मंगलवार, 12 जून 2018

चित्रकादि वटी के फायदे / Chitrakadi Vati Benefits


चित्रकादि वटी (Chitrakadi Vati) आमशूल, उदरशूल (पेट दर्द), अरुचि, मन्दाग्नि और उदरगत वातप्रकोप (पेट की गेस) दूर करती है तथा आम (अपक्व अन्न रस जो एक प्रकार का विष बन जाता है और शरीर में रोग पैदा करता है) को पाचन करके अग्निको प्रदीप्त करती है। दस्त को साफ लाती है।



चित्रकादि वटी (Chitrakadi Vati) आमशय के पित्त (Gastric Juice) और यकृत्पित्त का स्त्राव बढ़ाती है । जिससे आमाशय (Stomach) और अन्त्रकी पचनशक्ति बढ़ जाती है । फिर उदरशूल, अफारा और आमवृद्धि दूर होती है । दस्तका रंग सफेद हो तो वह पीला बन जाता है ।कफ के अग्निमांद्यमें यह अच्छी गुणकारक है।

मात्रा: 2 से 3 गोली दिन में 3 बार जल के साथ।

चित्रकादि वटी घटक द्रव्य और निर्माण विधि (Chitrakadi Vati Ingredients): चित्रकमूल, पीपलामूल, जवाखार, कालानमक, सेंधानमक, साँभरनमक, बिड़नमक, समुद्र नमक, सोंठ, मिर्च, पीपल, सज्जीखार, भूनीहींग, अजमोद्, चव्य, पाठा, जीरा, धनिया, कटेलीकी जड़, सबको समभाग लेकर चूर्ण करें। फिर बिजौरे या खट्टे अनारके रसमें खरल करके मटरके समान गोलीयाँ बनालें।

Ref: बृहत निघंटु रत्नाकर

विशेष जानकारी:

चित्रकादि वटी (Chitrakadi Vati) दीपन-पाचन औषधि है, इसका मतलब यह अग्नि को प्रदीप्त करती है और आम को भी पचाती है। आम का मतलब है, अपक्व अन्न रस। जो अन्न हम खाते है उसका पचन होकर अन्न रस बनाता है। लेकिन कमजोर पचन शक्ति के कारण जो अन्न रस अपक्व रहता है उसको आम कहते है। यह आमाशय (Stomach) में ही पड़ा रहता है। फिर यह दोषों के साथ मिलकर रोग पैदा करता है, जैसे आमवात (Rheumatism)। चित्रकादि वटी इस आम को नष्ट करती है। दीपन-पाचन औषधियों के योग से बनी यह चित्रकादि वटी मंदाग्नि को नष्ट करने के लिये श्रेष्ठ है।

चित्रकादि वटी पेट दर्द, भूख की कमी, मंदाग्नि और पेट की गेस को नाश करती है। चित्रकादि वटी में जो औषधियाँ है, वह सब अग्निदीपक और पाचक है। इनमें से सज्जीखार, नमक, चित्रकमूल, सोंठ, मिर्च, पीपल, अजमोद और जीरा यह 8 औषधियाँ पेट की गेस को नाश करती है और दीपन पाचन क्रिया में सहायक होती है। इनमें भी समुद्र नमक और बीड नमक यह पेट की गेस को खारिज करती है। अगर पेट में गेस बनती हो और बाहर न निकलती हो तो, चित्रकादि वटी दो गोली चबा लेने से पेट की गेस खारिज हो जाती है।

कालीमिर्च, जीरा, पीपल, पिपलामूल, अजमोद, चित्रकमूल और चव्य यह औषधियाँ वातशूल को नष्ट करती है। पेट में वायु विकृत होकर, पीठ, हाथ, पैर, ह्रदय और मूत्राशय या अन्य अंगो में शूल (दर्द) उत्पन्न करता है इसको वातशूल कहते है। चित्रकादि वटी इस वातशूल को नष्ट करती है।

चित्रक, अजमोद, पीपल, पिपलामूल, चव्य और सोंठ यह 6 औषधियाँ आमाशय (Stomach) में पाचक रस को बढ़ाती है और आमाशय की मंथनी क्रिया को गति देती है, जिससे पाचन सुधरता है।

चित्रक कम मात्रा में पचन नलिका की श्लेष्म त्वचा (Mucous Membrane=चिकनी त्वचा) को उत्तेजित करता है और यकृत (Liver) पित्त का स्त्राव कराता है जिससे दस्त का रंग सफ़ेद हो तो पीला बन जाता है। सज्जीखार और कालीमिर्च भी यकृत को उत्तेजना देने वाले औषध है।  

पिपलामूल और सोंठ भेदक है, यह बंधे हुए या बिना बंधे मल को भेदन कर मलद्वार से बाहर निकाल देते है। मल की बंधी गांठ को नष्ट करते है एवं कफ-वायु और पेट संबंधी रोगों को दूर करनेवाले है।

क्षार, लवण और पीपल के योग से यह पित्त को शमन करती है, जिससे खट्टी डकारे आना बंद हो जाती है। इसमें सज्जीखार है, जो क्षारों में श्रेष्ठ है, गुल्म (पेट की गांठ) और शूल नाशक है,  पित्त का शमन करता है और योगवाही है। योगवाही का मतलब यह अन्य औषधियों के गुणों में वृद्धि करता है।

हींग पेट के विकारों की नाशक है और आजमोद अग्निदीपक, कफ और वात नाशक है। चव्य पाचक, भूखवर्धक, उत्तेजक, आमाशय को बलदायक, अजीर्ण और मंदाग्नि में उपयोगी है।

बीजोरे या खट्टे अनार के रस की भावना देने से चित्रकादि वटी की अग्नि को प्रदीप्त करने की और वात-पिट को नष्ट करने की शक्ति बढ़ जाती है।

पाठा=वात-कफ नाशक, रुचिकारक, गुल्म (पेट की गांठ), अतिसार (Diarrhoea), और कृमि नाशक है।

धनिया=अग्निदीपक, पाचक और कृमि नाशक है।

कटेली की जड़=अग्निदीपक, पाचक और कब्ज नाशक है। 

Chitrakadi vati is useful in indigestion, gas, anorexia and stomach ache.

Read more:




Previous Post
Next Post

0 टिप्पणियाँ: