्न और विषध्न गुण रहते है। इस गुण की प्राप्ति के लिये सुवर्ण भस्म का उपयोग कम मात्रा मे दिनमे 3-4 बार करना चाहिये।

क्षय (TB):

जंतुध्न और विषध्न गुणके कारण, सुवर्ण क्षय (TB)मे बहुत लाभ पहुचाता है। इस हेतुसे आयुर्वेदने सुवर्णके प्रयोगका क्षय रोगमे स्थान-स्थान पर उपयोग किया है। सुवर्ण-मिश्रित औषधिका प्रयोग क्षयकी सब अवस्थाओमे होता है। क्षय की प्रथम अवस्था और दूसरी अवस्था मे सुवर्ण भस्म का अच्छा उपयोग होता है। क्षय रोग मे जब ज्वर का वेग तीव्र हो, उस समय स्वर्ण भस्म नहीं देनी चाहिये।
सूचना: क्षय रोगमे सुवर्णकी मात्रा बहुत ही कम देनी चाहिये। अधिक मात्र देनेसे क्षयके किटाणु अधिक परिणाममे एक साथ मरकर बुखारको बढ़ा देते है। जब क्षय रोगमे तीव्र बुखार हो तब सुवर्णका उपयोग नहीं करना चाहिये।

सुखी खांसी (Dry Cough):

बार-बार शुष्क कास, सारे शरीरमे व्यथा, सायंकालमे नित्य प्रति सम्हाल रखते हुए भी ज्वर आ जाना, और उतनेमे ही भयंकर शक्तिपात होना, मन अस्वस्थ, उदासीन और क्रोधी बनना इत्यादि लक्षण होनेपर स्वर्ण भस्म, शृंग भस्म, प्रवालपिष्टि और गिलोय सत्वको मिलाकर दूध-मिश्री देते रहनेसे थोड़ेही दिनोमे प्रकृति सुधरने लगती है। (शुष्क कासमे शृंग भस्मकी मात्रा कम दे।)
उरःक्षत (Haemoptysis)मे सुवर्णका उत्तम उपयोग होता है। ज्यादा रक्तस्त्राव होता हो, तो रक्तपित्त चिकित्साके साथ साथ थोड़े परिणाममे सुवर्ण भस्म देते रहनेसे ज्यादा अशक्ति नहीं आती और रोग सत्वर काबुमे आ जाता है।

उन्माद (Insanity):

उन्माद रोगमे पैत्तिक और श्लैष्मिक लक्षण मतलब उन्माद अगर पित्त और कफ की वजह से हुआ हो तो सुवर्ण भस्म का उपयोग भलीभांति होता है। इस उन्मादके लक्षण यह होते है- पूरे शरीरमे जलन, असहिष्णुता, बालक का रोना या सामान्य आवाज भी सहन न होना; प्रकाश, उष्णता और उष्ण पदार्थके स्पर्श से दुःख का भान होना; हाथ-पैर पटकते रहना; अति व्याकुलता; मुख, नेत्र (आंख), कपोल, अंगुलियो आदि पर सूजन, ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाना, दूसरोंको मरनेके लिये दौड़ना, नग्न रहना, बीभत्स चेष्टा करना इत्यादि पैत्तिक लक्षण हो; या मनकी विलक्षण चंचलता, बार-बार दिड्मूढ हो जाना, जड़ता, अन्न पर अरुचि, स्त्री-संबंधी बातो पर प्रेम, एकांतमे रहने की इच्छा, जीवनसे उपरामता इत्यादि श्लैष्मिक लक्षण प्रतीत होते हो तो, सुवर्ण भस्म को धमासाके क्वाथ या अर्कके सात देने से लाभ जोता है।

पुरानी खांसी:

अनेक मासकी पुरानी खांसी और श्वासमे जब पित्तकी प्रधानता, या वात-पित्तकी प्रधानता हो; तब स्वर्ण भस्म द्राक्षारिष्ट या द्राक्षासव के साथ देनेसे अच्छा लाभ पहुंचता है।

कुष्ट रोग (Skin Diseases):

स्वर्ण भस्म के योगसे रक्तप्रसादन कार्य अच्छा होता है। त्वचा मुलायम और तेजस्वी बनती है। त्वचागत पित्त-विकार अच्छी तरहसे शमन हो जाता है। मुखमंडल पर कांति बढ़ जाती है, त्वचाके रोग नष्ट हो जाते है, एवं महाकुष्ट (त्वचा रोग)के उत्पादक किटाणुओका स्वर्ण भस्म के सेवनसे विनाश होता है। इस प्रकार कुष्ट रोगोमे भी सुवर्ण भस्मका उपयोग लाभदायक है।

ज्वर (Fever=बुखार):

आंत्रिक ज्वर (Typhoid) आदि मुद्दती बुखारोमे औषधिकी दो प्रकारकी योजना की जाती है। पहला कार्य रक्तमे रहे हुए बुखारको पैदा करने वाले किटाणुओका नाश कर, सेंद्रिय विष (Toxin)को जलाकर रक्तको निर्विष करने का है। दूसरा कार्य ह्रदय आदि इंद्रियोको भलीभांति कार्यक्षम बनानेका है। ये दोनो कार्य सुवर्ण भस्मके योगसे सहज हो जाते है।

नपुंसकता (Impotency):

स्वर्ण भस्म मे उत्तम वृषय (पौष्टिक) गुण है। अतः इस भस्मके सेवनसे अंडकोषकी ग्रंथिया बलवान बनती है, और नपुंसकता दूर होती है।    

मात्रा: ¼ से 1 रत्ती तक दिनमे दो समय शहद- पीपल और शहद-मक्खन-मिश्री, गिलोय सत्व और शहद-च्यवनप्राशावलेह अथवा रोगानुसार अनुपानके साथ देवे।

Swarna Bhasma is nutritious and heart tonic. It is useful in impotency, fever, skin diseases, cough, insanity, dry cough, TB, irritation in body and eyes.

Previous Post
Next Post

0 टिप्पणियाँ: