शुक्रमातृका वटी के सेवन से शुक्रस्त्राव, सब प्रकार के वातज, पित्तज, कफज प्रमेह तथा सब प्रकार के मूत्रकुच्छ (मूत्र में जलन) आदि दोष दूर होकर शुक्र शुद्ध और गाढ़ा बनता है। शुक्रमातृका वटी बल बढ़ाती है, वर्ण को सुंदर बनाती है और अग्नि को प्रज्वलित कर के जीर्णज्वर (पुराना बुखार) को नष्ट करती है। अश्मरी (पथरी) में भी लाभदायक है। इस के सेवन से रक्त में रक्ताणुओ (Red Blood Cells) की वृद्धि होती है, मांसग्रंथिया सुदृद्ध बनती है, एवं मानसिक शक्ति भी बढ़ती है।
शुक्रमातृका वटी घटक द्रव्य:
शुक्रमातृका वटी घटक द्रव्य:
शुद्ध पारद, शुद्ध गंधक, अभ्रक भस्म और लौह भस्म प्रत्येक
4-4 तोले; छोटी इलायची के दाने, गोखरू, हरड़, आमला, तेजपात, रसौत, धनिया, चव्य, जीरा, तालीसपत्र, सुहागे का फूला और मीठे अनारदाने ये 13 औषधियां 2-2 तोले
तथा शुद्ध गुग्गुल 1 तोला। भावना: गोखरू का क्वाथ अथवा मीठे अनार का रस।
Ref: भैषज्य रत्नावली
Ref: भैषज्य रत्नावली
मात्रा: 1 से 2
गोली दिनमे 2 बार जल, बकरी के दूध अथवा मीठे अनार के रस के साथ
देवें।
Ye goli sukarandu ki sankha badati h
जवाब देंहटाएंJi yah goli shukranuo ki shankhiya bhi badhati hai. Thank you so much!
हटाएंKya garmi ke mosam main le sakte h
जवाब देंहटाएंKitni matra main le